भक्त रसखान
सैयद इब्राहीम नामक एक मुसलमान व्यक्ति ने धंधा आदि किया। उसमें उसका मन नहीं लगा। आखिर वह एक सुंदरी के चक्कर में आ गया। कभी तो सुंदरी उससे मुहब्बत करती तो कभी उसका अपमान कर देती।
एक बार सुंदरी द्वारा अपमानित किये जाने पर इब्राहीम के दिल को बड़ी चोट लगी। भगवान कब, किस ढंग से, किसको अपने रंग में रँग दें, कहना मुश्किल है ! उसका कोई पुण्योदय हुआ....
वहाँ से अपमानित होकर इब्राहीम चला तो कहीं पर उसे फारसी भाषा में 'श्रीमद् भागवत' पढ़ने का अवसर मिल गया। भगवान श्रीकृष्ण की लीलाएँ पढते-पढ़ते उसने विचार किया कि मोहब्बत करें तो श्रीकृष्ण से करें। किसी ओर से क्या करें ?'
इब्राहीम गोकुल-वृंदावन गया, गोवर्धन पर्वत की प्रदक्षिणा की, संत-महात्माओं के दर्शन किये। फिर वृन्दावन में भी श्री वल्लभाचार्य के पुत्र अरूणी के उत्तराधिकारी गोस्वामी विट्ठलनाथ की शरण गया और उनसे प्रार्थना की कि 'महाराज ! मैंने पैसे कमाकर देख लिये, वाहवाही करा कर देख लिया किंतु कुछ न मिला... जिस शरीर को भोग और यश मिला वह तो अंत में दफना दिया जाएगा। अब आप कृपा करके मुझे कन्हैया की भक्ति का दान दीजिये।'
गोस्वामी का हृदय इब्राहीम की प्रार्थना से प्रसन्न हो उठा और उन्होंने उसे मंत्र दे दिया। सैयद इब्राहीम श्रीकृष्ण की पूजा करता, उनकी छवि को निहारते-निहारते प्रेम पूर्वक गुरूमंत्र का जप करता।
धीरे-धीरे वे कृष्णप्रेम-रस में रँगते गये, उनको अंतरात्मा का रस आने लगा और उनका नाम पड़ गया - 'रसखान'।
उन्होंने श्रीकृष्ण-प्रेमके अनेकों पद और कविताएँ लिखीं जो भारतीय साहित्य में आज भी देखने को मिलती हैं। 'गुरूग्रंथ साहिब' में बाबा फरीद के वचन दर्ज किये गये हैं और हिन्दी साहित्य में सैयद इब्राहीम-रसखान,रैयाना तैयब, जलालुद्दीन रोमी आदि के वचन मिलते हैं। कितनी विशाल हृदय है भारतीय संस्कृति !
रसखान लिखते हैं-
तेरी माननी तो हियो, हेरी मोहिनी मान।
प्रेमदेव की छवि लखी, भये मिया रसखान।।
एक हाड़-मांस की पुतली में सुख खोजने की बेवकूफी मिटी, वहाँ से मुख मोड़ा और लाखों सुंदरियों-सुंदरों से भी प्यारे, यहाँ तक कि कामदेव से भी प्यारे कृष्ण को देखकर मियाँ से रसखान हो गया। हे रसीले कृष्ण ! मैं तेरा दीवाना हो गया.....
रसखान लिखते हैं-
सेस गनेस महेस दिनेस सुरेसहु जाहि निरंतर गावैं।
जाहि अनादि अनंत अखंड अछेद अभेद सुबेद बतावैं।।
नारद से सुक व्यास रहैं पचि हारे तऊ पुनि पार न पावैं।
ताहि अहीर की छोहरिया छछिया भरी छाछ पै नाच नचावैं।।
भगवान शेष, गणेश, महेश, सूर्य, इन्द्र आदि जिन सच्चिदानंद परमात्मा कृष्ण का गुणगान करते है, जो अनादि, अनंत, अखंड, अछेद्य और अभेद हैं, शुकदेवजी जिनका स्मरण करके समाधिस्थ हो जाते हैं, व्यासजी जिनकी व्याख्या करते अघाते नहीं हैं, नारदजी जिनके नाम रस में मग्न रहते हैं, वे ही ग्वालिनों के प्रेम से छछियनभरी छाछ के लिए नाचने को तैयार हो जाते हैं !
कैसा है उस प्रेमास्पद श्रीकृष्ण की प्रेमाभक्ति का प्रभाव कि एक मुसलमान सैयद, कहाँ तो शरीर के सुख-भोग में फँसा था और पढ़ी प्यारे श्रीकृष्ण की लीलाएँ तो उनके प्रेमरस में दीवाना हो इब्राहीम से रसखान हो गया !
