🙏🏼🌹 *हरे कृष्ण*🌹🙏🏼
|| श्री श्रीचैतन्य चरितावली ||
(10)
प्रेम-प्रवाह...
क्रमशः से आगे .....
विश्वरूप भी उठकर खड़े हो गये। दोनों माँ-बेटे इधर-उधर निमाई को ढूँढ़ने लगे। आँगन के दूसरी ओर उन्होंने जो कुछ देखा उसे देखकर तो सबके छक्के छूट गये। माता ने बड़े जोर से एक चीत्कार मारी। उनकी चीत्कार को सुनकर आस-पास से और भी स्त्री-पुरुष वहाँ आ गये। सबों ने देखा निमाई का आधा शरीर धूलि-धूसरित है, आधा अंग तेल के कारण चमक रहा है। बालों में भी कुछ धूलि लगी है। कुर्ते में पीठ की ओर एक गाँठ लगी है, वह बड़ी ही भली मालूम पड़ती है। पीले रंग के वस्त्रों में से सुवर्ण-रंग का शरीर बड़ा ही सुहावना मालूम पड़ता है। सर्प गुड़मुड़ी मारे बैठा है। निमाई उसके ऊपर सवार है। उसने अपना काला गौ के खुर के चिह्न से चिह्नित विशाल फण ऊपर उठा रखा है। निमाई का एक हाथ फण के ऊपर है। एक से वे जमीन को छू रहे हैं। एक पैर में वलय देकर साँप चुपचाप पड़ा है। सूर्य के प्रकाश में उसका स्याह काला शरीर चमक रहा है।
निमाई को कोई चिन्ता ही नहीं। वे हँस रहे हैं। हँसने से आगे के दाँत जो अभी नये ही निकले हैं खूब चमक रहे हैं। देखने वालों के होश उड़ गये। सभी के हृदय में एक विचित्र आन्दोलन उठ रहा था। किसी की हिम्मत भी नहीं पड़ती थी कि बच्चे को साँप से छुड़ावे। इसी समय शची देवी छुड़ाने के लिये दौड़ीं। उनका दौड़ना था कि साँप जल्दी से अपने बिल में घुस गया। निमाई हँसते-हँसते माता की ओर चले। माता ने जल्दी से बालक को छाती से चिपटा लिया। उस समय माता को तथा अन्य सभी लोगों को जो आनन्द हुआ होगा उसका वर्णन भला कौन कर सकता है? सभी ने बच्चे को सकुशल काल के गाल में से लौटा देखकर भाँति-भाँति के उपचार किये। किसी ने झाड़-फूँक की, किसी ने ताबीज बनाया। स्त्रियाँ कहने लगीं- ‘यह कोई कुलदेवता है, तभी तो इसने बच्चे को कोई क्षति नहीं पहुँचायी।’ कोई-कोई बड़ी-बूढ़ी स्त्रियाँ बच्चे का मुँह चूम-चूकर कहने लगीं- ‘निमाई, तू इतनी बदमाशी क्यों किया करता है? क्या तुझे खेलने को साँप ही मिले हैं? निमाई उनकी ओर देखकर हँस देते तभी सब स्त्रियाँ गाने लगतीं-
हरि हरि बोल, बोल हरि बोल। मुकुन्द माधव गोविन्द बोल।।
इस प्रकार निमाई की अधिक चंचलता देखकर माता उनकी अधिक चिन्ता रखने लगी। माता जितनी ही अधिक होशियारी रखती, ये उतना ही अधिक उसे धोखा भी देते।
एक दिन ये घर से निकलकर बाहर रास्ते में एकान्त में खेल रहे थे। शरीर पर बहुत-से आभूषण थे, उनमें कई सोने के भी थे। इतने में ही चोर उधर आ निकला। निमाई को आभूषण पहने एकान्त में खेलते देखकर उसके मन में बुरा भाव उत्पन्न हुआ और वह इन्हें पीठ पर चढ़ाकर एकान्त स्थान की ओर जाने लगा। इनके स्पर्शमात्र से ही उसकी विचित्र दशा हो गयी, उसे अपने कुकृत्यों पर रह-रहकर पश्चात्ताप होने लगा। निमाई का एक पैर उसके कन्धे के नीचे लटक रहा था। उस कमल की भाँति कोमल पैर को देखकर उसका हृदय भर आया। उसने एक बार निमाई के कमल की तरह खिले हुए मुँह की ओर ध्यानपूर्वक देखा। पीठ पर चढे़ हुए निमाई हँस रहे थे। चोर का हृदय पानी-पानी हो गया। जगदुद्धारक निमाई का वही पापी सर्वप्रथम कृपापात्र बना। इधर निमाई को घर में न देखकर माता-पिता को बड़ी चिन्ता हुई।
