💠बैठे हरि राधासंग कुंजभवन अपने रंग। कर मुरली अधर धरे सारंग मुख गाई ll मोहन अतिही सुजान परम चतुर गुननिधान। जान बुझ एक तान चूक के बजाई ll 💠प्यारी जब गह्यो बीन सकल कला गुनप्रवीन। अति नवीन रूपसहित वही तान सुनाई ll वल्लभ गिरिधरनलाल रिझ दई अंकमाल। कहत भलें भलें लाल सुन्दर सुखदाई ll ॥ *श्रीराधारमणलाल की जय*॥ ॥ *जय श्री राधे* ॥ 🙏🙏श्री हरिदास राधावल्लभाय नमः🙏🙏