🙏🏼🌹 *हरे कृष्ण*🌹🙏🏼
|| श्री श्रीचैतन्य चरितावली ||
(8)
निमाई...
क्रमशः से आगे .....
पण्डित नीलाम्बर चक्रवर्ती ने जन्म-नक्षत्र के अनुसार बालक का नाम विश्वम्भर रखा। किन्तु जन्म की राशि के नाम प्रायः बहुत कम प्रचलित होते हैं। बच्चे का नाम तो माता-पिता अपनी राजी से ही रख लेते हैं, यह सब जगह की रिवाज है कि बच्चे का आधा नाम लेने में ही सबको आनन्द आता है। इसलिये बच्चे का कैसा भी नाम क्यों न हो उसे तोड़-मरोड़कर आधा ही बना लेंगे। यह प्रगाढ़ प्रेम का एक मुख्य अंग है। शची देवी की सखियों ने भी गौरांग का नाम रख लिया ‘निमाई’। निमाई नाम के सम्बन्ध में लोगों के भिन्न-भिन्न मत हैं। कइयों का कहना है कि जब ये उत्पन्न हुए थे, तब धात्री को ऐसा प्रतीत हुआ कि इनके शरीर में प्राणों का संचार नहीं हो रहा है। ये प्रसव के अनन्तर अन्य बालकों की भाँति रोये नहीं। जब इनके कान में हरि-मन्त्र बोला गया तब ये रोने लगे।
इसलिये माता ने कहा- ‘यह यमराज के यहाँ नीम की तरह कड़वा साबित हो।’ इसलिये इसका नाम माता ने ‘निमाई’ रख दिया। बहुतों का मत है कि इनका प्रसवगृह एक नीम के वृक्ष के नीचे था, इसलिये इनका नाम ‘निमाई’ रखा गया। बहुतों के विचार में यह नाम हीनता का द्योतक इसलिये रखा गया, कि बच्चे की दीर्घायु हो। लोक में ऐसा प्रचार है कि जिस माता की सन्तानें जीवित नहीं रहतीं वह अपनी सन्तान का इसी प्रकार हीन नाम रखती हैं। कुछ भी हो, हमारा मत तो यह है, यह नाम किसी अर्थ को लेकर नहीं रखा गया। प्यार में ऐसे ही नाम रखे जाते हैं और सर्वसाधारण में वही प्रेम का नाम प्रचलित होता है। जैसे नित्यानन्द का ‘निताई’, जगन्नाथ का ‘जगाई’ इत्यादि। कुछ भी क्यों न हो, सम्पूर्ण नवद्वीप में गौरांग का यही नाम सर्वत्र प्रसिद्ध हुआ।
पण्डित होने पर भी सब लोग इन्हें ‘निमाई पण्डित’ के ही नाम से जानते तथा पहचानते थे। नामकरण-संस्कार के अनन्तर पिता ने इनके स्वभाव की परीक्षा करनी चाही। उन्होंने इनके सामने रूपये-पैसे, अन्न-वस्त्र, द्रव्य-शस्त्र तथा पुस्तकें रख दीं और बड़े प्रेम से बोले- ‘बेटा! इनमें किसी चीज को उठा तो लो।’ प्राय ‘बालक चमकीली चीजों को सबसे पहले पसन्द करते हैं, किन्तु यह स्वभाव तो सर्वसाधारण लौकिक बालकों का होता है, ये तो अलौकिक थे। झट इन्होंने सबसे पहले श्रीमद्भागवत की पुस्तक पर हाथ रख दिया। सभी को बड़ी प्रसन्नता हुई। सबने एक स्वर से कहा- ‘निमाई बड़ा भारी पण्डित होगा।’ सच है-
होनहार बिरवान के होत चीकने पात।
इसीलिए गौरांग ने धरा ग्रन्थ पर हात।।
क्रमशः .............
