श्री चैतन्य चरित्रामृतम

Saturday, 27 April 2019

श्री चैतन्य चरित्रमृतम कथा 12

🙏🏼🌹 *श्रीकृष्ण*🌹🙏🏼
|| श्री श्रीचैतन्य चरितावली ||
(12)


बाल्य-भाव...
क्रमशः से आगे .....

दिग्वाससं गतव्रीडं जटिलं धूलिधूसरम्।
पुण्याधिका हि पश्यन्ति गंगाधरमिवात्मजम्।।[1]

‘इस काम के करने से क्या फायदा?’ 'इसको क्यों करें, इससे हमारा क्या मतलब?’ ये प्रश्न स्वार्थजन्य हैं, स्वार्थ अज्ञानजन्य है और अज्ञान ही बन्धन का हेतु है। ‘भगवान् ने इस सृष्टि को क्यों उत्पन्न किया?’ यह सभी अज्ञानी जीवों की शंका है, जो बिना मतलब के कुछ करना ही नहीं जाते। इसीलिये भगवान व्यासदेव जी ने इसका यही सीधा-सादा उत्तर दिया है कि उसका कुछ भी मतलब नहीं। ‘बाल-लीलावत’ है। बच्चों को देखा है, ख़ाली गाड़ी देखकर उस पर बहुत दूर तक चढ़कर चले जाते हैं और फिर उधर से पैदल ही लौट आते हैं। कोई पूछे- ‘ऐसा करने से उन्हें क्या लाभ?’ इसका उत्तर कुछ भी नहीं। लाभ-हानि बच्चा जानता ही नहीं। उसके लिये दो चीज हैं ही नहीं या तो लाभ-ही-लाभ है या हानि-ही-हनि। या तो उसके लिये सभी वस्तु पवित्र-ही-पवित्र हैं या सभी अपवित्र हैं। वह ज्यों-ज्यों हम लोगों के संसर्ग में रहकर ज्ञान या अज्ञान सीखता जाता है, त्यों-ही-त्यों मतलब और फायदा सोचने लगता है। उस समय उसकी वह द्वन्द्वातीतपने की अवस्था धीरे-घीरे लोप हो जाती है। फिर वह मजा जाता रहता है।

बाल-भाव भी कितना मनोहर है, जब साधारण बालकों के ही विनोद में परम आनन्द और उल्लास भरा रहता है, तब दिव्य बालकों की लीलाओं का तो कहना ही क्या? उस समय तो लोग उन्हें नहीं जाते, ज्यों-ज्यों उनके जीवन में प्रकाश होने लगता है त्यों-ही-त्यों उन पुरानी बातों में भी रस भरता जाता है। निमाई अलौकिक बालक थे। उनकी लीलाएँ भी बड़ी मधुर और साधारण बालकों की भाँति होने पर भी परम अलौकिक थीं। पाठक स्वयं समझ लेंगे कि 3-4 वर्ष की अवस्था के बालक की कितनी गूढ़-गूढ़ बातें होती थीं।

एक दिन माता ने देखा, निमाई एकदम नंगा है। इधर-उधर से चीरें उठाकर लपेट ली है। सम्पूर्ण शरीर में धूलि लपेटे हुए है। एक घूरे पर अशुद्ध हाँड़ियों पर आप बैठे हैं। हाँड़ियों में से कारिख लेकर मुँह और माथे पर काली-काली लम्बी-लम्बी रेखाएँ खींच ली हैं। शरीर में जगह-जगह काली बिंदी लगा ली है। एक फूटी हाँड़ी को खपड़े से बजा-बजाकर आप कुछ गा रहे हैं। सुवर्ण-जैसे शरीर पर भस्म के ऊपर काली-काली बिंदी बहुत ही भली मालूम होती थी। जो भी उधर से निकलता वही उस अद्भुत स्वाँग को देखने के लिये खड़ा हो जाता। निमाई अपने राग में मस्त थे, उन्हें दीन-दुनिया का कुछ भी पता नहीं। किसी ने जाकर यह समाचार शचीमाता को सुनाया। माता दौड़ी-दौड़ी आयीं और दो-चार मीठी-मीठी प्रेमयुक्त कड़ी बातें कहकर डाँटने लगीं- ‘निमाई! तू अब बहुत बदमाशी करने लगा है। भला ब्राह्मण के बेटे को ऐसे अपवित्र स्थान में बैठना चाहिये?’

