श्री चैतन्य चरित्रामृतम

Thursday, 25 April 2019

Shri chaitany charitramrtam katha 5 श्री चैतन्य चरित्रमृतम कथा 5

🙏🏼🌹 *हरे कृष्ण*🌹🙏🏼
|| श्री श्रीचैतन्य चरितावली ||
(5)
प्रादुर्भाव...
क्रमशः से आगे .....

बहुत पहिले- सत्ययुग में- आज के दिन भक्तराज प्रह्लाद ने अग्नि में प्रवेश करके भक्ति की विशुद्धता, पवित्रता और निर्मलता दिखायी थी। भगवत-भक्ति के कारण उने पिता की भगिनी होली- जो इन्हें गोद में लेकर अग्नि में बैठी थी स्वयं जल गयी किन्तु इनका बाल भी बाँका नहीं हुआ, इसी कारण भक्तों में अत्यन्त ही आह्लाद उत्पन्न हुआ और तभी से आज तक यह दिन परम पवित्र समझा जाता है। आज के दिन जीवन में नवजीवन का संचार होता है। वर्षभर की सभी बातें भुला दी जाती हैं, सालभर के वैर, द्वेष तथा अशुभ कर्मों को होली की ज्वाला में स्वाहा कर दिया जाता है। आज के दिन शत्रु-मित्र का कुछ भी विचार न करके सबको गले से लगाते हैं। इतने दिनों से होली होती तो थी, किन्तु यथार्थ होली तो आज ही है। तभी तो भक्तों के हृदय में कोई एक अज्ञात आनन्द हिलोरें मार रहा है।

पं. जगन्नाथ मिश्र अपने घर के एक कोने में बैठे हुए हैं। मिश्र जी के पास सांसारिक धन नहीं है, फिर भी ब्राह्मणों का जो धन है, जिसके कारण ब्राह्मणों को तपोधन कहा जाता है, उस धन का अभाव नहीं है। मिश्रजी का घर छोटा-सा है, किन्तु है खूब साफ-सुथरा। सम्पूर्ण स्थान गौ  के गोबर से लिपा है, आँगन में तुलसी का सुन्दर बिरवा लगा हुआ है। एक ओर एक गौ बँधी है। ब्राह्मणी ने ताँबे के तथा पीतल के बर्तनों को खूब माँजकर एक ओर रख दिया है। धूप लगने से वे चमक उठते हैं। मिश्र जी भोजन करके पुस्तक को पढ़ने लगे हैं। तीसरे पहर के बाद शची देवी को कुछ प्रसव-वेदना-सी प्रतीत हुई। घर में दूसरी कोई स्त्री थी नहीं। सास तथा देवरानी, जेठानी सभी श्रीहट्ट (सिलहट) में थीं। यहाँ तो शची देवी का पितृगृह था, इसलिये पं. चन्द्रशेखर (आचार्य-रत्न) की पत्नी अपनी छोटी बहिन को इन्होंने बुला लिया।

धीरे-धीरे वेदना बढ़ने लगी और साथ ही भक्तों के अज्ञात आनन्द की वृद्धि होने लगी। भगवान् मरीचिमाली अस्ताचल को प्रस्थान कर गये, किन्तु तो भी पूर्णिमा के चन्द्र उदय नहीं हुए। कारण कि वे चैतन्यचन्द्र के उदय होने की प्रतीक्षा में थे। इसी समय राहु ने सुअवसर पाकर चन्द्रमा को ग्रस लिया। ग्रहण का स्नान करने के निमित्त नवद्वीप के सभी घाटों पर स्त्री-पुरुषों की भारी भीड़ थी। असंख्यों नर-नारी उस पुण्य अवसर पर स्नान करने के निमित्त एकत्रित हुए थे। सभी के कण्ठों से राम, कृष्ण, हरि की मधुर ध्वनि निकल रही थी। जो कभी भी भगवान का नाम नहीं लेते थे, वे भी उस दिन प्रेम में उन्मत्त होकर कृष्ण- कीर्तन कर रहे थे।

क्रमशः .............


🙏🏼🌹 *राधे राधे*🌹🙏🏼