💠बैठे हरि राधासंग कुंजभवन अपने रंग। कर मुरली अधर धरे सारंग मुख गाई ll मोहन अतिही सुजान परम चतुर गुननिधान। जान बुझ एक तान चूक के बजाई ll 💠प्यारी जब गह्यो बीन सकल कला गुनप्रवीन। अति नवीन रूपसहित वही तान सुनाई ll वल्लभ गिरिधरनलाल रिझ दई अंकमाल। कहत भलें भलें लाल सुन्दर सुखदाई ll ॥ *श्रीराधारमणलाल की जय*॥ ॥ *जय श्री राधे* ॥ 🙏🙏श्री हरिदास राधावल्लभाय नमः🙏🙏
Wednesday, 8 April 2020
हनुमान चरित्र कथा
Monday, 6 April 2020
बावरी गोपी प्रेम भाव 3 एवम 4
बावरी गोपी प्रेम भाव 2 bavari gopi prem (Love) bhav 2
🙏🏽🌷 *श्रीकृष्ण*🌷🙏🏽
|| बावरी गोपी ||. (2)
🌱 _*कल की बात*_ 🌱
कल और आज में कितना अन्तर हो गया।
कल यहीं पर कितनी चहल-पहल थी,
यमुना की लोल लहरियाँ भी
वंशीवाले की वंशीपर नृत्य करती-सी मालूम होती थीं,
तट से टकरानेवाली लहरें ताल-सी देती थीं,
किन्तु आज मालूम होता है कि वे ही लोल लहरियाँ
किसी के वियोग में तड़पकर छटपटा रही हैं।
तट की लहरें मानों अपना माथ पटक-पटककर रो रही हैं।
कल तक गायों का झुंड यहीं डटा रहता था,
आज सब चुपचाप पानी पीकर किसी को ढूँढ़ने-सी चली जाती हैं।
उपद्रवी ग्वाल-छोकरों के मारे जी खीझ जाता था,
आज किसी का पता नहीं।
‘पहले मेरा उठा दो’, ‘पहले मेरा उठा दो’ ध्वनि के कारण
कोई बात सुनायी नहीं पड़ती थी,
आज सुनने के लिये कोई शब्द ही नहीं।
स्थान न पाने के कारण लोगों ने
इस घाटपर स्नान करना छोड़ दिया था,
बदनाम कर रक्खा था कि
इस घाट में तो गोपाल, गोपी और गोप-बालकों की ही गुज़र है,
आज यह श्मशान बना है।
शेष अगले _क्रमशः .3 में ......_
_(प्रेम भिखारी)_
🙏🏽🌷 *श्री राधे*🌷🙏🏽
Thursday, 2 April 2020
Madhu sudan daas baba bhakt katha
- . "सन्त श्री मधुसूदन दास बाबा जी"
- (सूर्य कुण्ड)
- अर्धरात्रि के नीरव, निस्तब्ध वातावरण में राधा कुंड के तीर पर यह नवीन युवक क्या कर रहा है ? एक भारी गिरिराज शिला वह अपनी गले में बाँध रहा है। आरक्तिम नेत्रों से अश्रु का अजस्र प्रवाह भाव और मुद्रा से स्पष्ट दिख रहा है। वह गिरिराज शिला के साथ राधा कुंड के गहरे जल में कूदकर प्राण विसर्जन करने जा रहा है।
- ऐसा कौन सा दु:ख उसके हृदय में आ बैठा है। जो उसे प्राण विसर्जन करने के लिए विवश कर रहा है ? क्या वह किसी नीच कुल का बालक है, जो समाज से अवहेलित, उत्पीड़ित होने के कारण अपने जीवन से दु:खी हो गया है, क्या उसके निष्ठुर दयाहीन माता पिता ने उसे घर से निकाल दिया है ? क्या उसकी नवविवाहिता परम रूपवती स्त्री ने उसे अकस्मात छोड़ दिया है ? क्या लुटेरों ने उनकी धन-संपत्ति लूटकर उसे भिखारी बना दिया है ? नहीं वह बंगदेश के कुलीन ब्राह्मण परिवार में उत्पन्न हुआ माता-पिता का लाड़ला पुत्र है, जो विवाह की रात्रि में ही माता-पिता पत्नी संसार और सभीलोभनीय विषय-संपत्ति को तृणवत् त्याग कर वृंदावन चला आया है। जिन वस्तुओं के अभाव में लोग जीवन निरर्थक समझ कर आत्महत्या की सोचते हैं उन्हीं को निरर्थक जानकर छोड़ आया है।
- बाल्यावस्था में उसने वृंदावन के एक श्याम वर्ण के और मोर मुकुटधारी बालक के विषय में सुना था। वह जैसा रूपवान है, वैसा ही गुणवान है, और शक्तिमान है। रूप, गुण और शक्ति में उसके समान कोई दूसरा नहीं है। वह बड़ा लीलामय कौतुकी और विनोदी है। उसका संग जैसा सुखमय है, वैसा और कुछ भी नहीं है। उसे पाकर फिर और कुछ भी पाने की आकांक्षा शेष नहीं रह जाती। तभी से उसके प्रति अनुराग हो गया। वह सब समय उसके बारे में सोचता, उसके ध्यान में खोया-खोया सा रहता। किसी सांसारिक काम में उसका मन नहीं लगता।
