🌱💕 मोहन की रूपमाधुरी 💕🌱
सूरदासजी कहते हैं कि गोपियां मोहन के एक-एक अंग पर बलिहारी जाती हैं। यथा–
मैं बलि जाउँ स्याम मुख छवि पै।
बलि बलि जाउँ कुटिल कच विथुरे,
बलि भ्रकुटि लिलाट पै।।
बलि बलि जाउँ चारु अवलोकनि,
बलि बलि कुंडल रवि की।
बलि बलि जाउँ नासिका सुललित,
बलिहारी वा छवि की।।
बलि बलि जाउँ अरुन अधरनि की,
बिद्रुम बिंब लजावन।
मैं बलि जाउँ दसन चमकन की,
वारौं तड़ितनि सावन।।
मैं बलि जाउँ ललित ठोड़ी पै,
बलि मोतिन की माल।
सूर निरखि तन मन बलिहारौं,
बलि बलि जसुमति लाल।।
सूरदासजी कहते हैं–
गोपियां आपस में कह रही हैं, ‘सखी ! जब से यह नंदनंदन की शोभा देखी है तब से विधाता बड़ा ही निष्ठुर दिखाई पड़ रहा है। नंदनंदन के नेत्र, नासिका, वाणी, कान, नख, अंगुली, बाल, ललाट सब इतने सुन्दर हैं कि हमारे प्रत्येक रोम में वह आंखें देता तब कहीं ऐसे सुन्दर श्रीकृष्ण को देखते बनता। जैसे समुद्री जहाज के कौवे को थक जाने पर किनारा नहीं मिलता, वैसे ही मेरे मन का पता नहीं कि वह श्रीकृष्ण के किस अंग में मग्न हो गया है, उसे मैं ढूंढ कर हार गयी, पर पा न सकी। श्रीकृष्ण की शोभा का वर्णन कहां तक करूँ, उसे तो देखते ही बुद्धि कुण्ठित हो जाती है।’
स्याम सुख रासि, रस रासि भारी।
रूप की रासि, गुन रासि, जोवन रासि,
थकित भइँ निरखि तरुन नारी।।
सील की रासि, जस रासि, आनँद रासि,
नील नव जलद छवि बरन कारी।
दया की रासि, विद्या रासि, बल रासि,
निरदयाराति दनु कुल प्रहारी।।
चतुरई रासि, छल रासि, कल रासि, हरि,
भजै जिहि देत तिहि दैनहारी।
सूर प्रभु स्याम सुख धाम पूरन काम,
बसन कटि पीत मुख मुरलि धारी।।
एक गोपी कहती है–सखी ! श्यामसुन्दर सुख की राशि हैं और आनन्द की भी महान राशि हैं। वे रूप की राशि हैं; गुण की राशि हैं; यौवन की राशि हैं; उन्हें देखकर ब्रज की स्रियां मोहित हो गयी हैं। वे शील की राशि हैं; यश की राशि हैं; आनन्द की राशि हैं; नवीन श्याममेघ के समान उनका सुन्दर वर्ण है। वे दया की राशि हैं; विद्या की राशि हैं; बल की राशि हैं; वे शत्रुओं व दानवों के कुल को नष्ट करने वाले हैं। वे चतुरता की राशि हैं; छल-कौशल की राशि हैं; कला की राशि हैं; जो उनको जैसे भजता है, वे उसे वही देने वाले हैं। श्रीश्यामसुन्दर सुख के धाम व पूर्णकाम हैं, कमर में पीताम्बर पहिने और मुख पर मुरली धारण किए हैं।
श्यामसुन्दर छोटे से कहे जाते हैं पर उनका तनिक-सा दृष्टिपात करते ही समस्त लोकों की सृष्टि हो जाती है; इनका तनिक-सा सुयश सुनने से ही प्राणी परमपद को पा जाता है; तनिक-सा प्रसन्न होते ही ये अपने-आप को दे देते हैं; तथा तनिक-सा देखकर ही मन को मोह लेते हैं अत: इन्हें मनमोहन भी कहते हैं। हे मनमोहन ! कृपा करके हमें तनिक-सी शरण दे दीजिए।
बांकेबिहारी की बांकी मरोर, चित लीना है चोर।
बांके मुकुट उनके कुण्डल विशाल, हीरों का हार गल मोतियन की माल।
बांके ही पटके का लटकै है छोर, चित लीना है चोर।
मुदड़ी जड़ाऊ जवाहरात की, बांकी लकुटिया हरे बांस की।
बांके पीताम्बर की झलकै है कोर,
चित लीना है चोर।
कमलों से कोमल हैं तेरे चरण,
सांवली सूरत मनोहर फवन।
भक्तों से प्रीत जैसे चन्दा चकोर,
चित लीना है चोर।
बांकी है झांकी औ बांकी अदां,
भक्तों के कारज सुधारें सदां।
दीन दुखियों की सुनते निहोर,
चित लीना है चोर।।
🌱💕 जय श्री राधे~राधे कृष्णा 💕🌱
🍁🌱🍁🙏🍁🌱🍁
