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राधा कुंड (कृष्ण कुंड) का इतिहास –
#Radha Kund / राधा कुंड के बारे में मान्यता हैं की जब कंस भगवान श्रीकृष्ण का वध करना चाहता था। इसके लिए कंस ने अरिष्टासुर राक्षस को भी भेजा था। अरिष्टासुर बछड़े का रूप बनाकर श्रीकृष्ण की गायों में शामिल हो गया और बाल-ग्वालों को मारने लगा। श्रीकृष्ण ने बछड़े के रूप में छिपे राक्षस को पहचान लिया और उसे पकड़कर जमीन पर पटककर उसका वध कर दिया। यह देखकर राधा ने श्रीकृष्ण से कहा कि उन्हें गो-हत्या का पाप लग गया है और इस पापा की मुक्ति के लिए उन्हें सभी तीर्थों के दर्शन करने चाहिए। कृष्ण इस विनती को सुनकर हँसे और जिस जगह पर खड़े थे वहां पर ज़ोर से पैर पटका। राधा द्वारा बताई गई सारी नदियाँ वहां उत्पन्न हुईं और वहां पर कुंड बन गया। भगवान कृष्ण ने स्नान किया और इस कुंड को श्याम कुंड (Shyam kund) अथवा कृष्ण कुंड भी कहते हैं।
कृष्ण के इस तरह के शक्ति प्रदर्शन से राधा क्रोधित हो गयीं। उन्होंने अपनी सहेली गोपियों के साथ मिलकर अपनी चूड़ियों की मदद से एक गड्ढा खोदा और उसमें मानसी गंगा का पानी भर दिया। इस तरह गोवर्धन के पास एक विशाल झील राधा कुंड का निर्माण हुआ। राधा कुंड के विषय में मान्यता है कि यदि किसी दंपत्ति को संतान की प्राप्ति नहीं हो रही है और वे अहोई अष्टमी (कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी) की मध्य रात्रि को इस कुंड में स्नान करते हैं तो उन्हें संतान की प्राप्ति हो सकती है।
गोवर्धन से पांच किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह कुंड काफी श्रद्धालुओं को अपनी ओर खींचता है। अक्टूबर और नवम्बर के महीने में यहाँ काफी भीड़ होती है जब उत्सव को मनाने के लिए वार्षिक मेला का आयोजन होता है। लोग इस कुंड में डुबकी लगाकर अपने पापों को धोते हैं।
पुराणों में वर्णित –
पद्म पुराण में कहा गया है कि जिस प्रकार समस्त गोपियों में राधाजी श्रीकृष्ण को सर्वाधिक प्रिय हैं, उनकी सर्वाधिक प्राणवल्लभा हैं, उसी प्रकार राधाजी का प्रियकुण्ड भी उन्हें अत्यन्त प्रिय है। और भी वराह पुराण में है किहे श्रीराधाकुण्ड! हे श्रीकृष्णकुण्ड! आप दोनों समस्त पापों को क्षय करने वाले तथा अपने प्रेमरूप कैवल्य को देने वाले हैं। आपको पुन:-पुन: नमस्कार है इन दोनों कुण्डों का माहत्म्य विभिन्न पुराणों में प्रचुर रूप से उल्लिखित है। श्री रघुनाथदास गोस्वामी यहाँ तक कहते हैं कि ब्रजमंडल की अन्यान्य लीलास्थलियों की तो बात ही क्या, श्री वृन्दावन जो रसमयी रासस्थली के कारण परम सुरम्य है तथा श्रीमान गोवर्धन भी जो रसमयी रास और युगल की रहस्यमयी केलि–क्रीड़ा के स्थल हैं, ये दोनों भी श्रीमुकुन्द के प्राणों से भी अधिक प्रिय श्रीराधाकुण्ड की महिमा के अंश के अंश लेश मात्र भी बराबरी नहीं कर सकते। ऐसे श्रीराधाकुण्ड में मैं आश्रय ग्रहण करता हूँ।
