!!बृजचौरासी कोस यात्रा दिव्य लीला स्थल !!
विश्राम घाट से प्रथम दर्शन
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भाग - 01
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श्रीबल्लभाचार्य जी ने साक्षात “श्रीकृष्ण लीला दर्शन” करने के लिए प्रथम बार बृजचौरासी कोस यात्रा की ...लेकिन उन्हें श्रीकृष्ण लीला के दर्शन नही हुए ....दुखी होकर उन्होंने फिर दूसरी यात्रा की ....तब भी उन्हें दर्शन नही हुए ।
आचार्य श्रीबल्लभ ने दुखी होकर एक बृजवासी ब्राह्मण से ये प्रश्न किया .....कि दो बार बृज यात्रा मैंने की फिर भी मुझे श्रीकृष्ण दर्शन क्यों नही हुए ?
तब उन बृजवासी पुरोहित ने कहा कि....हे आचार्य ! ऐसे बृजयात्रा आप कितनी बार भी कर लो ....कुछ नही होगा ....होगा तब जब किसी बृजवासी पुरोहित को संग लेकर ....उनके द्वारा संकल्पित होकर आप चलोगे तब आपको श्रीकृष्ण लीला दर्शन होंगे और तब आपकी यात्रा सफल होगी .....बोलो ....”यमुना मैया की जय “.....पुरोहित जी ने जयकारा लगाया ।
फिर आचार्य बल्लभ जू ने तीसरी यात्रा करी ....और संग में लिया एक बृजवासी पुरोहित .....फिर उस तीसरी यात्रा में श्रीबल्लभाचार्य जी को श्रीकृष्णलीला के साक्षात दर्शन हुए ।
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प्रथम दर्शन विश्राम घाट से “श्वेत बराह भगवान” के
*🌹🌻प्रथम दर्शन - “श्वेत वराह भगवान” ( मथुरा )🌻🌹*
ये मंदिर मथुरा में है ...बहुत प्राचीन विग्रह है इनका ......
“सतयुग में एक ऋषि थे कपिल ( ये सांख्य दर्शन के भगवान कपिल मुनि नही हैं ) जब भगवान वराह ने हिरण्याक्ष का उद्धार किया और पृथ्वी को अपने दाँतों में विराजमान किया तो वो छवि ऋषि कपिल के हृदय में बस गई ....बस फिर क्या था उन ऋषि ने भगवान से प्रार्थना करके उस छवि के विग्रह को माँगा ....भगवान वाराह ने भी प्रसन्नतापूर्वक उन भक्त ऋषि को अपने छवि का विग्रह प्रदान किया । लेकिन कालांतर में ऋषि का शरीर पूरा हुआ तो उस विग्रह को देवराज इन्द्र अपने स्वर्ग में ले गए थे ।
अब त्रेतायुग में रावण आया .....उसका पुत्र था मेघनाद .....जो देवताओं को पराजित करने के लिए स्वर्ग में एक दिन गया ....तो वहाँ मेघनाद का युद्ध हुआ देवराज इन्द्र से.....इन्द्र को जीत लिया मेघनाद ने .....और स्वर्ग से जब आने लगा लंका , तो उसकी दृष्टि गयी उसी दिव्य विग्रह “भगवान वाराह” के ऊपर । उसे ये विग्रह बहुत सुन्दर लगा .....उसने उस विग्रह को लिया और अपनी लंका में लाकर विराजमान कर दिया ।रावण ने महत् अपराध किया ....भगवान श्रीराम की आल्हादिनी श्रीमिथिलेश नंदिनी का हरण किया .....युद्ध हुआ और रावण मारा गया ......लंका का राजा बनाया गया विभीषण को ....लक्ष्मण जी ने जाकर राज्याभिषेक करवाया .....तब लक्ष्मण जी की दृष्टि गयी उसी “श्वेत बराह भगवान” के विग्रह पर , तो लक्ष्मण जी ने उसी विग्रह को माँग लिया .....भगवान श्रीराम को वो विग्रह समर्पित करते हुए विभीषण बहुत प्रसन्न थे । भगवान श्रीराम अयोध्या लौट आये ...राम राज्य की स्थापना भी हो गयी .....लेकिन कुछ समय बाद ही प्रजा में एक बैचैनी आरम्भ हो गयी थी .....और वो बैचैनी प्रकट करने वाला था ...एक राक्षस लवणासुर , ये रहता मथुरा में था ...लेकिन ये अपने आतंक का विस्तार कर रहा था । भगवान श्रीराम ने एक दिन शत्रुघ्न को अपने पास बुलाया और बुलाकर कहा ....सुनो ! तुम मथुरा जाओ और शत्रुघ्न ! वहाँ लवणासुर नामक राक्षस है उसका वध करके आओ । शत्रुघ्न जी ने सिर झुका लिया , मथुरा के लिए तैयार हो गए ......लेकिन .......शत्रुघ्न ! रुको । भगवान श्रीराम ने कहा .....शत्रुघ्न रुके ....तब भगवान श्रीराम ने शत्रुघ्न जी को ये श्वेत बराह भगवान की मूर्ति दी ...और कहा इसको ले जाकर मथुरा में स्थापित कर देना ......इससे मथुरा का परम मंगल होगा ...और जो इस विग्रह का दर्शन करेगा उसका भी जीवन मंगलमय हो उठेगा । शत्रुघ्न जी उस विग्रह को मथुरा में ले आए थे और यहीं यमुना किनारे पर उसको स्थापित कर दिया था ।
हम सबने दर्शन किए “श्वेत बराह भगवान” के ...इसकी परिक्रमा करने से पृथ्वी की परिक्रमा का फल मिलता है ....