श्री चैतन्य चरित्रामृतम

Monday 15 July 2019

Vrindavan gopishwar mahadevji वृन्दावन गोपीश्वर महादेव जी।



वृन्दावन में भगवान शंकर गोपी के रूप में
वृंदावन में यमुना किनारे वंशीवट क्षेत्र में है
गोपीश्वरमहादेव मंदिर।

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यह मंदिर पांच हजार वर्ष पुराना है।
यहां भगवान महादेव पार्वती, गणेश, नंदीश्वरके
साथ विराजमान हैं।
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कथा है कि कृष्ण-राधा और अन्य गोपिकाओं
की रासलीला देखने के लिए भगवान महादेव
अपनी समाधि भंग कर कैलाश से सीधे
वृंदावन चले आए। वहां गोपियोंने उन्हें यह कहकर
रोक दिया कि यहां भगवान श्रीकृष्ण के
अलावा किसी अन्य पुरुष का प्रवेश वर्जित है।
इस पर शंकर ने गोपियों को ही कुछ उपाय बतानेके
लिए कहा।
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ललिता सखी की सलाह पर महादेव गोपी रूप
धारण कर लीला में प्रवेश कर गए।
उन्होंने जैसे ही नृत्य करना शुरू किया, उनके सिर से
साडी सरक गई।
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श्रीकृष्ण ने गोपीरूपधारी महादेव को पहचान
लिया।
मुस्कुराते हुए उन्हें कहा,
आइए, महाराज गोपीश्वर!
आपका स्वागत है।
यह देख राधा क्रोधित होकर रोने लगीं।
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कहतेहैं कि उनके अश्रुओं से वहां मानसरोवर बन
गया। दरअसल, वे कृष्ण के असंख्य गोपियों के सामने
व्रज से बाहरकी एक गोपी को गोपीश्वरसंबोधित
करने पर नाराज हो गई थीं।
जब उन्हें असलियत पता चली, तो वे शिवजी पर
अत्यंत प्रसन्न हुईं।
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राधा-कृष्ण ने उनसे वरदान मांगने को कहा।
शंकरजीने कहा कि आप दोनों के चरण कमलों में
हमारा सदैव वृंदावन वास बना रहे।
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इस पर श्रीकृष्ण ने तथास्तु कहकर यमुना के निकट
वंशीवट के सम्मुख भगवान शंकर
को श्री गोपीश्वरमहादेव के रूप में विराजितकर
दिया। साथ ही, उनसे यह
कहा कि किसी भी व्यक्ति की व्रज- वृंदावन
यात्रा तभी पूर्ण होगी, जब वह गोपीश्वरमहादेव
के दर्शन कर लेगा।
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कालांतर में श्रीकृष्ण के प्रपौत्र वज्रनाभने
शांडिल्य ऋषि के सहयोग से वृंदावन में
गोपीश्वरमहादेव मंदिर की फिर से प्राण
प्रतिष्ठा कराई।
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समूचे विश्व में यही एकमात्र मंदिर है, जहां विराजे
शिवलिंगका श्रृंगार एक नारी की तरह होता है।
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यह इस बात का प्रतीक है कि यदि कोई जीव
परमेश्वर से मिलना चाहे, तो उसे नारीसुलभ
समर्पण का भाव अंतस में जाग्रत करना होगा।
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यहां प्रतिदिन शिवलिंगकी जल, दूध, दही, पंचामृत
से रुद्राभिषेक और पूजा-अर्चना होती है।
संध्याकाल में नित्य शिवलिंगका गोपी रूप में
श्रृंगार होता है। 
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इस मंदिर में पार्वती, गणेश
औरनंदी आदि गर्भ मंदिर के बाहर विराजमान हैं।
सामान्यतया भगवान शिव के दो रूपों का दर्शन
होता है-दिगंबर और बाघंबर वेश में।
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यहां लहंगा, ओढनी, ब्लाउज, नथ, कर्णफूल,
टीका आदि पहन कर और काजल, बिंदी,
लाली आदि लगाए गोपीश्वरमहादेव के दर्शन
होतेहैं। इस वेश में भगवान शिव की छवि अत्यंत
मनमोहकलगती है।
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चैतन्य महाप्रभु वृंदावन के गोपीश्वरमहोदवके
दर्शन कर बहुत अधिक भाव-विभोर हो गए थे।
कहतेहै कि उन्हें अप्रकट रूप से अलौकिक दिव्य
महारासलीला के दर्शन हुए थे।
श्रीपादसनातन गोस्वामी नित्य
प्रति गोपीश्वरमहादेव मंदिर का दर्शन करतेथे।
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यहां प्रतिदिन कई अनुष्ठान चलते रहते हैं।
विवाह और पुत्र प्राप्ति केबाद महिलाएं सज-धज
कर यहां भोले बाबा के दर्शन केलिए आती हैं।
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महाशिवरात्रि और श्रावण मास में यहां देश-
विदेश के
असंख्य भक्त- श्रद्धालुओं का सैलाब उमड पडता है।

जय जय श्री गोपेश्वर महाराज