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बुद्ध का एक भिक्षु था, पूर्ण। उसकी शिक्षा पूरी हो गई थी। उसने बुद्ध के पास जाकर आज्ञा मांगी कि अब मैं जाऊं और आपके अमृत संदेश को गांव-गांव पहुंचा दूं।
बुद्ध ने कहा, तू कहां जाना चाहेगा? किस तरफ?
उस पूर्ण ने कहा, बिहार में एक छोटा सा इलाका था, सूखा उसका नाम था। उस पूर्ण ने कहा कि अब तक सूखा की तरफ कोई भी भिक्षु नहीं गया, मैं सूखा जाना चाहता हूं।
बुद्ध ने कहा, छोड़ दे यह इरादा। अब तक कोई नहीं गया, इसी से तुझे सोचना था कि कोई बात जरूर होगी। उस इलाके के लोग बहुत अशिष्ट, बहुत असभ्य, अत्यंत कटु व्यवहार वाले लोग हैं, बहुत हिंसक, बहुत क्रोधी, इसीलिए कोई वहां नहीं गया।
पूर्ण ने कहा, तब तो मुझे वहां जाना ही पड़ेगा, उनके लिए ही फिर मेरी जरूरत है।
अगर दीये से कोई कहे कि उस तरफ मत जा जहां अंधेरा है, तो दीया क्या कहेगा? मैं न जाऊं उस तरफ जहां अंधेरा है? तो दीया कहेगा, फिर मेरी वहां क्या जरूरत जहां सूरज है? मैं वहीं जाऊंगा जहां अंधेरा है।
मुझे आज्ञा दें कि मैं सूखा जाऊं?
बुद्ध ने कहा, मैं आज्ञा तुझे एक ही शर्त पर दे सकता हूं कि तू मेरे तीन प्रश्नों के उत्तर दे दे।
पूर्ण ने कहा, आप पूछें?
बुद्ध ने कहा, वहां तू जाएगा, लोग गालियां देंगे, अपमान करेंगे, कटु वचन कहेंगे, तेरे मन को क्या होगा?
हंसने लगा वह पूर्ण, उसने सिर रख दिया बुद्ध के चरणों पर और कहा, आप पूछते हैं इतने दिन मुझे जानने के बाद क्या होगा मेरे मन को? यही होगा, कितने भले लोग हैं, सिर्फ गालियां देते हैं, अपमान करते हैं, मारते नहीं, मार भी सकते थे।
बुद्ध ने कहा, पूर्ण यह भी हो सकता है कि कोई तुझे वहां मारे भी, फिर क्या होगा?
पूर्ण ने कहा, जानते हैं फिर भी पूछते हैं आप? होगा यही, कितने भले लोग हैं, सिर्फ मारते हैं, मार ही नहीं डालते, मार भी डाल सकते थे।
बुद्ध ने कहा, अंतिम बात और पूछ लूं, अगर उन्होंने मार ही डाला, तो मरते क्षणों में तुझे क्या होगा?
सोच सकते हैं, क्या कहा होगा पूर्ण ने? आता है खयाल कोई? ठीक था कि गाली देते थे।
तो पूर्ण ने कहा, मार डालेंगे, मारते नहीं, मार डालते नहीं, यह बहुत, यही शुभ है।
लेकिन बुद्ध ने कहा, मार ही रहे हैं, तेरी हत्या कर रहे हैं, क्या होगा तेरे मन को?
पूर्ण ने कहा, जानते हैं भलीभांति आप, फिर भी पूछते हैं? यही होगा, कितने भले लोग हैं, उस जीवन से छुटकारा दिलाए देते, जिसमें कोई भूल-चूक हो सकती थी।
*ऐसी दृष्टि का फल है ~ शांति और इससे उलटी दृष्टि का फल है ~ अशांति।*
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