कथा राधावल्ल
इस मंदिर की कहानी पुराणों में भी मिलती है। माना जाता है कि भगवान विष्णु के एक उपासक होते थे जिनका नाम आत्मदेव था। वे एक ब्राह्मण थे। एक बार उन्हें भगवान शिव के दर्शन पाने की इच्छा हुई फिर क्या था वे भगवान शिव का कठोर तप करने लगे अब भगवान भोलेनाथ ठहरे बहुत ही सरल, आत्मदेव के कठोर तप को देखकर वे प्रसन्न हुए और वरदान मांगने को कहा। ब्राह्मण आत्मदेव को तो बस दर्शन की भगवान शिव के दर्शनों की अभिलाषा थी जो कि पूरी हो चुकी थी लेकिन भगवान शिव ने वरदान मांगने की भी कही है तो उन्होंने उसे भगवान शिव पर ही छोड़ दिया और कहा कि भगवन जो आपके हृद्य को सबसे प्रिय हो यानि जो आपको अच्छा लगता हो वही दे दीजिये। तब भगवान शिव ने इस राधावल्लभलाल को प्रकट किया साथ ही इसकी पूजा व सेवा करने की विधि भी बताई। कई वर्षों तक आत्मदेव इस विग्रह को पूजते रहे बाद में महाप्रभु हरिवंश प्रभु इच्छा से इस विग्रह को वृंदावन लेकर आये और उन्हें स्थापित कर राधावल्लभ मंदिर की नीवं रखी। मदनटेर जिसे आम बोल-चाल में ऊंची ठौर कहा जाता है वहां पर लताओं का मंदिर बनाकर इन्हें विराजित किया।।।।
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