श्री चैतन्य चरित्रामृतम

Wednesday, 14 August 2019

Satya bhakt katha भक्तो की सत्य कथा 99

*श्रीनिताईचाँद*

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*पण्डित श्रीरामकृष्णदास बाबाजी महाराज*

    एक दिन ग्वालियर के राजा माधवराव के बड़े भ्राता बलवन्तराव ने आकर बहुमूल्य अलंकार पण्डित बाबाजी के आगे रखे कि वे उन्हें वैष्णवों में दान कर दें। आपने उस धन को अंगीकार न करके उसे बहुत फटकारा।किसी अन्य बाबाजी के पास वैष्णव-सेवा के लिए दे देने का परामर्श दिया।

    श्याम-कुटी पर रहने के समय बाबा श्रीगौरांगदास जी तथा श्रीप्रियाशरणदास जी इनके आनुगत्य में भजन करते थे। राजर्षि वनमाली रायबहादुर तथा राजर्षि मणीचन्द्र, नन्दी महाशय आदि उपदेश ग्रहण व सत्संग के लिए आपके पास आया-जाया करते थे। फिर श्रीकृपासिन्धुदास जी ने आकर इनके चरणों में आत्म-निवेदन किया, १६१८ में बाबाजी का शरीर जब विशेष रोग से ग्रस्त हो गया, तो अन्यान्य अनेक वैष्णवों ने भी सेवा-लाभ किया, परन्तु श्रीकृपासिन्धुदास जी ने दारुण दुःख सहन कर इनकी सेवा का विशेष सौभाग्य प्राप्त करने के साथ-साथ स्वप्नादेश से श्रीमन्महाप्रभु जी की कृपा प्राप्त कर ली। स्वस्थ होने पर पण्डितजी ने अपने शरीर की देखभाल का सब भार श्रीकृपासिन्धु जी पर छोड़ दिया और आप निश्चिन्त हो गये।श्रीश्रीभूगर्भ गोस्वामी पाद की सन्तान गो० श्रीविनोदविहारी जी वेदान्त-रत्न को इन्होंने एक दिन भेष देकर कृतार्थ किया।वर्तमान युग के महात्माओं में आप एक ऐसी विभूति थे जिनके दर्शन करते ही लोगों के चित्त में शान्ति-श्रद्धा और भगवत्प्रेम का प्रादुर्भाव हो जाता था। आपका एक पल भी बिना भजन के खाली नहीं जाता था। सभी सम्प्रदायों के तत्कालीन महात्मा आपमें अगाध श्रद्धा रखते थे।

    सन् १६३८ के होली एवं कुम्भ-उत्सव पर पंजाब से श्रीरघुराथदास हकीम (लेखक के पिता महोदय) अपने भाईयों एवं माताजी के साथ वृन्दावन आए। आपके दर्शन के लिए गये पं०बाबाजी ने उन्हें सम्बोधन करते हुए कहा कि तुम जाकर अपने नगर में नाम संकीर्तन का प्रचार करो। इनके कृपा आदेश से श्रीहरिनाम संकीर्तन मण्डल की स्थापना हुई। विभाजन के बाद इसका
पुनर्गठन किया गया जो श्रीधामवृन्दावन में अब अनेक गौड़ीय ग्रन्थों के प्रकाशन तथा प्रति वर्ष श्रीहरिनाम संकीर्तन सम्मेलन द्वारा श्रीपण्डित बाबाजी महाराज के कृपादेश का पालन करते हुए श्रीमन्महाप्रभु श्रीनिताईचाँद के प्रेमभक्ति सिद्धान्तों के प्रचार में संलग्न है।

    श्रीपण्डित बाबा महाराज सम्वत् १६६७ आश्विन कृष्णा चतुर्थी को ब्रज-वृन्दावन के अन्तिम 'सिद्धबाबा' कहला कर तिरोहित हो गए।

क्रमशः

श्रीगुरुगौरांगो जयते !!