श्री चैतन्य चरित्रामृतम

Friday 2 August 2019

महामंत्र का प्रेम रस माधुरी 🙏🙏🕉️ MAHAMANTRA PREM RAS MADHURI

श्री प्राणेश्वर
चलो महामंत्र की व्याख्या सुनते है 
मैं लिखता हूँ 
श्री जी रूप सखी के भाव में


यह जो महामंत्र है
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे

यह मंत्र याद रखना कोई " लोक साधारण कल्याण भाव से नहीं बोला गया जैसे और मंत्र
यह मंत्र
उस " भाव दशा को दर्शाता है प्रेम की सबसे उच्चतम अवस्था होती है 
यह महामंत्र " महाभाव प्रेम के अनिवर्चनीय रस। के अस्वादन भाव में बोला गया है

देखिए हर इष्ट के मंत्र में " इष्ट का नाम से सम्बोधन होता है" और इष्ट को पता होता है
के जीव उसका नाम ले रहा है 

परंतु इस महामंत्र के अति उच्चतम रस वैलक्षण ऐसा है के महारस के समुन्दर में महाभाव के प्रेम के आनंद से आंदोलित चित इष्ट को इस महाप्रेम रस धारा में " विस्मरण करा देता है 
के वो इष्ट है और 
उस महाभाव अति प्रेम में वो " अपने को कहीं प्रेम में खो कर

इस भाव समुन्दर में यह महामंत्र का उच्चारण करता है

हरे का अर्थ

श्यामसुंदर उस महाभाव रस की समुन्दर में
अपने को भूल 
राधारानी के अत्यंत चिंतन में स्वयं भूल कर कहते है 

क्या मैं कृष्ण हूँ???

हरे का अर्थ राधा है 

कृष्ण स्वयम् उस प्रेम रस में निमग्न हो " राधा को पुकारते है " 

राधे 
मतलब " हरे" 
हरे मतलब  " जो श्यामसुंदर के चित का हरण करे " 
राधा ही तो है 

तो पहला अक्षर बोले 
राधा" मतलब हरे

हरे मतलब " राधा" जब कृष्ण हरे अर्थात राधा कहते है तब 
तब महामंत्र के दूसरे अक्षर " कृष्ण" 
तब राधारानी पूछती है 
बोलो कृष्ण क्या हुआ 
आपने हरे अर्थात राधा मेरा नाम लिया 
क्या हुआ प्राणेश्वर

अब फिर " हरे" शब्द आता है 
हरे कृष्ण हरे
इस " हरे " शब्द में
कृष्ण पूछते है 
राधा आपने मुझे कृष्ण कहा है 
क्या मैं कृष्ण हूँ 

उस उच्चतम प्रेम रस भाव समाधि में कृष्ण भूल जाते है के वो कृष्ण है 
और राधा भाव में आ जाते है

फिर " कृष्ण" मंत्र में आता है 
राधारानी बोलती है 
हाँ आप कृष्ण हो 
मेरे प्राणनाथ

अब दो बार 
" कृष्ण कृष्ण"  आता है 

श्यामसुंदर पूछते है 
क्या राधारानी 
मैं " कृष्ण" " कृष्ण" हूँ
देखिए भाव की समाधि देखिए 
इस अनंत प्रेम भाव में कृष्ण राधा भाव में आ जाते है 
दोनो एक है ना रस समुद्र

" हरे हरे " 
कृष्ण कहते है राधारानी से 
आप भूल रही हो 
मैं राधा हूँ 
मैं राधा हूँ

अब दूसरा line महामंत्र की

हरे राम
राधारानी कहती है 
आप " राधा" नहीं हो 
आप " राधारमण" हो राधा को अनन्दित करने वाले
मेरे राधारमण

फिर 
" हरे राम" आता है 
श्यामसुंदर कहते है 
क्या क्या बोले आप 

मैं राधारमण हूँ 
राधा रमण
आपको आनंद देने वाला

फिर 
" राम राम" आता है 
राधारानी विश्वास दिलाती है 
हाँ प्राणेश्वर आप 
राधारमण हो 
राधा रमण हो

अब 
" हरे हरे " 
अब अंत में 
श्री कृष्ण उस राधाभाव में इतने तन्मय है के hosh में कहाँ है 
वो उस राधाभाव सागर में गोते लगाते हुए बोलते है 

" नहि नहि" 

मैं राधा हूँ 
राधा हूँ" कृष्ण नहीं हूँ

यह है महामंत्र का " प्रेम रस रहस्य" 
इसी भाव से 
महाप्रभुजी ने बोला था 
क्यूँकि वो स्वयं राधा भाव में रहते थे

श्री रघुनाथ जी गोस्वामी जी रति मंजरी
कहते जब राधारानी विरह भाव में होती है तब अपने दोनो हाथो से ताल मार इस भाव से महामंत्र का उच्चारण करती 
 राधाश्री राधा 🌹