🙏🏼🌹 *हरे कृष्ण*🌹🙏🏼
|| श्री श्रीचैतन्य चरितावली ||
(1)
वंश परिचय...
कुलं पवित्रं जननी कृतार्था वसुन्धरा पुण्यवती च तेन।[1]
सचमुच में माता होना तो उसी का सार्थक कहा जा सकता है, जिसके गर्भ से भगवत्-भक्त पुत्र का जन्म हुआ हो। जन्म और मृत्यु ही जिसका स्वरूप है ऐसे इस परिवर्तनशील संसार में गर्भधारण तो प्रायः सभी योनि की माताएँ करती हैं, किन्तु सार्थक गर्भ उसी का कहा जा सकता है, जिसके गर्भ से उत्पन्न हुए पुत्र के ऊपर हरि-भक्तों की मण्डली में हर्ष-ध्वनि होने लगे। जिसके दर्शनमात्र से भक्तों के शरीर में स्तम्भ, स्वेद, रोमांच और स्वरभंग आदि सात्त्विक भावों का उदय आप-से-आप होने लगे अथवा जिसके ऊपर विद्वान अथवा शूर-वीरों की सभा में सभी लोगों की समान-भाव से उसी के ऊपर दृष्टि पड़े। परस्पर में लोग उसी के सम्बन्ध में काना-फूँसी करें, असल में वही पुत्र कहलाने के योग्य है ओर उसे गर्भ में धारण करने वाली माता ही सच्ची माता है। वैसे तो शूकरी अथवा कूकरी भी साल में दस-दस, बीस-बीस बच्चे पैदा करती हैं, किन्तु उनका गर्भ धारण करना केवल मात्र अपनी वासनाओं की पूर्ति का विकारमात्र ही है। इसी भाव को लेकर कोई कवि बड़ी ही मार्मिक भाषा में माता को उपदेश करता हुआ कहता है-
जननी जने तो भक्त जनि, या दाता या शूर।
नाहिं तो जननी बाँझ रह, क्यों खोवे है नूर।।
भाग्यवती शची माता ने ही यथार्थ में माता-शब्द को सार्थक बनाया, जिसके गर्भ से विश्वरूप और श्रीकृष्ण चैतन्य-जैसे दो पुत्ररत्न उत्पन्न हुए। श्रीकृष्णचैतन्य अथवा महाप्रभु को पैदा करके तो वे जगन्माता ही बन गयीं। गौरांग-जैसे महापुरुष को जिन्होंने गर्भ में धारण किया हो उन्हें जगन्माता का प्रसिद्ध पद प्राप्त होना ही चाहिये।
महाप्रभु गौरांगदेव के पूर्वज श्रीहट्ट (हिलहट) निवासी थे। यह नगर आसाम प्रान्त में है और बंगाल से सटा हुआ ही है, वर्तमानकाल में यह आसाम प्रान्त का एक सुप्रसिद्ध जिला है। इसी श्रीहट्ट-नगर में भारद्वाजवंशीय परम धार्मिक और विद्वान उपेन्द्र मिश्र नाम के एक तेजस्वी और कुलीन ब्राह्मण निवास करते थे। धर्मनिष्ठ और स्वकर्मपरायण होने के कारण उपेन्द्र मिश्र के घर खाने-पीने की कमी नहीं थी। उनकी गुजर साधारणतया भलीभाँति हो जाती थी। उन भाग्यशाली ब्राह्मण के सात पुत्र थे। उनके नाम कंसारि, परमानन्द, पद्मनाभ, सर्वेश्वर, जगन्नाथ, जनार्दन और त्रैलोक्यनाथ थे। इनमें से पण्डित जगन्नाथ मिश्र को ही गौरांग के पूज्य पिता होने का जग-दुर्लभ सुयश प्राप्त हो सका।
पण्डित जगन्नाथ मिश्र अपने पिता की अनुमति से संस्कृत विद्या पढ़ने के लिये सिलहट से नवद्वीप में आये और पण्डित गंगादास जी की पाठशाला में अध्ययन करने लगे। इनकी बुद्धि कुशाग्र थी, पढ़ने-लिखने में ये तेज थे इसलिये अल्पकाल में ही, इन्होंने काव्यशास्त्रों का विधिवत अध्ययन करके पाठशाला से ‘पुरन्तर’ की पदवी प्राप्त कर ली।
क्रमशः .............
