श्री चैतन्य चरित्रामृतम

Tuesday, 12 March 2019

Vrindavan prem katha प्रेम के भूखे





  बांके बिहारी के बांके भक्त
             ( प्रेम के भूखे )

वृन्दावन में बिहारी जी की अनन्य भक्त थी । नाम था कांता बाई...

बिहारी जी को अपना लाला कहा करती थी उन्हें लाड दुलार से रखा करती और दिन रात उनकी सेवा में लीन रहती थी। क्या मजाल कि उनके लल्ला को जरा भी तकलीफ हो जाए।

एक दिन की बात है कांता बाई अपने लल्ला को विश्राम करवा कर खुद भी तनिक देर विश्राम करने लगी तभी उसे जोर से हिचकिया आने लगी...

और वो इतनी बेचैन हो गयी कि उसे कुछ भी नहीं सूझ रहा था। तभी कांता बाई कि पुत्री उसके घर पे आई, जिसका विवाह पास ही के गाँव में किया हुआ था तब कांता बाई की हिचकियां रुक गयी।

अच्छा महसूस करने लग गयी तो उसने अपनी पुत्री को सारा वृत्तांत सुनाया कि कैसे वो हिचकियो में बेचैन हो गयी।

तब पुत्री ने कहा कि माँ मैं तुम्हे सच्चे मन से याद कर रही थी उसी के कारण तुम्हे हिचकियां आ रही थीं और अब जब मैं आ गयी हूँ तो तुम्हारी हिचकिया भी बंद हो चुकी हैं।

कांता बाई हैरान रह गयी कि ऐसा भी भला होता है ? तब पुत्री ने कहा हाँ माँ ऐसा ही होता है, जब भी हम किसी अपने को मन से याद करते है तो हमारे अपने को हिचकियां आने लगती हैं।

तब कांता बाई ने सोचा कि मैं तो अपने ठाकुर को हर पल याद करती रहती हूँ यानी मेरे लल्ला को भी हिचकियां आती होंगी ??

हाय मेरा छोटा सा लल्ला हिचकियों में कितना बेचैन हो जाता होगा.! नहीं ऐसा नहीं होगा अब से मैं अपने लल्ला को जरा भी परेशान नहीं होने दूंगी और... उसी दिन से कांता बाई ने ठाकुर को याद करना छोड़ दिया।

अपने लल्ला को भी अपनी पुत्री को ही दे दिया सेवा करने के लिए। लेकिन कांता बाई ने एक पल के लिए भी अपने लल्ला को याद नहीं किया.। और ऐसा करते-करते हफ्ते बीत गए और फिर एक दिन...

जब कांता बाई सो रही थी तो साक्षात बांके बिहारी कांता बाई के सपने में आते है और कांता बाई के पैर पकड़ कर ख़ुशी के आंसू रोने लगते हैं.? कांता बाई फौरन जाग जाती है और उठ कर प्रणाम करते हुए रोने लगती है और कहती है कि...

प्रभु आप तो उन को भी नहीं मिल पाते जो समाधि लगाकर निरंतर आपका ध्यान करते रहते हैं। फिर मैं पापिन जिसने आपको याद भी करना छोड़ दिया है आप उसे दर्शन देने कैसे आ गए ??

तब बिहारी जी ने मुस्कुरा कर कहा- माँ, कोई भी मुझे याद करता है तो या तो उसके पीछे किसी वस्तु का स्वार्थ होता है। या फिर कोई साधू ही जब मुझे याद करता है तो उसके पीछे भी उसका मुक्ति पाने का स्वार्थ छिपा होता है।

लेकिन धन्य हो माँ तुम ऐसी पहली भक्त हो जिसने ये सोचकर मुझे याद करना छोड़ दिया कि कहीं मुझे हिचकियां आती होंगी। मेरी इतनी परवाह करने वाली माँ मैंने पहली बार देखी है।

तभी कांता बाई अपने मिटटी के शरीर को छोड़ कर अपने लल्ला में ही लीन हो जाती हैं।

इसलिए बंधुओ वो ठाकुर तुम्हारी भक्ति और चढ़ावे के भी भूखे नहीं हैं, वो तो केवल तुम्हारे प्रेम के भूखे है उनसे प्रेम करना सीखो।

उनसे केवल और केवल किशोरी जी ही प्रेम करना सिखा सकती है।

तो क्या बोलना है.?

        "जय जय श्री राधे"
     ******************