🙏🏼🌹 *हरे कृष्ण*🌹🙏🏼
|| श्री श्रीचैतन्य चरितावली ||
(6)
प्रादुर्भाव....
क्रमशः से आगे .....
हिन्दुओं को चिढ़ाने के व्याज से यवन भी ‘हरि बोल, हरि बोल’ कहकर हिन्दुओं का साथ दे रहे थे। इसी महान आनन्द के समय में नामावतार श्रीगौरांगदेव का प्रादुभाव हुआ। शची देवी की भगिनी ने यह शुभ समाचार मिश्र जी को सुनाया। मिश्र जी की प्रसन्नता का तो कुछ ठिकाना ही न रहा। वे तो पहले से ही अत्यधिक आनन्दित थे, किन्तु अब तो उनके आनन्द की सीमा ही न रही। क्षणभर में बिजली की तरह यह समाचार मुहल्ले भर में फैल गया। स्त्री-पुरुष जिसने भी सुना वही मिश्र जी के घर दौड़ा आया। श्री अद्वैताचार्य की धर्मपत्नी, श्रीवास जी की स्त्री आदि शची देवी की जितनी अन्तरंग सहेलियाँ थीं वे उपहार ले-लेकर बच्चे को देखने के लिये आ गयीं। विश्वरूप के द्वारा समाचार पाकर शची देवी के पिता नीलाम्बर चक्रवर्ती भी आ उपस्थित हुए। वे तो प्रसिद्ध ज्योतिषी ही थे, उसी समय उन्होंने गणना करके लग्न निकाली और जन्म-कुण्डली बनाकर ग्रहों के फल देखने लगे। इतने शुभ ग्रहों को देखकर वे आनन्द में गद्गद हो उठे और मिश्र जी से बोले- यह बालक कोई महान पुरुष होगा। इसके द्वारा असंख्यों जीवों का कल्याण होगा। इसके राजग्रह स्पष्ट बता रहे हैं कि यह असाधारण महापुरुष होगा।
इस प्रकार ग्रहों का फल सुनकर मिश्र जी के आनन्द की और भी अधिक वृद्धि हुई। उस समय उन्हें अपनी निर्धनता पर कुछ खेद हुआ। उनका हृदय कह रहा था कि ‘इस समय यदि मेरे पास कुछ होता तो इसी समय सर्वस दान कर डालता’ फिर भी अपनी शक्ति के अनुसार उन्होंने अन्न-वस्त्र का दान अभ्यागत तथा ब्राह्मणों के लिये दिया। इस प्रकार वह रात्रि आनन्द तथा उत्साह में ही व्यतीत हुई। दूसरे दिन धूलेड़ी थी। उस दिन सभी परस्पर में मिलकर धूलि-कीच तथा अबीर-गुलाल और रंग से होली खेलते हैं। बस, उसी दिन कट्टर-से-कट्टर पण्डित भी स्पर्शास्पर्श का भेद नहीं मानते। सभी परस्पर में मिलते हैं। उस दिन भक्तों में महान आनन्द रहा। एक-दूसरे पर उत्साह के साथ रंग-गुलाल तथा दधि-हल्दी डाल रहे थे। मानो आज नन्दोत्सव मनाया जा रहा हो। भक्तों ने अनुभव किया कि आकाश में देवता उनकी प्रसन्नता में अपनी प्रसन्नता मिलाकर जयघोष कर रहे हैं और भक्तों को अभयदान देते हुए आदेश कर रहे हैं कि अब भय की कोई बात नहीं, तुम्हारे दुर्दिन अब चले गये। नवद्वीप में ही नहीं सम्पूर्ण देश में भक्ति-भागीरथी की एक ऐसी मनोरम बाढ़ आवेगी कि जिसके द्वारा सभी जीव पावन बन जायँगे और चारों ओर ‘हरि बोल, हरि बोल’ यही सुमधुर ध्वनि सुनायी पड़ेगी।
क्रमशः .............
