श्री चैतन्य चरित्रामृतम

Monday 15 July 2019

श्री राधा चरण उपासना भक्ति भाव ....shri Radha charan upasana bhakti bhav

श्री राधा चरण उपासना....


एक बार निकुंज में स्वामिनी जू के मन इच्छा जाग्रत हुई कि प्रियतम चलो लुका-छिपी खेलेंगे, खुला मैदान है, 

कहीं कोई तरु कहीं कोई लता निकटवर्ती कोई दृष्टिगोचर नहीं होती 
अब ऐसे खुले मैदान में कहाँ खेलेंगे, कहाँ छिपेंगे, पर स्वामिनी जू की आज्ञा है, 

प्रियतम ने कह दिया – जो आज्ञा प्रिया जू ! अब आधी सखियाँ प्रियाजी की ओर हो गयी, और आधी सखियाँ लाल जी की ओर हो गयी ।

प्रियाजी ने कहा – प्यारे ! पहले आप छिपिये, आँख बंद किये प्रियाजी ने और प्रियाजी की ओर की सब सहचरियों ने, और आँख खोला तो देखा क्या ?

 कि जहाँ देखो, तहां लालजी हीं खड़े दिखाई दे रहे हैं, लाल जी और लाल जी की और की समस्त सहचरियां, लालजी का स्वरूप हो गयी, प्रियाजी ने नेक (थोड़ी) देर लगाई और स्पर्श करके, 

प्रियतम का कर थाम के कहा – प्रियतम ! बाहर आ जाईये । श्री लाल जी बड़े आश्चर्य में पड़ गये, प्रियाजी आपने कैसे पहचान लिया ?

प्रियाजी ने कहा – यह बाद में बताउंगी, अब हमारी बारी है, हम छिपेंगे । अब लाल जी और लाल जी की ओर की समस्त सहचरियों ने आँख बंद किये । 

फिर आँख खोला तो, क्या देखते है, दूर मैदान में दूर-दूर तक मोगरे की कलियों के ढेर पड़े हैं, प्रियतम बहुत देर तक कभी यहाँ जाएँ, कभी वहाँ जाएँ , 

कभी इधर देखे, कभी उधर देखें, फिर एक ढेर के पास आकर प्रियतम ने कहा – प्यारिजू ! आप भी बाहर आ जाओ । 

प्रियाजी बाहर आयीं, पर प्रियाजी का आश्चर्य अधिक था, क्योकि स्वामिनीजू ने तो स्पर्श करके प्रियतम को पहचाना, पर प्रियतम ने बिना स्पर्श किये 

बोली – प्यारे ! आपने कैसे पहचान लिया ? तो लाल जी ने कहा – प्यारीजू ! आपका तो स्वरूप और प्रभाव, सुभाव ही ऐसा है कि आप कहीं छुप ही नहीं सकतीं, 

आपकी समस्त सहचरियां जिन मोगरे की कलियों के ढेर में छिपी, वे तो सब कलियाँ ही रह गयीं, पर आप जीन मोगरे की कलियों के ढेर में छिपी थीं, वह सब कलियां आपके श्री अंग का स्पर्श पा के फूल बन गयी, उससे मैंने झट पहचान लिया । 

अब दोनों जीते, तो ललिता जी को न्याय करना है, कि दोनों में से कौन जीता ?

 अब देखिये कायदे से तो लाल जी जीते, क्योंकि प्रियाजी ने स्पर्श करके ढूंढा, और लाल जी ने बिना स्पर्श किये ।

पर ललिता जी बड़ी चतुर हैं, और बोली – लाल जी ने खोजने में बड़ी देर कर दी, इसलिए जीतीं तो प्रियाजी । 

लेकिन यहाँ सहचरियों का पक्षपात देखिये, प्रियाजी को जिताया पर लाल जी को हराया नही, क्यों ?

 जब सहचरियों ने कहा – स्वामिनीजू आप जीती हैं, हारने वाले को दण्ड मिलना चाहिए तो, प्रियाजी ने ललिता जी से कहा – तू ही दण्ड निधारित कर दे, 

तो ललिता जी ने कहा दण्ड यह है कि लूका – छिपी का खेल खलने से प्रियाजी श्रमित हो गयी हैं, इसलिए अब लाल जी प्रियाजी की चरण – सेवा करेंगे, और लाल जी को अपना मुंह माँगा मनोरथ मिलता है ।

यहाँ देखिये श्री प्रियाजी जीतकर भी रसका दान करती हैं, और श्री लाल जी हारकर भी रस का पान करते हैं, यही सहचरियों का मनोरथ है, 

यही श्री राधा चरण उपासना है, जो केवल श्री वृन्दावन की रस-रीति से, और श्री वृन्दावनेश्वरी के चरण हृदय में धारण करने पर हीं स्फूरित होता है।


 श्री श्री युगल सरकार की जय