श्रीराधाकुण्ड गोवर्धन से प्राय: 3 मील उत्तर–पूर्व कोण में स्थित है। गाँव का नाम आरिट है। यहीं अरिष्टासुर का वध हुआ था। वृन्दावन और मथुरा दोनों से यह 14 मील की दूरी पर अवस्थित है। श्रीराधाकुण्ड श्रीराधाकृष्ण युगल के मध्याह्रक–लीलाविलासका स्थल है। यहाँ श्रीराधाकृष्ण की स्वच्छन्दतापूर्वक नाना प्रकार की केलि–क्रीड़ाएँ सम्पन्न होती हैं। जो अन्यत्र कहीं भी सम्भव नहीं है। इसलिए इसे नन्दगाँव, बरसाना, वृन्दावन और गोवर्धन से भी श्रेष्ठ भजन का स्थल माना गया है। इसलिए श्रीराधाभाव एवं कान्ति सुवलित श्री चैतन्य महाप्रभु ने स्वयं इस परमोच्च भावयुक्त रहस्यमय स्थल का प्रकाश किया है। उनसे पूर्व श्रीमाधवेन्द्रपुरी, श्रीलोकनाथ गोस्वामी, श्रीभूगर्भ गोस्वामी श्री ब्रज में आये और कृष्ण की विभिन्न लीलास्थलियों का प्रकाश किया, किन्तु उन्होंने भी इस परमोच्च रहस्यमयी स्थली का प्रकाश नहीं किया। स्वयं श्रीराधाकृष्ण मिलिततनु श्रीगौरसुन्दर ने ही इसका प्रकाश किया।
कथा-प्रसंग
श्री कृष्ण ने जिस दिन अरिष्टासुर का वध किया, उसी दिन रात्रिकाल में इसी स्थल पर श्रीकृष्ण के साथ श्री राधिका आदि प्रियाओं का मिलन हुआ। श्रीकृष्ण ने बड़े आतुर होकर राधिका का आलिंगन करने के लिए अपने कर पल्लवों को बढ़ाया, उस समय राधिका परिहास करती हुई पीछे हट गयी और बोलीं– आज तुमने एक वृष (गोवंश) की हत्या की है। इसलिए तुम्हें गो हत्या का पाप लगा है, अत: मरे पवित्र अंगों का स्पर्श मत करो। किन्तु कृष्ण ने मुस्कराते हुए उत्तर दिया। –प्रियतमे! मैंने एक असुर का वध किया है। उसने छलकर साँड का वेश बना लिया था। अत: मुझे पाप कैसे स्पर्श कर सकता है? राधिका ने कहा- जैसा भी हो तुमने साँड के रूप में ही उसे मारा हैं। अत: गो हत्या का पाप अवश्य ही तुम्हें स्पर्श कर रहा है। सखियों ने भी इसका अनुमोदन किया। प्रायश्चित्त का उपाय पूछने पर राधिकाजी ने मुस्कराते हुए भूमण्डल के समस्त तीर्थों में स्नान को ही प्रायश्चित्त बतलाया। ऐसा सुनकर श्रीकृष्ण ने अपनी एड़ी की चोट से एक विशाल कुण्ड का निर्माण कर उसमें भूमण्डल के सारे तीर्थों को आह्वान किया। साथ ही साथ असंख्य तीर्थ रूप धारण कर वहाँ उपस्थित हुए। कृष्ण ने उन्हें जलरूप से उस कुण्ड में प्रवेश करने को कहा। कुण्ड तत्क्षणात परम पवित्र एवं निर्मल जल से परिपूर्ण हो गया।
श्रीकृष्ण उस कुण्ड में स्नान कर राधिकाजी को पुन: स्पर्श करने के लिए अग्रसर हुए: किन्तु राधिका स्वयं उससे भी सुन्दर जलपूर्ण वृहद कुण्ड को प्रकाश कर प्रियतम के आस्फालन का उत्तर देना चाहती थीं। इसलिए उन्होंने तुनक-कर पास में ही सखियों के साथ अपने कंकण के द्वारा एक परम मनोहर कुण्ड का निर्माण किया। किन्तु उसमें एक बूँद भी जल नहीं निकला। कृष्ण ने परिहास करते हुए गोपी|गोपियों को अपने कुण्ड से जल लेने के लिए कहा, किन्तु राधिकाजी अपनी अगणित सखियों के साथ घड़े लेकर मानसी गंगा से पानी भर लाने के लिए प्रस्तुत हुई, किन्तु श्रीकृष्ण ने तीर्थों को मार्ग में सत्याग्रह करने के लिए इंगित किया। तीर्थों ने रूप धारणकर सखियों सहित राधिकाजी की बहुत सी स्तुतियाँ कीं, राधिकाजी ने प्रसन्न होकर अपने कुण्ड में उन्हें प्रवेश करने की अनुमति दी। साथ ही साथ तीर्थों के जल प्रवाह ने कृष्णकुण्ड से राधाकुण्ड को भी परिपूर्ण कर दिया। श्रीकृष्ण ने राधिका एवं सखियों के साथ इस प्रिय कुण्ड में उल्लासपूर्वक स्नान एवं जल विहार किया। अर्धरात्रि के समय दोनों कुण्डों का प्रकाश हुआ था। उस दिन कार्तिक माह की कृष्णाष्टमी थी, अत: उस बहुलाष्टमी की अर्द्धरात्रि में लाखों लोग यहाँ स्नान करते हैं।
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