आपने कहा- ‘अम्मा! स्थान का क्या अपवित्र ओर क्या पवित्र? स्थान तो सभी एक-से हैं। हाँ, जो स्थान हरि-सेवा-पूजा से हीन हो वहाँ बैठना ठीक नहीं। इन हाँड़ियों में तो मैंने भगवान  का प्रसाद बनाया है। भला, फिर ये हाँड़ियाँ अपवित्र कैसे हुई?’

माता ने डाँटकर कहा- ‘बहुत ज्ञान मत छाँट, जल्दी से उठकर स्नान कर ले।’

निमाई भला कब उठने वाले थे? वे तो वहीं डटे रहे और फिर वही अपना पुराना राग अलापने लगे। माता ने जब देखा वह किसी भी तरह नहीं उठता, तो स्वयं जाकर इनका हाथ पकड़कर उठा लायीं और घर में आकर इन्हें स्नान कराया और स्वयं स्नान किया।

इसी प्रकार से सभी बालोचित लीलाएँ करते। कभी किसी कुत्ते के बच्चे को पकड़ लाते और उसे दूध-भात खिलाते। दिनभर उसे बाँधे रखते। माता यदि उसे भगा देती तो खूब रोते। कभी पक्षियों को पकड़ने को दौड़ते ओर कभी गौ के छोटे बच्चे के साथ खेलते और उससे धीरे-धीरे न जाने क्या-क्या बातें करते। सबके घरों में बिना रोक-टोक चले जाते। कोई कहती- ‘निमाई! तुझे हम सन्देश दें, जरा नाच तो दे।’ तब आप कहते- ‘पहले सन्देश (मिठाई) दो, तब नाचेंगे।’ वे सन्देश-लड्डू-पेड़े इन्हें दे देतीं। ये उसी समय कुछ मुँह में भर लेते, शेष को हाथ में लेकर ऊपर हाथ उठा-उठाकर खूब नाचते। इस प्रकार ये घर-घर जाकर खूब नाच दिखाते और खाने के लिये खूब माल पाते। स्त्रियाँ इन्हें बहुत प्यार करतीं। कोई केला देती, कोई मेवा देती, कोई मिठाई देती। ये सबसे ले लेते, स्वयं खाते ओर अपने साथियों को बाँट देते। इस प्रकार ये सभी के मन को अपनी ओर आकर्षित करने लगे और नर-नारियों को परम सुख देने लगे।

एक दिन ये बाहर से दौड़े-दौड़े आये ओर जल्दी से माता से बोले- ‘अम्मा! अम्मा! बड़ी भूख लग रही है, कुछ खाने के लिये हो तो दे।’

माता ने कहा- ‘बेटा! बैठ जा। अभी दूध-चिउरा लाती हूँ, उन्हें तब तक खा ले फिर झट से भात बनाऊँगी।’ यह कहर माता ने भीतर से लाकर एक कटोरे में दूध-चिउरा इन्हें दिया। माता तो देकर भीतर चली गयीं।, ये दूध-चिउरा न खाकर पास में पड़ी मिट्टी को खाने लगे। माता ने जब आकर देखा कि निमाई तो मिट्टी खा रहा है, तब वे जल्दी से कहने लगीं- ‘अरे निमाई! तू यह क्या कर रहा है? मिट्टी क्यों खाता है?’

क्रमशः .............



🙏🏼🌹 *राधे राधे*🌹🙏🏼