जय श्री राधा
¸.•*""*•.¸
Զเधे Զเधे
💐🙏🏻🙏🏻💐
सैयद इब्राहीम नामक एक मुसलमान व्यक्ति ने धंधा आदि किया। उसमें उसका मन नहीं लगा। आखिर वह एक सुंदरी के चक्कर में आ गया। कभी तो सुंदरी उससे मुहब्बत करती तो कभी उसका अपमान कर देती।
एक बार सुंदरी द्वारा अपमानित किये जाने पर इब्राहीम के दिल को बड़ी चोट लगी। भगवान कब, किस ढंग से, किसको अपने रंग में रँग दें, कहना मुश्किल है ! उसका कोई पुण्योदय हुआ....
वहाँ से अपमानित होकर इब्राहीम चला तो कहीं पर उसे फारसी भाषा में 'श्रीमद् भागवत' पढ़ने का अवसर मिल गया। भगवान श्रीकृष्ण की लीलाएँ पढते-पढ़ते उसने विचार किया कि मोहब्बत करें तो श्रीकृष्ण से करें। किसी ओर से क्या करें ?'
इब्राहीम गोकुल-वृंदावन गया, गोवर्धन पर्वत की प्रदक्षिणा की, संत-महात्माओं के दर्शन किये। फिर वृन्दावन में भी श्री वल्लभाचार्य के पुत्र अरूणी के उत्तराधिकारी गोस्वामी विट्ठलनाथ की शरण गया और उनसे प्रार्थना की कि 'महाराज ! मैंने पैसे कमाकर देख लिये, वाहवाही करा कर देख लिया किंतु कुछ न मिला... जिस शरीर को भोग और यश मिला वह तो अंत में दफना दिया जाएगा। अब आप कृपा करके मुझे कन्हैया की भक्ति का दान दीजिये।'
गोस्वामी का हृदय इब्राहीम की प्रार्थना से प्रसन्न हो उठा और उन्होंने उसे मंत्र दे दिया। सैयद इब्राहीम श्रीकृष्ण की पूजा करता, उनकी छवि को निहारते-निहारते प्रेम पूर्वक गुरूमंत्र का जप करता।
धीरे-धीरे वे कृष्णप्रेम-रस में रँगते गये, उनको अंतरात्मा का रस आने लगा और उनका नाम पड़ गया - 'रसखान'।
उन्होंने श्रीकृष्ण-प्रेमके अनेकों पद और कविताएँ लिखीं जो भारतीय साहित्य में आज भी देखने को मिलती हैं। 'गुरूग्रंथ साहिब' में बाबा फरीद के वचन दर्ज किये गये हैं और हिन्दी साहित्य में सैयद इब्राहीम-रसखान,रैयाना तैयब, जलालुद्दीन रोमी आदि के वचन मिलते हैं। कितनी विशाल हृदय है भारतीय संस्कृति !
रसखान लिखते हैं-
तेरी माननी तो हियो, हेरी मोहिनी मान।
प्रेमदेव की छवि लखी, भये मिया रसखान।।
एक हाड़-मांस की पुतली में सुख खोजने की बेवकूफी मिटी, वहाँ से मुख मोड़ा और लाखों सुंदरियों-सुंदरों से भी प्यारे, यहाँ तक कि कामदेव से भी प्यारे कृष्ण को देखकर मियाँ से रसखान हो गया। हे रसीले कृष्ण ! मैं तेरा दीवाना हो गया.....
रसखान लिखते हैं-
सेस गनेस महेस दिनेस सुरेसहु जाहि निरंतर गावैं।
जाहि अनादि अनंत अखंड अछेद अभेद सुबेद बतावैं।।
नारद से सुक व्यास रहैं पचि हारे तऊ पुनि पार न पावैं।
ताहि अहीर की छोहरिया छछिया भरी छाछ पै नाच नचावैं।।
भगवान शेष, गणेश, महेश, सूर्य, इन्द्र आदि जिन सच्चिदानंद परमात्मा कृष्ण का गुणगान करते है, जो अनादि, अनंत, अखंड, अछेद्य और अभेद हैं, शुकदेवजी जिनका स्मरण करके समाधिस्थ हो जाते हैं, व्यासजी जिनकी व्याख्या करते अघाते नहीं हैं, नारदजी जिनके नाम रस में मग्न रहते हैं, वे ही ग्वालिनों के प्रेम से छछियनभरी छाछ के लिए नाचने को तैयार हो जाते हैं !
कैसा है उस प्रेमास्पद श्रीकृष्ण की प्रेमाभक्ति का प्रभाव कि एक मुसलमान सैयद, कहाँ तो शरीर के सुख-भोग में फँसा था और पढ़ी प्यारे श्रीकृष्ण की लीलाएँ तो उनके प्रेमरस में दीवाना हो इब्राहीम से रसखान हो गया !
जय श्री राधा
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