मिश्र जी ढूँढ़ते-ढूँढ़ते गंगा जी तक पहुँचे, किन्तु निमाई का कुछ भी पता नहीं चला। इधर शची देवी पगली की तरह आस-पास के मुहल्लों के सभी घरों में निमाई को ढूँढ़ने लगी। स्त्रियाँ कहतीं- ‘वह बड़ा चंचल है, घर में रहना तो मानो सीखा ही नहीं। तुम चिन्ता मत करो। यहीं कहीं खेल रहा होगा। मिल जायगा। चलो मैं भी चलती हूँ।’ इस प्रकार सभी स्त्रियाँ शचीमाता को धैर्य बँधाती थीं, किन्तु शची को धैर्य कहाँ? उन सबकी बातों को अनसुनी करती हुई माता एक घर से दूसरे घर में दौड़ने लगी। विश्वरूप अलग ढूँढ़ रहे थे। इधर चोर की चित्तवृत्ति शुद्ध होने से उसका भाव ही बदल गया। बस, वही उसका चोरी का अन्तिम दिन था। उसने धीरे से लाकर निमाई को उनके द्वार पर उतार दिया।
माता-पिता तथा भाई इधर ढूँढ़ रहे थे, किसी ने आकर समाचार दिया कि निमाई तो घर पर खेल रहा है। मानो मरू-भूमि में जलाभाव के कारण मरते हुए पथि को सुन्दर सुशीतल जल मिल गया हो अथवा किसी परम बुभुक्षित को अच्छे-अच्छे खाद्य पदार्थ मिल गये हों, इस प्रकार की प्रसन्नता मिश्र जी को हुई। उन्होंने द्वार पर आकर देखा कि निमाई हँस रहा है। माता ने आकर बच्चे को छाती से चिपटाया। विश्वरूप ने भाई को पुचकारा। स्त्रियाँ आकर गाने लगीं-
हरि हरि बोल, बोल हरि बोल। मुकुन्द माधव गोविन्द बोल।।
क्रमशः .............
🙏🏼🌹 *राधे राधे*🌹🙏🏼
|| श्री श्रीचैतन्य चरितावली ||
(10)
प्रेम-प्रवाह...
क्रमशः से आगे .....
विश्वरूप भी उठकर खड़े हो गये। दोनों माँ-बेटे इधर-उधर निमाई को ढूँढ़ने लगे। आँगन के दूसरी ओर उन्होंने जो कुछ देखा उसे देखकर तो सबके छक्के छूट गये। माता ने बड़े जोर से एक चीत्कार मारी। उनकी चीत्कार को सुनकर आस-पास से और भी स्त्री-पुरुष वहाँ आ गये। सबों ने देखा निमाई का आधा शरीर धूलि-धूसरित है, आधा अंग तेल के कारण चमक रहा है। बालों में भी कुछ धूलि लगी है। कुर्ते में पीठ की ओर एक गाँठ लगी है, वह बड़ी ही भली मालूम पड़ती है। पीले रंग के वस्त्रों में से सुवर्ण-रंग का शरीर बड़ा ही सुहावना मालूम पड़ता है। सर्प गुड़मुड़ी मारे बैठा है। निमाई उसके ऊपर सवार है। उसने अपना काला गौ के खुर के चिह्न से चिह्नित विशाल फण ऊपर उठा रखा है। निमाई का एक हाथ फण के ऊपर है। एक से वे जमीन को छू रहे हैं। एक पैर में वलय देकर साँप चुपचाप पड़ा है। सूर्य के प्रकाश में उसका स्याह काला शरीर चमक रहा है।
निमाई को कोई चिन्ता ही नहीं। वे हँस रहे हैं। हँसने से आगे के दाँत जो अभी नये ही निकले हैं खूब चमक रहे हैं। देखने वालों के होश उड़ गये। सभी के हृदय में एक विचित्र आन्दोलन उठ रहा था। किसी की हिम्मत भी नहीं पड़ती थी कि बच्चे को साँप से छुड़ावे। इसी समय शची देवी छुड़ाने के लिये दौड़ीं। उनका दौड़ना था कि साँप जल्दी से अपने बिल में घुस गया। निमाई हँसते-हँसते माता की ओर चले। माता ने जल्दी से बालक को छाती से चिपटा लिया। उस समय माता को तथा अन्य सभी लोगों को जो आनन्द हुआ होगा उसका वर्णन भला कौन कर सकता है? सभी ने बच्चे को सकुशल काल के गाल में से लौटा देखकर भाँति-भाँति के उपचार किये। किसी ने झाड़-फूँक की, किसी ने ताबीज बनाया। स्त्रियाँ कहने लगीं- ‘यह कोई कुलदेवता है, तभी तो इसने बच्चे को कोई क्षति नहीं पहुँचायी।’ कोई-कोई बड़ी-बूढ़ी स्त्रियाँ बच्चे का मुँह चूम-चूकर कहने लगीं- ‘निमाई, तू इतनी बदमाशी क्यों किया करता है? क्या तुझे खेलने को साँप ही मिले हैं? निमाई उनकी ओर देखकर हँस देते तभी सब स्त्रियाँ गाने लगतीं-
हरि हरि बोल, बोल हरि बोल। मुकुन्द माधव गोविन्द बोल।।
इस प्रकार निमाई की अधिक चंचलता देखकर माता उनकी अधिक चिन्ता रखने लगी। माता जितनी ही अधिक होशियारी रखती, ये उतना ही अधिक उसे धोखा भी देते।
एक दिन ये घर से निकलकर बाहर रास्ते में एकान्त में खेल रहे थे। शरीर पर बहुत-से आभूषण थे, उनमें कई सोने के भी थे। इतने में ही चोर उधर आ निकला। निमाई को आभूषण पहने एकान्त में खेलते देखकर उसके मन में बुरा भाव उत्पन्न हुआ और वह इन्हें पीठ पर चढ़ाकर एकान्त स्थान की ओर जाने लगा। इनके स्पर्शमात्र से ही उसकी विचित्र दशा हो गयी, उसे अपने कुकृत्यों पर रह-रहकर पश्चात्ताप होने लगा। निमाई का एक पैर उसके कन्धे के नीचे लटक रहा था। उस कमल की भाँति कोमल पैर को देखकर उसका हृदय भर आया। उसने एक बार निमाई के कमल की तरह खिले हुए मुँह की ओर ध्यानपूर्वक देखा। पीठ पर चढे़ हुए निमाई हँस रहे थे। चोर का हृदय पानी-पानी हो गया। जगदुद्धारक निमाई का वही पापी सर्वप्रथम कृपापात्र बना। इधर निमाई को घर में न देखकर माता-पिता को बड़ी चिन्ता हुई।
मिश्र जी ढूँढ़ते-ढूँढ़ते गंगा जी तक पहुँचे, किन्तु निमाई का कुछ भी पता नहीं चला। इधर शची देवी पगली की तरह आस-पास के मुहल्लों के सभी घरों में निमाई को ढूँढ़ने लगी। स्त्रियाँ कहतीं- ‘वह बड़ा चंचल है, घर में रहना तो मानो सीखा ही नहीं। तुम चिन्ता मत करो। यहीं कहीं खेल रहा होगा। मिल जायगा। चलो मैं भी चलती हूँ।’ इस प्रकार सभी स्त्रियाँ शचीमाता को धैर्य बँधाती थीं, किन्तु शची को धैर्य कहाँ? उन सबकी बातों को अनसुनी करती हुई माता एक घर से दूसरे घर में दौड़ने लगी। विश्वरूप अलग ढूँढ़ रहे थे। इधर चोर की चित्तवृत्ति शुद्ध होने से उसका भाव ही बदल गया। बस, वही उसका चोरी का अन्तिम दिन था। उसने धीरे से लाकर निमाई को उनके द्वार पर उतार दिया।
माता-पिता तथा भाई इधर ढूँढ़ रहे थे, किसी ने आकर समाचार दिया कि निमाई तो घर पर खेल रहा है। मानो मरू-भूमि में जलाभाव के कारण मरते हुए पथि को सुन्दर सुशीतल जल मिल गया हो अथवा किसी परम बुभुक्षित को अच्छे-अच्छे खाद्य पदार्थ मिल गये हों, इस प्रकार की प्रसन्नता मिश्र जी को हुई। उन्होंने द्वार पर आकर देखा कि निमाई हँस रहा है। माता ने आकर बच्चे को छाती से चिपटाया। विश्वरूप ने भाई को पुचकारा। स्त्रियाँ आकर गाने लगीं-
हरि हरि बोल, बोल हरि बोल। मुकुन्द माधव गोविन्द बोल।।
क्रमशः .............
🙏🏼🌹 *राधे राधे*🌹🙏🏼