🙏🏼🌹 *हरे कृष्ण*🌹🙏🏼
|| श्री श्रीचैतन्य चरितावली ||
(3)
प्रादुर्भाव...
क्रमशः से आगे .....
कालान्नष्टं भक्तियोगं निजं यः
प्रादुष्कर्तुं कृष्णचैतन्यनामा।
आविर्भूतस्तस्य पादारविन्दे
गाढं गाढं लीयतां चित्तभृंगः।।[1]
श्रीमद्भागवत तथा गीता में भगवान ने बार-बार श्रीमुख से जोर देकर कहा है कि मेरे पाने का एकमात्र उपाय भक्ति ही है। मैं योग से, ज्ञान से, जप से, तप से, समाधि से तथा यज्ञ-यागादि अन्य वैदिक कर्मों से इतना तुष्ट नहीं होता जितना कि भक्ति से प्रसन्न होता हूँ, केवल अनन्य भक्ति के ही द्वारा मेरा यथार्थ ज्ञान होता है कि मैं कैसा हूँ और मेरा प्रभाव कितना है। जिस भक्ति की इतनी महिमा है, वह भक्ति जिसके हृदय में हो उस भाग्यवान भक्त के महत्त्व का वर्णन भला कौन कर सकता है। वास्तव में भगवान और भक्त नाममात्र के ही लिये दो हैं, भक्त भगवान के साकार विग्रह का ही नाम है। भगवान स्वयं ही कहते हैं- ‘मैं तो भक्तों के अधीन हूँ, कोई मेरा अपराध कर दे तो उसे तो मैं क्षमा कर भी सकता हूँ, किन्तु भक्तद्रोही के अपराध को मैं क्षमा करने में असमर्थ हूँ।’ भगवान भक्तों की महिमा को बतलाते हैं कि मैं भक्तों के पीछे-पीछे सदा इसलिये घूमा करता हूँ कि उनके चरणों की धूलि उड़कर मेरे ऊपर पड़ जाय तो मैं पावन हो जाऊँ। यहीं तक नहीं, भगवान स्वयं भक्तों का भजन करते हैं।
भगवान हस्तिनापुर में ही विराजमान थे। महाराज युधिष्ठिर प्रायः हर समय ही उनके पास रहते थे, उन्हें भगवान् के बिना चैन ही नहीं पड़ता था। एक दिन रात्रि के बारह बजे महाराज भगवान के स्थान पर पहुँचे। उस समय भगवान समाधि में बैठे हुए थे। धर्मराज बहुत देर तक हाथ जोडे़ खड़े रहे। कुछ काल के अनन्तर भगवान की समाधि भंग हुई। सामने धर्मराज को खडे़ देखकर उन्होंने उनका स्वागत किया और असमय में आने का कारण पूछा। धर्मराज ने नम्रतापूर्वक निवेदन किया- ‘भगवन! और बातें तो मैं फिर पूछूँगा, इस समय जो मुझे बड़ा भारी संशय हुआ है, उसका उत्तर पहले दीजिये। आप चराचर जगत के एकमात्र स्वामी हैं, सम्पूर्ण प्राणियों के आप ही भजनीय हैं। ऋषि, महर्षि, देव, दानव, देवता तथा मनुष्य सभी आपका ध्यान करते हैं, इस समय आपको समाधि में बैठा देखकर मुझे महान कुतूहल उत्पन्न हुआ है कि आप किसका ध्यान करते होंगे? धर्मराज के प्रश्न को सुनकर भगवान् हँसे और मन्द-मन्द मुस्कान के साथ बोले- ‘धर्मराज! यह ठीक है कि सम्पूर्ण जगत् का एकमात्र मैं ही भजनीय हूँ, किन्तु मेरे भी भजनीय भक्त हैं, मैं सदा भक्तों का ध्यान किया करता हूँ।’
क्रमशः .............