- माता-पिता को उसे इस प्रकार संसार से विरक्त देखकर चिंता हुई। उन्होंने उसकी इच्छा के विरुद्ध विवाह कर दिया। विवाह के दिन ही रात्रि में नववधू से प्रथम मिलन की बेला में, वह घर से भागकर वृंदावन चला आया। वृंदावन में लोकालय से दूर वनों में रहकर बंसी वाले की याद में दिन व्यतीत करने लगा। कभी गांव से मधुकरी मांग कर लाता, कभी यमुना जल पीकर ही रह जाता।
- उसने सुना था बिना गुरु- दीक्षा के भगवान प्राप्त नहीं होती। एक दिन वह केशीघाट पर यमुना जी के किनारे एक वृक्ष के नीचे गुरू की चिंता में बैठा था। उसी समय वहाँ स्नान करने के लिए आये एक महात्मा उसे देखकर कहा-बेटा जा यमुना में स्नान करके आ मैं तुझे दीक्षा मंत्र दूँगा।
- चिंतामणी स्वरूप दिव्य वृंदावन धाम की कृपा देख उसकी प्रसन्नता का ठिकाना ना रहा। महात्मा से दशाक्षर मंत्र प्राप्त करके वह आविष्ट हो गया, और भूमि पर गिर पड़ा प्रकृतिस्थ होने पर महात्मा अंतर्ध्यान हो गए। वह उनका नाम पता और ठिकाना भी न जान सका। भ्रमण करते-करते मानसी गंगा के निकट सिद्ध कृष्णदास बाबा के पास जा पहुँचा। उसने शरणापन्न होकर बोला मैं मूर्ख भजन के संबंध में कुछ भी नहीं जानता। मुझे भजन की रीति का उपदेश करने की कृपा करें।
- सिद्ध बाबा ने उसके तेज और भक्ति से प्रभावित होकर परिचय पूछा। उसने गृह त्याग से दीक्षा तक सारी घटनाओं का वर्णन किया। तब सिद्ध बाबा ने कहा हमारा भजन रागमार्ग का सम्बन्धनुगा हैं। भजन संबंध गुरु परिवार से ही निर्णय होता है।, तुम्हें अपने गुरु-परिवार का पता नहीं है। इसलिए रागानुगा भजन में तुम्हारा अधिकार नहीं है। दूसरी दीक्षा तुम्हें दी नहीं जा सकती, क्योंकि तुम इसी संप्रदाय में मंत्रार्थ दीक्षा ले रखी है।
- सिद्ध बाबा की बात सुनकर वह वज्राहत की भाँति दारुण रोदन करने लगा। बाबा ने उससे कहा-तुम काम्यवन के सिद्ध जय श्री कृष्ण दास बाबा के पास जाओ वे सर्ववेता हैं। तुम्हारे गुरुदेव का परिचय और संबंध के विषय में बता सकेंगे।
- उसने काम्यवन जा कर सिद्ध बाबा की शरण ली। सिद्ध बाबा बोले तुम एकांत में बैठ कर हरिनाम करो राधा रानी जो करेगी सो होगा। चिंतामणि स्वरूप गुरुदेव ने जैसी तुम्हारी दीक्षा की इच्छा पूर्ण की है। वैसे ही रागानुगा भजन की इच्छा पूर्ण करेंगे।
- सिद्ध जयकृष्णदास बाबा का उपदेश नवयुवक के लिए विस्फोटक सिद्ध हुआ। उसके अनुराग की अग्नि धूं-धूं करके जलने लगी। जीवन निराशामय निरुद्देश्य और निरर्थक प्रतीत होने लगा। ऐसे जीवन को लेकर वह क्या करता ? गिरिराज शिलारूपी गिरधारी को गले में बाँधकर राधा कुंड में कूद पड़ा। राधाकुण्ड के अतल-तल में संज्ञा हीन अवस्था में ना जाने कब तक पड़ा रहा। संज्ञा आने पर उसने देखा कि उसके गले की रस्सी खोल दी है। और हाथ में एकताल पत्र देकर उसी कुंड के तट पर लिटा दिया है। तालपत्र में कुछ लिखा है।
