श्री चैतन्य चरित्रामृतम

Saturday, 23 February 2019

Vrindavan ki sachi katha :- Radha krishna prem holi leela राधा कृष्ण प्रेम होली लीला (कथा)

श्री राधा रानी जी और कान्हा जी की होली का बड़ा ही सुन्दर दृश्य ।

ब्रज मै बसंत पंचमी से फाल्गुन पूर्णिमा तक 40 दिवसीय होली मनाई जाती है। इसलिये कहा भी गया है
सारे जग मे होरी और ब्रज मै होरा।
एक बार श्री राधा जी अपनी सखियों के साथ बैठी थी और उनसे होली मनाने की चर्चा कर रही थी तभी कुछ देर बाद वहां कान्हा जी आये वो भी उनकी वार्तालाप सुनने लगे और बोले की हम भी तुम्हारे साथ होली खेलेंगे।
श्री राधा जी ने कहा की ठीक है पर यदि आप 3 बार मै मेरे मुख् मंडल पर रंग ना लगा पाये तो आपके नयनों पर मैं काजल लगाऊंगी।
कान्हा जी ने कहा ठीक है।
अगले दिन कान्हा जी होली खेलने की तैयारी करके आये। साथ लाये होली का केशरिया रंग गुलाल।
राधा जी भी तैयार थी।
पहली बार मै कान्हा जी ने दोनों हाथों मै केशरिया रंग लिया और राधा जी के चारों और घूम रहे। राधा जी भी सचेत थी वो भी सावधानी से देख रही थी की कब कान्हा जी रंग फेकेंगे और मैं उस रंग से कैसे बच जाऊ।
कान्हा जी ने सोचा की आज तो बड़े आराम से ही राधा जी को रंग लगा देंगे। और जैसे ही कान्हा जी ने श्री राधा जी को रंग लगाने की कोशिश की राधा जी सावधान थी वो तुरंत ही पीछे हट गई और अपना मुख कान्हा जी से दूर कर लिया इधर कान्हा जी रंग लेकर राधा जी को लगाने ही वाले थे पर राधा जी के पीछे हटने से सारा केशरिया रंग धरती पर गिर गया।
सभी बड़े जोर जोर से हँसने लगे।
अब दूसरी बार मै कान्हा जी ने उनका ही पिला फटका (दुपटटा) लिया उसमै ढेर सारा गुलाल भर कर उस दुपट्टे को झोली बना लिया और उसको फैकने के लिए घुमाने लगे राधा जी भी ūसावधान थी। अब जैसे ही कान्हा जी ने गुलाल से भरी झोली राधा जी की और फेकी राधा जी तुरंत ही उस स्थान से हट कर सखियो के साथ दूर खड़ी हो गई।
अब कान्हा जी की 2 बारी पूर्ण हो चुकी थी सब गोप ग्वाल और गोपियां भी आनंद मग्न होकर यह लीला देख रहे थे।
अब तीसरी बारी के लिए कान्हा जी भी राधा जी को रंग मै रंगने के लिये उत्साहित थे।
कान्हा जी ने रंग लिया और राधा जी की और दौड़ लगा दी राधा जी भी तैयार थी उन्होंने भी दौड लगाई राधा जी आगे कान्हा जी उनके पीछे और इनके पीछे सारे गोप गोपियां।
कभी राधा जी पेड़ पर चढ़ती तो कान्हा जी भी चढ़ने की कोशिश करते तो राधा जी झट से निचे उतरकर कभी अटारी पर पहुँच जाती तो कभी किसी घर मे छुप जाती। कान्हा जी उस घर के बहार ही छुप गए जहाँ राधा जी थी। कुछ देर पश्चात् जब राधा जी को लगा की अब कान्हा जी नहीं है तो वो घर से बहार की और आती है कान्हा जी ने देख लिया वो भी सावधानी से राधा जी की और छिप कर पिछे तरफ से आने लगे।
राधा जी को कान्हा जी की आहट सुनाई दी तो वो भी जल्दी से आगे की और बढ़ गई इधर कान्हा जी रंग लगाने की तैयारी मै थे राधा जी के बढ़ जाने से सारा रंग वहीँ घर की दहलीज पर ही गिर गया।
सभी फिर हँसने लगे।
अब कान्हा जी को राधा जी ने सभी गोप गोपियों के बिच बैठाया और राधा जी ने दोनों हाथों की चारों उंगलिया भरकर काज़ल लिया और कान्हा जी की आँखों के निचे गाल तक लगाया।
कान्हा जी का यह अद्भुत श्रंगार देखकर सभी देवतागण भी आकाश से भगवान की
जय जय कार करते हुए पुष्प वर्षा करने लगे।
बोलो होली के रसिया की जय।
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