श्री चैतन्य चरित्रामृतम

Wednesday, 12 February 2020

Vrindavan Bhakt mansukh Baba Ji वृन्दावन भक्त मनसुख बाबा जी

*वृन्दावन भक्त "मनसुखा बाबा" भक्ति पथ*

            वो सदा चलते फिरते ठाकुर जी की लीलाओं में खोये रहते थे। ठाकुर की सखा भाव से सेवा करते थे। सब संतो के प्रिय थे इसलिए जहाँ जाते वहाँ प्रसाद की व्यवस्था हो जाती। और बाकी समय नाम जप और लीला चिंतन करते रहते थे।
            एक दिन उनके जांघ पे फोड़ा हो गया असहनीय पीड़ा हो रही थी। बहुत उपचार के बाद भी कोई आराम नहीं मिला। तो एक व्यक्ति ने उस फोड़े का नमूना लेके आगरा के किसी अच्छे अस्पताल में भेज दिया। वहाँ के डॉक्टर ने बताया की इस फोड़े में तो कैंसर बन गया है। तुरंत इलाज करना पड़ेगा नहीं तो बाबा का बचना मुश्किल है।
          जैसे ही ये बात बाबा को पता चली की उनको आगरा लेके जा रहे हैं,  तो बाबा लगेे रोने और बोले हमहूँ कहीं नहीं जानो हम ब्रज से बाहर जाके नहीं मरना चाहते। हमें यहीं छोड़ दो अपने यार के पास हम जियेंगे तो अपने यार के पास और मरेंगे तो अपने यार की गोद में। हमें नहीं करवानो इलाज। और बाबा नहीं गए इलाज करवाने। बाबा चले गए बरसाने। बहुत असहनीय पीड़ा हो रही थी। उस रात बाबा दर्द से कराह रहे थे। तभी क्या देखते हैं वृषभानु दुलारी श्री किशोरी जू अपनी अष्ट सखियों के साथ आ रही हैं। बाबा के समीप आके ललिता सखी से बोली अरे ललिते जे तो मनसुखा बाबा हैं ना। तो ललिता जी बोली हाँ श्री जी ये मनसुखा बाबा हैं और डॉक्टर ने बताया की इनको कैंसर है देखो कितना दर्द से कराह रहे हैं।
          परम दयालु करुनामई सरकार श्री लाडली जी से उनका दर्द सहा नहीं गया और बोली ललिता बाबा को कोई कैंसर नहीं हैं। ये तो एक दम स्वस्थ हैं। जब बाबा इस लीला से बाहर आये तो उन्होंने देखा की उनका दर्द एक दम समाप्त हो गया, और जांघ पर यहाँ तक की किसी फोड़े का निशान भी नहीं रहा। ऐसी करुणामयी सरकार हैं श्री लाडली जी हमारी।
 
श्री राधे कृष्णा

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