🙏🏼🌹 *राधे राधे*🌹🙏🏼
|| श्री श्रीचैतन्य चरितावली ||
(3)
प्रादुर्भाव...
क्रमशः से आगे .....
कालान्नष्टं भक्तियोगं निजं यः
प्रादुष्कर्तुं कृष्णचैतन्यनामा।
आविर्भूतस्तस्य पादारविन्दे
गाढं गाढं लीयतां चित्तभृंगः।।[1]
श्रीमद्भागवत तथा गीता में भगवान ने बार-बार श्रीमुख से जोर देकर कहा है कि मेरे पाने का एकमात्र उपाय भक्ति ही है। मैं योग से, ज्ञान से, जप से, तप से, समाधि से तथा यज्ञ-यागादि अन्य वैदिक कर्मों से इतना तुष्ट नहीं होता जितना कि भक्ति से प्रसन्न होता हूँ, केवल अनन्य भक्ति के ही द्वारा मेरा यथार्थ ज्ञान होता है कि मैं कैसा हूँ और मेरा प्रभाव कितना है। जिस भक्ति की इतनी महिमा है, वह भक्ति जिसके हृदय में हो उस भाग्यवान भक्त के महत्त्व का वर्णन भला कौन कर सकता है। वास्तव में भगवान और भक्त नाममात्र के ही लिये दो हैं, भक्त भगवान के साकार विग्रह का ही नाम है। भगवान स्वयं ही कहते हैं- ‘मैं तो भक्तों के अधीन हूँ, कोई मेरा अपराध कर दे तो उसे तो मैं क्षमा कर भी सकता हूँ, किन्तु भक्तद्रोही के अपराध को मैं क्षमा करने में असमर्थ हूँ।’ भगवान भक्तों की महिमा को बतलाते हैं कि मैं भक्तों के पीछे-पीछे सदा इसलिये घूमा करता हूँ कि उनके चरणों की धूलि उड़कर मेरे ऊपर पड़ जाय तो मैं पावन हो जाऊँ। यहीं तक नहीं, भगवान स्वयं भक्तों का भजन करते हैं।
भगवान हस्तिनापुर में ही विराजमान थे। महाराज युधिष्ठिर प्रायः हर समय ही उनके पास रहते थे, उन्हें भगवान् के बिना चैन ही नहीं पड़ता था। एक दिन रात्रि के बारह बजे महाराज भगवान के स्थान पर पहुँचे। उस समय भगवान समाधि में बैठे हुए थे। धर्मराज बहुत देर तक हाथ जोडे़ खड़े रहे। कुछ काल के अनन्तर भगवान की समाधि भंग हुई। सामने धर्मराज को खडे़ देखकर उन्होंने उनका स्वागत किया और असमय में आने का कारण पूछा। धर्मराज ने नम्रतापूर्वक निवेदन किया- ‘भगवन! और बातें तो मैं फिर पूछूँगा, इस समय जो मुझे बड़ा भारी संशय हुआ है, उसका उत्तर पहले दीजिये। आप चराचर जगत के एकमात्र स्वामी हैं, सम्पूर्ण प्राणियों के आप ही भजनीय हैं। ऋषि, महर्षि, देव, दानव, देवता तथा मनुष्य सभी आपका ध्यान करते हैं, इस समय आपको समाधि में बैठा देखकर मुझे महान कुतूहल उत्पन्न हुआ है कि आप किसका ध्यान करते होंगे? धर्मराज के प्रश्न को सुनकर भगवान् हँसे और मन्द-मन्द मुस्कान के साथ बोले- ‘धर्मराज! यह ठीक है कि सम्पूर्ण जगत् का एकमात्र मैं ही भजनीय हूँ, किन्तु मेरे भी भजनीय भक्त हैं, मैं सदा भक्तों का ध्यान किया करता हूँ।’
क्रमशः .............
🙏🏼🌹 *राधे राधे*🌹🙏🏼