मूल परिचय
श्रीनवद्वीप धाम महात्म्य
श्रीगौर और श्रीकृष्ण अभिन्न तत्व हैं , उनमें कोई भेद नहीं है। माधुर्य विग्रह श्रीकृष्ण ही साक्षात ओदार्यविग्रह श्रीगौरसुन्दर हैं। उसी प्रकार श्रीकृष्ण धाम श्रीवृन्दावन और श्रीगौर धाम नवद्वीप भी अभिन्न हैं। श्रीनवद्वीप धाम को गुप्त वृन्दावन कहा जाता है। अतैव दोनो तत्व और दोनों धाम नित्य हैं। जिनमे प्राकृतिक स्थान काल पात्र आदि का कोई विचार नहीं है।" कृष्णनाम करे अपराधेर विचार" अपराधी व्यक्ति करोड़ों करोड़ों जन्म तक कृष्ण नाम कीर्तन करने पर भी कृष्णप्रेम प्राप्त नहीं कर सकते, किंतु " गौर नित्यानंदेर नाँहिं ए सब विचार"।नाम लैलै प्रेम देंन, बहे अश्रुधार। अर्थात श्रीगौर श्री नित्यानन्द अपराधों का विचार नहीं करते उनका नाम लेने के साथ ही साथ हृदय में प्रेम उदित हो जाता है तथा नेत्रों से अश्रुधार भ निकलती है। श्री गौर की भांति ही गौरधाम परम उदार और महावदान्य है।श्रीगौरहरि और उनके श्रीनवद्वीप धाम के भजन तथा कृपा बिना श्री वृन्दावन धाम के दर्शन और कृपा प्राप्त करना कठिन है।
श्रीनवद्वीप धाम भी श्रीधाम वृन्दावन के समान 16 कोस का है।वृन्दावन में जिस प्रकार श्रीयमुना , श्रीगोवर्धन , श्रीरासस्थली , श्रीराधाकुण्ड,श्रीश्यामकुण्ड तथा विविध वन उपवन हैं उसी प्रकार उपरोक्त सभी स्थान भी श्रीनवद्वीप धाम में गुप्त रूप से विराजमान हैं।श्रीगौरसुन्दर इस धाम में नित्य निवास करते हैं। शुद्ध गौभक्तों के आनुगतय में नामसंकीर्तन के माध्यम से सौभाग्यशाली जीव श्रीमन महाप्रभु द्वारा की जा रही नित्य लीलाएं अनुभव कर सकते हैं। भक्ति प्राप्त करने की इच्छा रखने वाले साधकों को नाम अपराध , सेवा अपराध , धाम अपराध का पूर्ण रूप से त्याग करना चाहिए। सचिदानन्द श्रील भक्तिविनोद ठाकुर जी कृत श्रीनवद्वीप धाम महात्म्य ग्रंथ सभी वैष्णवों पर श्रीमन महाप्रभु जी की अपार करुणा है । श्रील ठाकुर महाशय ने श्रीमहादेव के आदेश अनुसार श्रीचैतन्यदेव की आविर्भाव स्थली श्रीमायापुर योगपीठ को प्रकाशित किया। वह नवद्वीप के गोद्रुम कुंज में कुटिया बनाकर भजन करने लगे वही रहते हुए उन्होंने इस कार्य को पूर्ण किया।श्रीयोगपीठ का संधान प्रापत कर उसे किसी श्रेष्ठ वैष्णव आचार्य द्वारा प्रमाणित करने के लिए उन्होंने ब्रज से वैष्णव श्रीसार्वभौम जगनाथ दास बाबा जी को बुलाया। उस स्थान पर पहुंचकर एक सौ चवालीस वर्ष की आयु वाले श्रीजगन्नाथ दास बाबा उद्दंण्ड कीर्तन करने लगे - आहा !! यही मेरे आराध्य श्रीसचीनन्दन श्रीगौरहरि की जन्म स्थली है।
श्रीचैतन्य देव महाप्रभु ने स्वयम अप्रकट होने के बाद अपने भक्तों को श्रीनवद्वीप धाम को जगत में प्रकट करने की आज्ञा दी थी । यह ग्रंथ श्रीठाकुर महाशय ने श्रीनित्यानन्द प्रभु और श्री जान्हवादेवी की विशेष कृपा से प्रचारित और प्रकाशित किया।मूल रूप से यह ग्रंथ बंगला भाषा मे है।इसको पढ़कर हम सब श्रीमन महाप्रभु श्रीनिताई प्रभु के कृपा पात्र बनें तथा अनेक छिपे हुए गूढ़ तथ्य जान सकें।
जय निताई जय गौर