श्री चैतन्य चरित्रामृतम

Wednesday, 24 April 2019

श्री चैतन्य चरित्रमृतम क्रमांक 4

🙏🏼🌹 *हरे कृष्ण*🌹🙏🏼
|| श्री श्रीचैतन्य चरितावली ||
(4)
प्रादुर्भाव...
क्रमशः से आगे .....

यह सुनकर धर्मराज ने पूछा- ‘अच्छा इस समय आप किसका ध्यान कर रहे थे?’ भगवान ने गद्गद-कण्ठ से कहा- ‘जिन्होंने सर्वस्व त्याग कर केवल मेरे में ही अपने मन को लगा रखा है, जो एक-दो दिन से नहीं कई महीनों से बाणों  की शय्या पर बिना खाये-पिये पड़े हुए हैं, सम्पूर्ण शरीर तीरों से भिदा होने पर भी जो मत्परायण ही बने हुए हैं उन्हीं भक्तराज भीष्म पितामह का मैं इस समय ध्यान कर रहा था।’ भगवान की इस भक्तवत्सलता की बात सुनकर भक्ति की सर्वश्रेष्ठता के सम्बन्ध में किसे संशय रह सकता है? भगवान ही इस जगत के एकमात्र आश्रय हैं, उनकी भक्ति उनकी कृपा के बिना प्राप्त ही नहीं हो सकती।

ज्ञान, कर्म तथा भक्ति के ही एकमात्र प्रवर्तक हैं। जब कर्म की शिथिलता देखते हैं तब आप नरपति-विशेष के रूप में उत्पन्न होकर कर्म का प्रचार करते हैं, जब ज्ञान का लोप देखते हैं तब मुनि-विशेष के रूप में प्रकट होकर ज्ञान का प्रसार करते हैं और जब भक्ति  को नष्ट होते देखते हैं तब भक्त-विशेष का रूप धारण करके भक्ति की महिमा बढ़ाते हैं। उन्हें स्वयं कुछ भी कर्तव्य नहीं होता, क्योंकि स्वयं परिपूर्ण स्वरूप हैं। लोककल्याण के निमित्त वे स्वयं आचरण करके लोगों को शिक्षा देते हैं। भगवान के लिये कोई बात ‘सहसा’ या ‘अकस्मात’ नहीं। जिस प्रकार नाटक का एक अभिनय देखने के अनन्तर हम प्रतीक्षा करते रहते हैं, कि देखें अब क्या हो। इतने में ही रंग-मंच पर सहसा दूसरे नये पात्रों को देखकर हम चकित हो जाते हैं, किन्तु नाटक के व्यवस्थापक के लिये इसमें सहसा या अकस्मात कुछ भी नहीं। उसे आदि से अन्त तक सम्पूर्ण नाटक का पता है कि इसके बाद कौन-सा पात्र क्या अभिनय करेगा।

इसी प्रकार इस जगत के रंग-मंच पर भगवान जो नाटक खेला रहे हैं, उसका उन्हें रत्ती-रत्ती भर पता है। उनके लिये भविष्य के गर्भ में कोई बात छिपी नहीं है। भविष्य का परदा तो हम अज्ञानियेां के नेत्रों पर पड़ा हुआ है। हम किसी घटना को देखकर ही उसे नयी और सहसा उत्पन्न हुई बताने लगते हैं, यही हमारी अपूर्णता है। कार्य को देखकर कारण के सम्बन्ध में सोचते हैं, किन्तु दिव्य दृष्टिवाले कारणों को पहले ही समझ जाते हैं, इसलिये उन्हें किसी भी घटना से कोई आश्चर्य नहीं होता। शाके 1407 (सं. 1542 विक्रमी) के फाल्गुन की पूर्णिमा का शुभ दिवस है। सम्पूर्ण भारतवर्ष में प्रसन्नता छायी हुई है। राम-कृष्ण के मानने वाले सभी हिन्दुओं के घरों में अपनी-अपनी शक्ति के अनुसार सुन्दर-सुन्दर पक्वान्न बनाये गये हैं। सबों ने अपने-अपने घरों को लीप-पोतकर स्वच्छ और सुन्दर बनाया है।

क्रमशः .............


🙏🏼🌹 *राधे राधे*🌹🙏🏼