श्री चैतन्य चरित्रामृतम

Monday, 1 July 2019

प्रेम दुरी बर्दाश्त नही करता कथा वृन्दावन से

।।श्रीगणेशाय नमः।।


प्रेम दूरी बर्दाश्त नही करता।

राधे राधे ❤ ❤ ❤ ❤ 

प्रेम करोगे तो विरह झेलोगे ही ,
क्योंकि जिसे चाहोगे जब चाहोगे तभी न मिल जाएगा। और जितना चाहोगे उतना निष्ठुर मालूम होगा क्योंकि जितना माँगोगे उतना ही पाओगे तो लगेगा दूरी अभी और शेष है।

प्रेम दूरी बर्दाश्त नहीं करता इंच भर दूरी बर्दाश्त नहीं करता। 
प्रेम द्वैत बर्दाश्त नहीं करता। 
और जब तक द्वैत रहता है तब तक विरह रहता है। 
प्रेम तो अद्वैत चाहता है। 
प्रेम तो चाहता है एक हो जाऊँ बिल्कुल एक हो जाऊँ।

इस संसार में प्रेम की अगर कोई भूल है तो बस इतनी ही है कि इस संसार का कोई भी प्रेम अद्वैत का अनुभव नहीं देता। 
और देता भी है तो क्षणभंगुर को जरा सी देर को एक झलक आई और गई। 
और झलक जाने के बाद और भी अंधेरा रह जाता है और भी गड्ढे में गिर जाते हो, 
और भी विषाद घना हो जाता है।

मैं तो तुमसे कहती  हूँ इस जगत के प्रेम को जानो ताकि द्वैत छाती में चुभ जाए कटार की भाँति ,
तभी तो तुम अद्वैत की तरफ चलोगे। 
तभी तो तुम उस परम प्यारे को खोजोगे जिसके साथ मिलन एक बार हुआ तो हुआ। 
जिसके साथ मिलन होने के बाद फिर कोई बिछुड़न नहीं होती।   

मङ्गलमयी प्रभात वेला