. ((((( " वृन्दावन की सुबह " ))))))
हर सुबह वृन्दावन का नज़ारा, चिड़ियों का चहकना, मंदिरों की घंटी का आवाज़, सत पुरुषों का सत्संग जैसे भक्ति रस घुल रहा हो ; हर आत्मा उस में मगन हो यह है खूबसूरती वृन्दावन धाम की। यहाँ हर बच्चा राधा कृष्ण जी का स्वरुप है, यहाँ पढाई का पहला अक्षर भगवान् श्री हरी जी के नाम से है। यमुना जी का कल-कल करता पानी, फल से लदे वृक्ष, फूलों के झुण्ड, भंवरों की गुंजन, हरी नाम की रास लीलाओं के गान ; हर आत्मा को श्री राधा कृष्णा जी से जोड़ देता है।
कोई गिरिराज की परिक्रमा कर रहा है तो कोई वृन्दावन की ; कोई जा रहा है निधिवन तो कोई वंशीवट ; कोई मदन टीर तो कोई मान सरोवर ; कोई भागवत वाच रहा है तो कोई गीता ; कोई भक्तों को भगवान की कथा सुना रहा है तो कोई भगवान् के मीठे भजन गा रहा है ; ऐसा लगता है की सब तन मन धन से भगवान के श्री चरणों में अर्पित हो गए हों। ऐसा नज़ारा है हमारे वृन्दावन धाम का।
कोई सुबह-सुबह मंदिर की सीढ़ियाँ धो रहा है तो कोई प्रसाद बाँट रहा है ; कोई कीर्तन कर रहा है तो कोई दर्शन खुलने की प्रतिक्षा कर रहा है। कोई दर्शन करके उस में मगन हो रहा है तो कोई पद्यावाली लिखने में व्यस्त हो रहा है ; कहीं मंदिर में फूलों का श्रृंगार बन रहा है तो कहीं भोग बन रहा है। ऐसा लगता है जैसे आठों पहर भगवान् से शुरू हो कर भगवान् पर ही समाप्त हो जाते हैं।
समय कब समाप्त हो जाता है ये किसी को पता ही नहीं चलता है। ना किसी को अपनी अवस्था का ध्यान है न ही किसी को अहंकार है न ही कोई झगडा लड़ाई है सब मिल झूलकर निःस्वार्थ प्रेम जगा रहे हैं, अपने और दूसरों के दिल में। प्रातःकाल के यह हैं सुन्दर दर्शन इस वृन्दावन धाम के। यहाँ किस रूप में भगवान् मिल जाएँ कुछ पता नहीं। ऐसी अद्भुत धरती को हम शत-शत नमन करते हैं।
इस धाम में आनेवाले हर किसी के मन में एक सी ही छवि है श्रीश्यामा-श्याम की:-
घुंगराले केश, कमल नयन, श्याम वरन, मोहिनी चितवन, मीठी मुस्कान, गले में वैजयन्ती माला, जिनके शीश पर विराजे मोर मुकुट, तन लहराए पीत पीताम्बर, चरणों में नुपुर, हाथों में बांसुरी लिए यह नटखट श्याम जिसे हर गोप-गोपी प्रेम से कान्हा बुलाये- वह सब का चित चुरा लेते हैं।
भोली भाली, चन्द्र वदन, चंचल नयन, सुन्दर मोहिनी स्वरुप, गौर वरन, मधुर मुस्कान, मन मोहिनी, रसिक वन्दिनी, शीश चंद्रिका धारिणी, कनक समान शोभायमान, भूषण बिना विभूषित वृन्दावन धाम की अधिष्टात्री देवी हमारी श्री राधा रानीजी।
यहाँ नित्य प्रातः से लेकर रात्रि तक हर कोई केवल श्री राधाकृष्ण जी की ही सेवा में रत है।
आठों पहर आठों याम, श्रीयुगल सेवा एक ही काम।
राधे-राधे से गूँजे गलियाँ, ऐसो है श्रीवृंदावन धाम।।
"जय जय श्री राधे"
श्री हित हरिवंश जी ....
श्री राधावल्लभ लाल जी .....
श्री कुंजबिहारी श्री हरि दास....
श्री धाम वृंदावन जी........
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वृन्दावन प्रेम माधुरी