🙏🏼🌹 *श्रीकृष्ण*🌹🙏🏼
|| श्री श्रीचैतन्य चरितावली ||
(13)
बाल्य-भाव...
क्रमशः से आगे .....
आपने भोली सूरत बनाकर कहा- ‘अम्मा! तैने भी तो मुझे मिट्टी लाकर दी है। मिट्टी ही मैं खा रहा हूँ’। माता ने कहा- ‘मैंने तो तुझे दूध-चिउरा दिया है, उसे न खाकर तू मिट्टी खा रहा है।’
आपने कहा- ‘माँ! यह सब मिट्टी ही तो है। सभी पदार्थ मिट्टी के ही विकार हैं।’ माता इस मूढ़ ज्ञान को समझ गयी। पुचकारकर बोलीं- ‘बेटा! है तो सब मिट्टी ही किन्तु काम सबका अलग-अलग है। घड़ा भी मिट्टी है, रेत भी मिट्टी है। घडे़ में पानी भरकर लाते हैं, तो वह रखा रहता है और रेत में पानी डालें तो वह सूख जायगा। इसलिये सबके काम अलग-अलग हैं।’
आपने मुँह बनाकर कहा- ‘हाँ, ऐसी बात है? तब हमें तैंने पहले से क्यों नहीं बताया, अब ऐसा न किया करेंगे। अब कभी मिट्टी न खायेंगे। भूख लगने पर तुझसे ही माँग लिया करेंगे।’
इस प्रकार भाँति-भाँति की क्रीड़ाओं के द्वारा निमाई माता को दिव्य सुख का आस्वादन कराने लगे। माता इनकी भोली और गूढ़ ज्ञान से सनी हुई बातें सुन-सुनकर कभी तो आश्चर्य करने लगतीं, कभी आनन्द के सागर में गोता लगाने लगतीं।
🌸 🌸 बाल-लीला 🌸🌸
पंकाभिषिक्तसकलावयवं विलोक्य
दामोदरं वदति कोपवशाद् यशोदा।
त्वं सूकरोऽसि गतजन्मनि पूतनारे!
इत्युक्तसस्मितमुखोऽवतु नो मुरारिः।।[1]
निमाई की सभी लीलाएँ दिव्य हैं। अन्य साधारण बालकों की भाँति वे चंचलता और चपलता तो करते हैं, किन्तु इनकी चंचलता में एक अलौकिक भाव की आभा दृष्टिगोचर होती है। जिसके साथ ये चपलता करते हैं, उसे किसी भी दशा में इनके ऊपर गुस्सा नहीं आता, प्रत्युत वह प्रसन्न ही होता है। ये चंचलता की हद कर देते हैं, जिस बात के लिये मना किया जाय, उसे ही ये हठपूर्वक बार-बार करेंगे- यही इनकी विशेषता थी। इन्हें अपवित्र या पवित्र किसी भी वस्तु से राग या द्वेष नहीं। इनके लिये सब समान ही है। एक दिन की बात है कि निमाई के पिता पण्डित जगन्नाथ मिश्र गंगास्नान करके घर लौट रहे थे। उन्होंने अपने घर के समीप एक परेदशी ब्राह्मण को देखा। देखने से वह ब्राह्मण किसी शुभ तीर्थ का प्रतीत होता था। उसके चेहरे पर तेज था, माथे पर चन्दन का तिलक था ओर गले में तुलसी की माला थी। मुख से प्रतिक्षण भगवन्नाम का जप कर रहा था।
मिश्र जी ने ब्राह्मण को देखकर नम्रतापूर्वक उनके चरणों में प्रणाम किया और अपने यहाँ आतिथ्य स्वीकार करने की प्रार्थना की। मिश्र जी के शील-स्वभाव को देखकर ब्राह्मण ने उनका अतिथि होना स्वीकार किया और वे उनके साथ-ही-साथ घर में आये। घर पहुँचकर मिश्र जी ने ब्राह्मण के चरणों का प्रक्षालन किया और उस जल को अपने परिवार के सहित सिर पर चढ़ाया, घर में छिड़का तथा आचमन किया। इसके अनन्तर विधिवत अर्घ्य, पाद्य, आचमनीय तथा फल-फूल के द्वारा ब्राह्मण की पूजा की और पश्चात् भोजन बना लेने की भी प्रार्थना की। ब्राह्मण ने भोजन बनाना स्वीकार कर लिया। शचीदेवी ने घर के दूसरी ओर लीप-पोतकर ब्राह्मण की रसोई की सभी सामग्री जुटा दी। पैर धोकर ब्राह्मण देव रसोई में गये। दाल बनायी, चावल बनाये, शाक बनाया और आलू भूनकर उनका भुरता भी बना लिया। शचीदेवी ने पापड़ दे दिये, उन्हें भूनकर ब्राह्मण ने एक ओर रख दिया।
सब सामग्री सिद्ध होने पर ब्राह्मण ने एक बड़ी थाली में चावल निकाले, दाल भी हाँड़ी में से निकालकर थाली में रखी। केले के पत्ते पर शाक और भुरता रखा। भुने पापड़ को भात के ऊपर रखा। आसन पर सुस्थिर होकर बैठ गये, सभी पदार्थों में तुलसी पत्र डाले। आचमन करके वे भगवान का ध्यान करने लगे। आँखें बंद करके वे सभी पदार्थों को विष्णु भगवान के अर्पण करने लगे। इतने में ही घुँटुओं से चलते हुए निमाई वहाँ आ पहुँचे और जल्दी-जल्दी थाली में से चावल लेकर खाने लगे। ब्राह्मण ने जब आँख खोलकर देखा तो सामने बालक को खाते पाया।
क्रमशः .............