🙏🏼🌹 *राधे राधे*🌹🙏🏼
|| श्री श्रीचैतन्य चरितावली ||
(1)
वंश परिचय...
कुलं पवित्रं जननी कृतार्था वसुन्धरा पुण्यवती च तेन।[1]
सचमुच में माता होना तो उसी का सार्थक कहा जा सकता है, जिसके गर्भ से भगवत्-भक्त पुत्र का जन्म हुआ हो। जन्म और मृत्यु ही जिसका स्वरूप है ऐसे इस परिवर्तनशील संसार में गर्भधारण तो प्रायः सभी योनि की माताएँ करती हैं, किन्तु सार्थक गर्भ उसी का कहा जा सकता है, जिसके गर्भ से उत्पन्न हुए पुत्र के ऊपर हरि-भक्तों की मण्डली में हर्ष-ध्वनि होने लगे। जिसके दर्शनमात्र से भक्तों के शरीर में स्तम्भ, स्वेद, रोमांच और स्वरभंग आदि सात्त्विक भावों का उदय आप-से-आप होने लगे अथवा जिसके ऊपर विद्वान अथवा शूर-वीरों की सभा में सभी लोगों की समान-भाव से उसी के ऊपर दृष्टि पड़े। परस्पर में लोग उसी के सम्बन्ध में काना-फूँसी करें, असल में वही पुत्र कहलाने के योग्य है ओर उसे गर्भ में धारण करने वाली माता ही सच्ची माता है। वैसे तो शूकरी अथवा कूकरी भी साल में दस-दस, बीस-बीस बच्चे पैदा करती हैं, किन्तु उनका गर्भ धारण करना केवल मात्र अपनी वासनाओं की पूर्ति का विकारमात्र ही है। इसी भाव को लेकर कोई कवि बड़ी ही मार्मिक भाषा में माता को उपदेश करता हुआ कहता है-
जननी जने तो भक्त जनि, या दाता या शूर।
नाहिं तो जननी बाँझ रह, क्यों खोवे है नूर।।
भाग्यवती शची माता ने ही यथार्थ में माता-शब्द को सार्थक बनाया, जिसके गर्भ से विश्वरूप और श्रीकृष्ण चैतन्य-जैसे दो पुत्ररत्न उत्पन्न हुए। श्रीकृष्णचैतन्य अथवा महाप्रभु को पैदा करके तो वे जगन्माता ही बन गयीं। गौरांग-जैसे महापुरुष को जिन्होंने गर्भ में धारण किया हो उन्हें जगन्माता का प्रसिद्ध पद प्राप्त होना ही चाहिये।
महाप्रभु गौरांगदेव के पूर्वज श्रीहट्ट (हिलहट) निवासी थे। यह नगर आसाम प्रान्त में है और बंगाल से सटा हुआ ही है, वर्तमानकाल में यह आसाम प्रान्त का एक सुप्रसिद्ध जिला है। इसी श्रीहट्ट-नगर में भारद्वाजवंशीय परम धार्मिक और विद्वान उपेन्द्र मिश्र नाम के एक तेजस्वी और कुलीन ब्राह्मण निवास करते थे। धर्मनिष्ठ और स्वकर्मपरायण होने के कारण उपेन्द्र मिश्र के घर खाने-पीने की कमी नहीं थी। उनकी गुजर साधारणतया भलीभाँति हो जाती थी। उन भाग्यशाली ब्राह्मण के सात पुत्र थे। उनके नाम कंसारि, परमानन्द, पद्मनाभ, सर्वेश्वर, जगन्नाथ, जनार्दन और त्रैलोक्यनाथ थे। इनमें से पण्डित जगन्नाथ मिश्र को ही गौरांग के पूज्य पिता होने का जग-दुर्लभ सुयश प्राप्त हो सका।
पण्डित जगन्नाथ मिश्र अपने पिता की अनुमति से संस्कृत विद्या पढ़ने के लिये सिलहट से नवद्वीप में आये और पण्डित गंगादास जी की पाठशाला में अध्ययन करने लगे। इनकी बुद्धि कुशाग्र थी, पढ़ने-लिखने में ये तेज थे इसलिये अल्पकाल में ही, इन्होंने काव्यशास्त्रों का विधिवत अध्ययन करके पाठशाला से ‘पुरन्तर’ की पदवी प्राप्त कर ली।
क्रमशः .............
🙏🏼🌹 *राधे राधे*🌹🙏🏼