- इसे राधारानी की कृपा जानकर वह दिन निकलते ही दौड़ गया सिद्ध बाबा के पास। उसने सारा वृत्तांत कह सुनाया और तालपत्र दिखाया कृष्णदास बाबा ने तालपत्र दीक्षित जयकृष्ण दास बाबा के पास जाने को कहा। तब काम्यवन में सिद्ध जयकृष्ण दास बाबा के पास गया। और सारा वृत्तांत सुनाया, यह सुनकर बाबा बोले तुम्हारे ऊपर राधारानी की यथेष्ट कृपा है। पर जो तुम्हें मिला है। वह अभी भी अव्यक्त है। रागानुगा सेवा के लिए स्पष्ट निर्देश की आवश्यकता है। तुम फिर राधाकुंड में जाकर प्रियाजी को पुकारो अवश्य कृपा कृपा करेंगी।
- वह राधाकुण्ड जा कर आर्तभाव से राधारानी को पुकारने लगा। भक्त के आर्तनाद, कान में पहुँचते ही राधा रानी ने प्रकट होकर उपदेश किया। सूर्यकुंड में जाकर भजन करो वही तुम्हें अभीष्ट रागानुगा सेवा की प्राप्ति होगी। जो मंत्र तुमको मिला है, उसमें किसी को दीक्षित ना करना। आजीवन उसे गोपनीय रखना।
- तब से वह सूर्यकुंड में रहकर भजन करने लगा। लोग उसे मधुसूदन दास बाबा कह कर पुकारने लगे।
- मधुसूदन दास बाबा शेष रात्रि में कुंड के तीर पर बैठकर उच्च स्वर से विशंभर गौरचंद्र ! वृषभानु नंदिनी ! राधे ! नाम का कीर्तन किया करते। प्रातःकाल जब लोगों का बाहर चलना फिरना आरंभ हो जाता कुटी के भीतर जाकर भजन करने लगते। उसकी सिद्धावस्था की बहुत सी कहानियाँ हैं।
- कुछ दिन बाद बाबा की पैर में क्षतरोग हो गया। उनका चलना फिरना दुश्वार हो गया। तब उन्होंने किसी निर्जन स्थान में जाकर देह त्याग करने का संकल्प लिया। बड़े कष्ट से के रात्रि के समय किसी सघन-वन में जा पड़े। बिना अन्न जल ग्रहण किऐ राधारानी को पुकारते हुए मृत्यु की प्रतीक्षा करने लगे। दो दिन बीत गए एक बूँद जल भी पेट में नहीं गया। राधा रानी का नाम लेकर दिन-रात रोते-रोते मृतप्रायः हो गए। तीसरे दिन करुणामयी से रहा न गया। किशोरी ब्रिज बालिका के रूप में रोटी और जल लेकर प्रातः बाबा के पास आकर बोली- अरे ! तू हियां काय कू आय पड़ो है ? मैं ढूंढते-ढूंढते हैरान है गयी। तू कल रोटी लेवे नाय आयो, परसोंऊं नाय आयो। मैया ने तेरे ताई रोटी भेजी है। खाय लें।
- बालिका को बाबा बहुत दिन से जानते थे। वह जिस घर की थी, उसे भी जानते थे। उन्होंने कहा लाली तू यहां क्यों आई ? तूने कैसे जाना कि मैं यहाँ हूँ ? बालिका बोली- "मोय सब खबर पड़ जाए। अब तू खा ले"। बाबा बोले- "मैं नहीं खाऊँगा, लेजा"।
- "खायगो च्यूं नई में मइयाने कह्यो है सामने जिमायके आईयो। शरीर में सुख दुख तो लग्योई रहे है। प्राण तजे तें कहा भजन पूरो होय है ? खायले।" बालिका की मधुर वचनों की अवहेलना बाबा ना कर सके। तीन दिन के भूखे प्यासे थे, बालिका का लाया प्रसाद सब खा गये। खाकर बोले - "फिर कभी मत आइयो।"
- किशोरी उसकी तरफ देखते हुए मंद-मंद मुस्कुराते हुए चली गई बाबा अनुभव किया कि उसके शरीर की ज्वाला यंत्रणा चली गई। पैर की पट्टी खोल कर देखा तो क्षतका कोई निशान नहीं। उन्हें कुछ संदेह हुआ। उठकर धीरे-धीरे उस बालिका के घर गए। ब्रजमाई से पूछा तेरी लाली कहाँ है ? माई बोलीं- "लाली तो ससुराल में है। तीन माह भय गये।"
- बाबाने सारा रहस्य समझ गए। घटना के प्रकाश होने की भय से कुछ ना कहें। और उनकी मुद्रा विलक्षण प्रकार की हो गई। उनके दोनों नेत्रों से गंगा जमुना बहने लगी। हा राधे ! करुणामयी ! कहकर वे दीर्घ निःश्वास फेंकने लगे।
- राधे राधे🙏🏻🙏🏻
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- जय श्री राधे कृष्णा 🙏🌹🌹