श्री प्राणेश्वरचलो महामंत्र की व्याख्या सुनते हैमैं लिखता हूँश्री जी रूप सखी के भाव मेंयह जो महामंत्र हैहरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरेहरे राम हरे राम राम राम हरे हरेयह मंत्र याद रखना कोई " लोक साधारण कल्याण भाव से नहीं बोला गया जैसे और मंत्रयह मंत्रउस " भाव दशा को दर्शाता है प्रेम की सबसे उच्चतम अवस्था होती हैयह महामंत्र " महाभाव प्रेम के अनिवर्चनीय रस। के अस्वादन भाव में बोला गया हैदेखिए हर इष्ट के मंत्र में " इष्ट का नाम से सम्बोधन होता है" और इष्ट को पता होता हैके जीव उसका नाम ले रहा हैपरंतु इस महामंत्र के अति उच्चतम रस वैलक्षण ऐसा है के महारस के समुन्दर में महाभाव के प्रेम के आनंद से आंदोलित चित इष्ट को इस महाप्रेम रस धारा में " विस्मरण करा देता हैके वो इष्ट है औरउस महाभाव अति प्रेम में वो " अपने को कहीं प्रेम में खो करइस भाव समुन्दर में यह महामंत्र का उच्चारण करता हैहरे का अर्थश्यामसुंदर उस महाभाव रस की समुन्दर मेंअपने को भूलराधारानी के अत्यंत चिंतन में स्वयं भूल कर कहते हैक्या मैं कृष्ण हूँ???हरे का अर्थ राधा हैकृष्ण स्वयम् उस प्रेम रस में निमग्न हो " राधा को पुकारते है "राधेमतलब " हरे"हरे मतलब " जो श्यामसुंदर के चित का हरण करे "राधा ही तो हैतो पहला अक्षर बोलेराधा" मतलब हरेहरे मतलब " राधा" जब कृष्ण हरे अर्थात राधा कहते है तबतब महामंत्र के दूसरे अक्षर " कृष्ण"तब राधारानी पूछती हैबोलो कृष्ण क्या हुआआपने हरे अर्थात राधा मेरा नाम लियाक्या हुआ प्राणेश्वरअब फिर " हरे" शब्द आता हैहरे कृष्ण हरेइस " हरे " शब्द मेंकृष्ण पूछते हैराधा आपने मुझे कृष्ण कहा हैक्या मैं कृष्ण हूँउस उच्चतम प्रेम रस भाव समाधि में कृष्ण भूल जाते है के वो कृष्ण हैऔर राधा भाव में आ जाते हैफिर " कृष्ण" मंत्र में आता हैराधारानी बोलती हैहाँ आप कृष्ण होमेरे प्राणनाथअब दो बार" कृष्ण कृष्ण" आता हैश्यामसुंदर पूछते हैक्या राधारानीमैं " कृष्ण" " कृष्ण" हूँदेखिए भाव की समाधि देखिएइस अनंत प्रेम भाव में कृष्ण राधा भाव में आ जाते हैदोनो एक है ना रस समुद्र" हरे हरे "कृष्ण कहते है राधारानी सेआप भूल रही होमैं राधा हूँमैं राधा हूँअब दूसरा line महामंत्र कीहरे रामराधारानी कहती हैआप " राधा" नहीं होआप " राधारमण" हो राधा को अनन्दित करने वालेमेरे राधारमणफिर" हरे राम" आता हैश्यामसुंदर कहते हैक्या क्या बोले आपमैं राधारमण हूँराधा रमणआपको आनंद देने वालाफिर" राम राम" आता हैराधारानी विश्वास दिलाती हैहाँ प्राणेश्वर आपराधारमण होराधा रमण होअब" हरे हरे "अब अंत मेंश्री कृष्ण उस राधाभाव में इतने तन्मय है के hosh में कहाँ हैवो उस राधाभाव सागर में गोते लगाते हुए बोलते है" नहि नहि"मैं राधा हूँराधा हूँ" कृष्ण नहीं हूँयह है महामंत्र का " प्रेम रस रहस्य"इसी भाव सेमहाप्रभुजी ने बोला थाक्यूँकि वो स्वयं राधा भाव में रहते थेश्री रघुनाथ जी गोस्वामी जी रति मंजरीकहते जब राधारानी विरह भाव में होती है तब अपने दोनो हाथो से ताल मार इस भाव से महामंत्र का उच्चारण करतीराधाश्री राधा 🌹
💠बैठे हरि राधासंग कुंजभवन अपने रंग। कर मुरली अधर धरे सारंग मुख गाई ll मोहन अतिही सुजान परम चतुर गुननिधान। जान बुझ एक तान चूक के बजाई ll 💠प्यारी जब गह्यो बीन सकल कला गुनप्रवीन। अति नवीन रूपसहित वही तान सुनाई ll वल्लभ गिरिधरनलाल रिझ दई अंकमाल। कहत भलें भलें लाल सुन्दर सुखदाई ll ॥ *श्रीराधारमणलाल की जय*॥ ॥ *जय श्री राधे* ॥ 🙏🙏श्री हरिदास राधावल्लभाय नमः🙏🙏