*श्री गिरिराज जी का पृथ्वी पर आगमन*
🙏🏻जब भगवान पृथ्वी पर अवतार लेने वाले थे तब भगवान ने गौलोक को नीचे पृथ्वी पर उतरा और गोवर्धन पर्वत ने भारतवर्ष से पश्चिमी दिशा में शाल्मली द्वीप के भीतर द्रोणाचल की पत्नी के गर्भ से जन्म ग्रहण किया.
एक समय मुनि श्रेष्ठ पुलस्त्य जी तीर्थ यात्रा के लिए भूतल पर भ्रमण करने लगे उन्होंने द्रोणाचल के पुत्र श्यामवर्ण वाले पर्वत गोवर्धन को देखा उन्होंने देखा कि उस पर्वत पर बड़ी शान्ति है जब उन्होंने गोवर्धन कि शोभा देखी तो उन्हें लगा कि यह तो मुमुक्षुओ के लिए मोक्ष प्रद प्रतीत हो रहा है.
मुनि उसे प्राप्त करने के लिए द्रोणाचल के समीप गए पुलस्त्य जी ने कहा - द्रोण तुम पर्वतों के स्वामी हो मै काशी का निवासी हूँ तुम अपने पुत्र गोवर्धन को मुझे दे दो काशी में साक्षात् विश्वनाथ विराजमान है मै तुम्हारे पुत्र को वहाँ स्थापित करना चाहता हूँ उसके ऊपर रहकर मै तपस्या करूँगा.
पुलस्त्य जी की बात सुनकर द्रोणाचल पुत्र स्नेह में रोने लगे और बोले- मै पुत्र स्नेह से आकुल हूँ फिर भी आपके श्राप के भय से मै इसे आपको देता हूँ फिर पुत्र से बोले बेटा तुम मुनि के साथ जाओ.
गोवर्धन ने कहा - मुने मेरा शरीर आठ योजन लंबा ,दो योजन चौड़ा है ऐसी दशा में आप मुझे किस प्रकार ले चलोगे.
पुलस्त्य जी ने कहा - बेटा तुम मेरे हाथ पर बैठकर चलो जब तक काशी नहीं आ जाता तब तक मै तुम्हे ढोए चलूँगा.
गोवर्धन ने कहा - मुनि मेरी एक प्रतिज्ञा है आप जहाँ कहि भी भूमि पर मुझे एक बार रख देगे वहाँ की भूमि से मै पुनः उत्थान नहीं करूँगा.
पुलस्त्य जी बोले - में इस शाल्मलद्वीप से लेकर कोसल देश तक तुम्हे कहीं नहीं रखूँगा यह मेरी प्रतिज्ञा है.
इसके बाद पर्वत पाने पिता को प्रणाम करने मुनि की हथेली पर सवार हो गए.पुलस्त्य मुनि चलने लगे. और व्रज मंडल में आ पहुँचे गोवर्धन पर्वत को अपनी पूर्व जन्म की बातो का स्मरण था व्रज में आते ही वे सोचने लगे की यहाँ साक्षात् श्रीकृष्ण अवतार लेगे और सारी लीलाये करेगे. अतः मुझे यहाँ से अन्यत्र नहीं जाना चाहिये. यह यमुना नदी व्रज भूमि गौलोक से यहाँ आये है. और वे अपना भार बढ़ाने लगे.
उस समय मुनि बहुत थक गए थे, उन्हें पहले कही गई बात याद भी नहीं रही. उन्होंने पर्वत को उतार कर व्रज मंडल में रख दिया.थके हुए थे सो जल में स्नान किया.फिर गोवर्धन से कहा - अब उठो ! अधिक भार से संपन्न होने के कारण जब वह दोनों हाथो से भी नहीं उठा. तब उन्होंने अपने तेज से और बल से उठाने का उपक्रम किया. स्नेह से भी कहते रहे पर वह एक अंगुल भी टस के मस न हुआ.
वे बोले - शीघ्र बताओ ! तुम्हारा क्या प्रयोजन है.
गोवर्धन पर्वत बोला - मुनि इसमें मेरा दोष नहीं है मैंने तो आपसे पहले ही कहा था अब में यहाँ से नहीं उठुगा यह उत्तर सुनकर मुनि क्रोध में जलने लगे और उन्होंने गोवर्धन को श्राप दे दिया.
पुलस्त्य जी बोले - तू बड़ा ढीठ है, इसलिए तू प्रतिदिन तिल-तिल क्षीण होता चला जायेगा.
यो कहकर पुलस्त्य जी काशी चले गए और उसी दिन से गोवर्धन पर्वत प्रतिदिन तिल तिल क्षीण होते चले जा रहे है.
जैसे यह गौलोक धाम में उत्सुकता पूर्वक बढने लगे थे उसी तरह यहाँ भी बढे तो वह पृथ्वी को ढक देगे यह सोचकर मुनि ने उन्हें प्रतिदिन क्षीण होने का श्राप दे दिया.
जब तक इस भूतल पर भागीरथी गंगा और गोवर्धन पर्वत है, तब तक कलिकाल का प्रभाव नहीं बढ़ेगा.🙏🏻
*🌻🌻कृष्णं वन्दे जगद गुरु🌻🌻*
🙏🙏🕉️राधे राधे🙏🙏
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वृन्दावन प्रेम माधुरी
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