🙏🏼🌹 *राधे राधे*🌹🙏🏼
|| श्री श्रीचैतन्य चरितावली ||
(13)
बाल्य-भाव...
क्रमशः से आगे .....
आपने भोली सूरत बनाकर कहा- ‘अम्मा! तैने भी तो मुझे मिट्टी लाकर दी है। मिट्टी ही मैं खा रहा हूँ’। माता ने कहा- ‘मैंने तो तुझे दूध-चिउरा दिया है, उसे न खाकर तू मिट्टी खा रहा है।’
आपने कहा- ‘माँ! यह सब मिट्टी ही तो है। सभी पदार्थ मिट्टी के ही विकार हैं।’ माता इस मूढ़ ज्ञान को समझ गयी। पुचकारकर बोलीं- ‘बेटा! है तो सब मिट्टी ही किन्तु काम सबका अलग-अलग है। घड़ा भी मिट्टी है, रेत भी मिट्टी है। घडे़ में पानी भरकर लाते हैं, तो वह रखा रहता है और रेत में पानी डालें तो वह सूख जायगा। इसलिये सबके काम अलग-अलग हैं।’
आपने मुँह बनाकर कहा- ‘हाँ, ऐसी बात है? तब हमें तैंने पहले से क्यों नहीं बताया, अब ऐसा न किया करेंगे। अब कभी मिट्टी न खायेंगे। भूख लगने पर तुझसे ही माँग लिया करेंगे।’
इस प्रकार भाँति-भाँति की क्रीड़ाओं के द्वारा निमाई माता को दिव्य सुख का आस्वादन कराने लगे। माता इनकी भोली और गूढ़ ज्ञान से सनी हुई बातें सुन-सुनकर कभी तो आश्चर्य करने लगतीं, कभी आनन्द के सागर में गोता लगाने लगतीं।
🌸 🌸 बाल-लीला 🌸🌸
पंकाभिषिक्तसकलावयवं विलोक्य
दामोदरं वदति कोपवशाद् यशोदा।
त्वं सूकरोऽसि गतजन्मनि पूतनारे!
इत्युक्तसस्मितमुखोऽवतु नो मुरारिः।।[1]
निमाई की सभी लीलाएँ दिव्य हैं। अन्य साधारण बालकों की भाँति वे चंचलता और चपलता तो करते हैं, किन्तु इनकी चंचलता में एक अलौकिक भाव की आभा दृष्टिगोचर होती है। जिसके साथ ये चपलता करते हैं, उसे किसी भी दशा में इनके ऊपर गुस्सा नहीं आता, प्रत्युत वह प्रसन्न ही होता है। ये चंचलता की हद कर देते हैं, जिस बात के लिये मना किया जाय, उसे ही ये हठपूर्वक बार-बार करेंगे- यही इनकी विशेषता थी। इन्हें अपवित्र या पवित्र किसी भी वस्तु से राग या द्वेष नहीं। इनके लिये सब समान ही है। एक दिन की बात है कि निमाई के पिता पण्डित जगन्नाथ मिश्र गंगास्नान करके घर लौट रहे थे। उन्होंने अपने घर के समीप एक परेदशी ब्राह्मण को देखा। देखने से वह ब्राह्मण किसी शुभ तीर्थ का प्रतीत होता था। उसके चेहरे पर तेज था, माथे पर चन्दन का तिलक था ओर गले में तुलसी की माला थी। मुख से प्रतिक्षण भगवन्नाम का जप कर रहा था।
मिश्र जी ने ब्राह्मण को देखकर नम्रतापूर्वक उनके चरणों में प्रणाम किया और अपने यहाँ आतिथ्य स्वीकार करने की प्रार्थना की। मिश्र जी के शील-स्वभाव को देखकर ब्राह्मण ने उनका अतिथि होना स्वीकार किया और वे उनके साथ-ही-साथ घर में आये। घर पहुँचकर मिश्र जी ने ब्राह्मण के चरणों का प्रक्षालन किया और उस जल को अपने परिवार के सहित सिर पर चढ़ाया, घर में छिड़का तथा आचमन किया। इसके अनन्तर विधिवत अर्घ्य, पाद्य, आचमनीय तथा फल-फूल के द्वारा ब्राह्मण की पूजा की और पश्चात् भोजन बना लेने की भी प्रार्थना की। ब्राह्मण ने भोजन बनाना स्वीकार कर लिया। शचीदेवी ने घर के दूसरी ओर लीप-पोतकर ब्राह्मण की रसोई की सभी सामग्री जुटा दी। पैर धोकर ब्राह्मण देव रसोई में गये। दाल बनायी, चावल बनाये, शाक बनाया और आलू भूनकर उनका भुरता भी बना लिया। शचीदेवी ने पापड़ दे दिये, उन्हें भूनकर ब्राह्मण ने एक ओर रख दिया।
सब सामग्री सिद्ध होने पर ब्राह्मण ने एक बड़ी थाली में चावल निकाले, दाल भी हाँड़ी में से निकालकर थाली में रखी। केले के पत्ते पर शाक और भुरता रखा। भुने पापड़ को भात के ऊपर रखा। आसन पर सुस्थिर होकर बैठ गये, सभी पदार्थों में तुलसी पत्र डाले। आचमन करके वे भगवान का ध्यान करने लगे। आँखें बंद करके वे सभी पदार्थों को विष्णु भगवान के अर्पण करने लगे। इतने में ही घुँटुओं से चलते हुए निमाई वहाँ आ पहुँचे और जल्दी-जल्दी थाली में से चावल लेकर खाने लगे। ब्राह्मण ने जब आँख खोलकर देखा तो सामने बालक को खाते पाया।
क्रमशः .............
🙏🏼🌹 *राधे राधे*🌹🙏🏼