श्री चैतन्य चरित्रामृतम

Monday, 8 July 2019

प्रेम विरह और मिलन श्री राधा कृष्ण सत्य प्रेम छवि

प्रेम में विरह और मिलन...........

एक समय श्री यमुनाजी के तट पर श्रीराधा-माधव विहार कर रहे है.वृंदा देवी कर्ण-भूषण के योग्य (कान में पहनने योग्य)दो कमल श्रीमाधव को लाकर देती है.

श्रीकृष्ण सहर्ष उनको लेकर श्रीराधा के कानो में
पहनाने लगते है, इतने में ही देखते है कि कमल में एक भ्रमर (भौरा)बैठा है.

भ्रमर उड़ा,उसने कमल को तो छोड़ दिया और
श्रीराधा के मुख को कमल समझकर उसकी ओर चला,श्री राधा ने श्री हस्त के द्वारा उसको हटाना
चाहा,

भ्रमर राधारानी जी के श्री करतल को एक
कमल समझकर उसकी ओर उड़ा, ढीठ भ्रमर जा नहीं रहा है.

इससे डरकर श्री राधा अपनी ओढनी का आँचल
फटकारने लगी. मधुमंगल ने जब ये देखा तो तुरंत छड़ी मारकर भ्रमर को बहुत दूर हटा दिया और लौटकर कहा - "मधुसूदन (भ्रमर) चला गया".

इतना सुनते ही 'मधुसूदन' शब्द से भगवान श्रीकृष्ण समझकर श्रीराधा जी हाय! हाय! मधुसूदन कहाँ चले गए' पुकारकर रोने लगी!

" श्रीकृष्ण इस वन में मुझको त्यागकर क्यों चले गए ?यो कहकर वे आर्तनाद करने लगी.कृष्ण पास ही बैठे थे क्योकि वे ही तो फूल लाकर पहना रहे थे.
जब कृष्ण ने अपनी प्रियतमा के इस मधुरतम प्रेम वैचित्तय जनित विरह को देखा तो सब को चुप हो जाने के लिए कहा और
स्वयं मधुर हास्य करने लगे.

ये प्रेम वैचित्तय है जहाँ श्याम सुदंर पास में ही है फिर भी श्यामा जू विरह में डूबी हुई है,मिलन और विरह का अद्भुत और विलक्षण द्रश्य है,इसी तरह का एक उदाहरण और भी है.

प्रसंग 1 - कृष्ण विरह की असीम वेदना से पीड़ित श्रीराधा भयानक सर्पविष से विषमय हुए एक सरोवर में प्राण त्याग के लिए कूद पड़ती है,

इतने में ही श्रीकृष्ण दौड़ आते है और पीछे से दोनों भुजाओ के द्वारा श्रीराधा का कंठ धारण कर लेते है. श्रीराधा, कृष्ण की दोनों भुजाओ को कालसर्प समझती है और मन ही मन कहती है -

कि कैसा सौभाग्य है कि में दो सर्पो के द्वारा पकड़ ली गई हूँ, ये अभी मुझे डस लेगे और डसते ही इस विरह दग्ध जीवन का अंत हो जायेगा.

'विधाता बड़ा ही अनुकूल है' जो मेरी मन चाही मृत्यु को अभी तुरंत ही बुला देगा'.
सर्प डस नहीं रहे ये देखकर और स्पर्श सुख का अनुभव करके श्रीराधा मन ही मन कहती है

'उपयुक्त समय अपकार करने वाली वस्तुये भी प्रिय हो जाती है' सर्प डस तो नहीं रहे है, उल्टा स्पर्श सुख दे रहे है'.श्रीकृष्ण राधा के मणिबंधन में स्मन्तकमणि बाँध देतेहै,

मणि की ज्योति को देखकर राधा कहती है बड़ा
ही आश्चर्य है कि मणि विभूषित मस्तक काल सर्प भी मुझे डसने में देर कर रहा है हाय ! कृष्ण रहित इस जीवन का कब सदा के लिए अंत होगा!

श्रीकृष्ण के ह्रदय से चिपटी हुई राधा इस प्रकार
विरह-वेदना से छटपटाती हुई, मृत्यु की बाट देख रही है. यह "मिलन और विरह" का बड़ा मनोरम दृश्य हैं।

जय जय श्यामाश्याम

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