🙏🏼🌹 *राधे राधे*🌹🙏🏼
|| श्री श्रीचैतन्य चरितावली ||
(8)
निमाई...
क्रमशः से आगे .....
पण्डित नीलाम्बर चक्रवर्ती ने जन्म-नक्षत्र के अनुसार बालक का नाम विश्वम्भर रखा। किन्तु जन्म की राशि के नाम प्रायः बहुत कम प्रचलित होते हैं। बच्चे का नाम तो माता-पिता अपनी राजी से ही रख लेते हैं, यह सब जगह की रिवाज है कि बच्चे का आधा नाम लेने में ही सबको आनन्द आता है। इसलिये बच्चे का कैसा भी नाम क्यों न हो उसे तोड़-मरोड़कर आधा ही बना लेंगे। यह प्रगाढ़ प्रेम का एक मुख्य अंग है। शची देवी की सखियों ने भी गौरांग का नाम रख लिया ‘निमाई’। निमाई नाम के सम्बन्ध में लोगों के भिन्न-भिन्न मत हैं। कइयों का कहना है कि जब ये उत्पन्न हुए थे, तब धात्री को ऐसा प्रतीत हुआ कि इनके शरीर में प्राणों का संचार नहीं हो रहा है। ये प्रसव के अनन्तर अन्य बालकों की भाँति रोये नहीं। जब इनके कान में हरि-मन्त्र बोला गया तब ये रोने लगे।
इसलिये माता ने कहा- ‘यह यमराज के यहाँ नीम की तरह कड़वा साबित हो।’ इसलिये इसका नाम माता ने ‘निमाई’ रख दिया। बहुतों का मत है कि इनका प्रसवगृह एक नीम के वृक्ष के नीचे था, इसलिये इनका नाम ‘निमाई’ रखा गया। बहुतों के विचार में यह नाम हीनता का द्योतक इसलिये रखा गया, कि बच्चे की दीर्घायु हो। लोक में ऐसा प्रचार है कि जिस माता की सन्तानें जीवित नहीं रहतीं वह अपनी सन्तान का इसी प्रकार हीन नाम रखती हैं। कुछ भी हो, हमारा मत तो यह है, यह नाम किसी अर्थ को लेकर नहीं रखा गया। प्यार में ऐसे ही नाम रखे जाते हैं और सर्वसाधारण में वही प्रेम का नाम प्रचलित होता है। जैसे नित्यानन्द का ‘निताई’, जगन्नाथ का ‘जगाई’ इत्यादि। कुछ भी क्यों न हो, सम्पूर्ण नवद्वीप में गौरांग का यही नाम सर्वत्र प्रसिद्ध हुआ।
पण्डित होने पर भी सब लोग इन्हें ‘निमाई पण्डित’ के ही नाम से जानते तथा पहचानते थे। नामकरण-संस्कार के अनन्तर पिता ने इनके स्वभाव की परीक्षा करनी चाही। उन्होंने इनके सामने रूपये-पैसे, अन्न-वस्त्र, द्रव्य-शस्त्र तथा पुस्तकें रख दीं और बड़े प्रेम से बोले- ‘बेटा! इनमें किसी चीज को उठा तो लो।’ प्राय ‘बालक चमकीली चीजों को सबसे पहले पसन्द करते हैं, किन्तु यह स्वभाव तो सर्वसाधारण लौकिक बालकों का होता है, ये तो अलौकिक थे। झट इन्होंने सबसे पहले श्रीमद्भागवत की पुस्तक पर हाथ रख दिया। सभी को बड़ी प्रसन्नता हुई। सबने एक स्वर से कहा- ‘निमाई बड़ा भारी पण्डित होगा।’ सच है-
होनहार बिरवान के होत चीकने पात।
इसीलिए गौरांग ने धरा ग्रन्थ पर हात।।
क्रमशः .............
🙏🏼🌹 *राधे राधे*🌹🙏🏼