🙏🏼🌹 *राधे राधे*🌹🙏🏼
|| श्री श्रीचैतन्य चरितावली ||
(6)
प्रादुर्भाव....
क्रमशः से आगे .....
हिन्दुओं को चिढ़ाने के व्याज से यवन भी ‘हरि बोल, हरि बोल’ कहकर हिन्दुओं का साथ दे रहे थे। इसी महान आनन्द के समय में नामावतार श्रीगौरांगदेव का प्रादुभाव हुआ। शची देवी की भगिनी ने यह शुभ समाचार मिश्र जी को सुनाया। मिश्र जी की प्रसन्नता का तो कुछ ठिकाना ही न रहा। वे तो पहले से ही अत्यधिक आनन्दित थे, किन्तु अब तो उनके आनन्द की सीमा ही न रही। क्षणभर में बिजली की तरह यह समाचार मुहल्ले भर में फैल गया। स्त्री-पुरुष जिसने भी सुना वही मिश्र जी के घर दौड़ा आया। श्री अद्वैताचार्य की धर्मपत्नी, श्रीवास जी की स्त्री आदि शची देवी की जितनी अन्तरंग सहेलियाँ थीं वे उपहार ले-लेकर बच्चे को देखने के लिये आ गयीं। विश्वरूप के द्वारा समाचार पाकर शची देवी के पिता नीलाम्बर चक्रवर्ती भी आ उपस्थित हुए। वे तो प्रसिद्ध ज्योतिषी ही थे, उसी समय उन्होंने गणना करके लग्न निकाली और जन्म-कुण्डली बनाकर ग्रहों के फल देखने लगे। इतने शुभ ग्रहों को देखकर वे आनन्द में गद्गद हो उठे और मिश्र जी से बोले- यह बालक कोई महान पुरुष होगा। इसके द्वारा असंख्यों जीवों का कल्याण होगा। इसके राजग्रह स्पष्ट बता रहे हैं कि यह असाधारण महापुरुष होगा।
इस प्रकार ग्रहों का फल सुनकर मिश्र जी के आनन्द की और भी अधिक वृद्धि हुई। उस समय उन्हें अपनी निर्धनता पर कुछ खेद हुआ। उनका हृदय कह रहा था कि ‘इस समय यदि मेरे पास कुछ होता तो इसी समय सर्वस दान कर डालता’ फिर भी अपनी शक्ति के अनुसार उन्होंने अन्न-वस्त्र का दान अभ्यागत तथा ब्राह्मणों के लिये दिया। इस प्रकार वह रात्रि आनन्द तथा उत्साह में ही व्यतीत हुई। दूसरे दिन धूलेड़ी थी। उस दिन सभी परस्पर में मिलकर धूलि-कीच तथा अबीर-गुलाल और रंग से होली खेलते हैं। बस, उसी दिन कट्टर-से-कट्टर पण्डित भी स्पर्शास्पर्श का भेद नहीं मानते। सभी परस्पर में मिलते हैं। उस दिन भक्तों में महान आनन्द रहा। एक-दूसरे पर उत्साह के साथ रंग-गुलाल तथा दधि-हल्दी डाल रहे थे। मानो आज नन्दोत्सव मनाया जा रहा हो। भक्तों ने अनुभव किया कि आकाश में देवता उनकी प्रसन्नता में अपनी प्रसन्नता मिलाकर जयघोष कर रहे हैं और भक्तों को अभयदान देते हुए आदेश कर रहे हैं कि अब भय की कोई बात नहीं, तुम्हारे दुर्दिन अब चले गये। नवद्वीप में ही नहीं सम्पूर्ण देश में भक्ति-भागीरथी की एक ऐसी मनोरम बाढ़ आवेगी कि जिसके द्वारा सभी जीव पावन बन जायँगे और चारों ओर ‘हरि बोल, हरि बोल’ यही सुमधुर ध्वनि सुनायी पड़ेगी।
क्रमशः .............
🙏🏼🌹 *राधे राधे*🌹🙏🏼