रामचरितमानस के अयोध्या कांड में भगवान राम के वनगमन के समय का यह प्रसंग है, जहां भगवान राम कहते हैं कि इस जगत में उसी का जन्म धन्य है, जिसको माता-पिता प्राणों के समान प्रिय हैं, उसके करतल (मुट्ठी) में चारों पदार्थ अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष रहते हैं। आगे वे कहते हैं-
हे माता! सुनो, वही पुत्र बड़भागी है, जो पिता-माता के वचनों का अनुरागी (पालन करने वाला) है। (आज्ञा पालन द्वारा) माता-पिता को संतुष्ट करने वाला पुत्र, हे जननी! सारे संसार में दुर्लभ है॥
राम वन गमन के समय मां कौशल्या की पीड़ा अत्यंत द्रवीभूत होती है, हृदय में कंपन सा है, जीवन की यह यात्रा बोझिल हो गई है, शरीर की नाड़ियां निष्प्राण होने लगी हैं। मां का पुत्र के प्रति यह कैसा प्रेम, जहां राम का वनगमन मां कौशल्या के जीवन की सारी आशाएं क्षीण हो रही थीं, वहां सिर्फ पुत्र के प्रेम की ही अभिलाषा है कि वह अपनी मनोव्यथा से उबरने के लिए स्वयं को स्वयं ही समझाने का अनुरोध करती है।
यह प्रसंग मानस की करुण व्यथा का सशक्त उदाहरण है। मां का पुत्र के प्रति कर्तव्य की अनन्य अभिव्यक्ति इस दोहे से परिलक्षित होती है, जब मां बार-बार दुख से कातर हो रही है, तब भगवान राम उनको ह्रदय से लगाते हैं- ‘राम उठाई मातु उर लाई।’
भगवान राम आगे लखन को भी समझाते हैं- हे भाई इस जगत में माता-पिता की सेवा से बढ़कर कोई धर्म नहीं है। तुम यहीं रहकर उनकी सेवा करो, लेकिन अंतत वे राम के ही साथ हो लिए। माता कैकेयी का भी अपने पुत्रों से प्रेम अथाह है, तभी तो राम जब अयोध्या लौटते हैं तो सबसे पहले माता कैकेयी के भवन मे जाते हैं। माता कैकेयी को भी सही दिशा नजर नहीं आती, उनकी वेदना के जल की थाह नहीं है।
संदेश -मां-बाप के स्नेह एवं दर्शन से जीवन हरा-भरा हो उठता है एवं बच्चों को वे उनके सरस जीवन स्नेह से सिंचित करते रहते हैं।
🚩जय सियाराम 🚩