सूरदासजी कहते हैं कि गोपियां मोहन के एक-एक अंग पर बलिहारी जाती हैं। यथा–
मैं बलि जाउँ स्याम मुख छवि पै।
बलि बलि जाउँ कुटिल कच विथुरे,
बलि भ्रकुटि लिलाट पै।।
बलि बलि जाउँ चारु अवलोकनि,
बलि बलि कुंडल रवि की।
बलि बलि जाउँ नासिका सुललित,
बलिहारी वा छवि की।।
बलि बलि जाउँ अरुन अधरनि की,
बिद्रुम बिंब लजावन।
मैं बलि जाउँ दसन चमकन की,
वारौं तड़ितनि सावन।।
मैं बलि जाउँ ललित ठोड़ी पै,
बलि मोतिन की माल।
सूर निरखि तन मन बलिहारौं,
बलि बलि जसुमति लाल।।
सूरदासजी कहते हैं–
गोपियां आपस में कह रही हैं, ‘सखी ! जब से यह नंदनंदन की शोभा देखी है तब से विधाता बड़ा ही निष्ठुर दिखाई पड़ रहा है। नंदनंदन के नेत्र, नासिका, वाणी, कान, नख, अंगुली, बाल, ललाट सब इतने सुन्दर हैं कि हमारे प्रत्येक रोम में वह आंखें देता तब कहीं ऐसे सुन्दर श्रीकृष्ण को देखते बनता। जैसे समुद्री जहाज के कौवे को थक जाने पर किनारा नहीं मिलता, वैसे ही मेरे मन का पता नहीं कि वह श्रीकृष्ण के किस अंग में मग्न हो गया है, उसे मैं ढूंढ कर हार गयी, पर पा न सकी। श्रीकृष्ण की शोभा का वर्णन कहां तक करूँ, उसे तो देखते ही बुद्धि कुण्ठित हो जाती है।’
स्याम सुख रासि, रस रासि भारी।
रूप की रासि, गुन रासि, जोवन रासि,
थकित भइँ निरखि तरुन नारी।।
सील की रासि, जस रासि, आनँद रासि,
नील नव जलद छवि बरन कारी।
दया की रासि, विद्या रासि, बल रासि,
निरदयाराति दनु कुल प्रहारी।।
चतुरई रासि, छल रासि, कल रासि, हरि,
भजै जिहि देत तिहि दैनहारी।
सूर प्रभु स्याम सुख धाम पूरन काम,
बसन कटि पीत मुख मुरलि धारी।।
एक गोपी कहती है–सखी ! श्यामसुन्दर सुख की राशि हैं और आनन्द की भी महान राशि हैं। वे रूप की राशि हैं; गुण की राशि हैं; यौवन की राशि हैं; उन्हें देखकर ब्रज की स्रियां मोहित हो गयी हैं। वे शील की राशि हैं; यश की राशि हैं; आनन्द की राशि हैं; नवीन श्याममेघ के समान उनका सुन्दर वर्ण है। वे दया की राशि हैं; विद्या की राशि हैं; बल की राशि हैं; वे शत्रुओं व दानवों के कुल को नष्ट करने वाले हैं। वे चतुरता की राशि हैं; छल-कौशल की राशि हैं; कला की राशि हैं; जो उनको जैसे भजता है, वे उसे वही देने वाले हैं। श्रीश्यामसुन्दर सुख के धाम व पूर्णकाम हैं, कमर में पीताम्बर पहिने और मुख पर मुरली धारण किए हैं।
श्यामसुन्दर छोटे से कहे जाते हैं पर उनका तनिक-सा दृष्टिपात करते ही समस्त लोकों की सृष्टि हो जाती है; इनका तनिक-सा सुयश सुनने से ही प्राणी परमपद को पा जाता है; तनिक-सा प्रसन्न होते ही ये अपने-आप को दे देते हैं; तथा तनिक-सा देखकर ही मन को मोह लेते हैं अत: इन्हें मनमोहन भी कहते हैं। हे मनमोहन ! कृपा करके हमें तनिक-सी शरण दे दीजिए।
बांकेबिहारी की बांकी मरोर, चित लीना है चोर।
बांके मुकुट उनके कुण्डल विशाल, हीरों का हार गल मोतियन की माल।
बांके ही पटके का लटकै है छोर, चित लीना है चोर।
मुदड़ी जड़ाऊ जवाहरात की, बांकी लकुटिया हरे बांस की।
बांके पीताम्बर की झलकै है कोर,
चित लीना है चोर।
कमलों से कोमल हैं तेरे चरण,
सांवली सूरत मनोहर फवन।
भक्तों से प्रीत जैसे चन्दा चकोर,
चित लीना है चोर।
बांकी है झांकी औ बांकी अदां,
भक्तों के कारज सुधारें सदां।
दीन दुखियों की सुनते निहोर,
चित लीना है चोर।।
🌱💕 जय श्री राधे~राधे कृष्णा 💕🌱
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