"रसखानजी "
१)मानुस हों तो वही रसखान बसौं बृज गोकुल गाँव
के ग्वारन।
जो पसु हौं तो कहाँ बस मेरौ चरौं नित नन्द की
धेनु मंझारन॥
पाहन हौं तो वही गिरि को जो धर्यो कर छत्र
पुरंदर धारन।
🦜जो खग हौं तो बसेरो करौं नित कालिंदी कूल
कदंब की डारन॥
२) "रसखान जी के पद ।। "
शेष , गणेश , महेश , दिनेश , सुरेश हू जाही निरंतर गावे।
जाही अनादि , अखंड , अभेद, अछेद , सुबेद बतावे ।
नारद से शुक व्यास रहे , पचीहारे तोवू पुनि पार न पावे ।
ताहि अहीर की छोहरीया छछीया भरी छाछ पै नाच नचावे ॥
३) " रसखान जी"
धुरी भरे अति शोभित श्याम जु तेसी बनी सिर सुन्दर चोटी,खेलत खात फिरे अंगना पग पैन्जनिया कटि पीर कछोटी वा छबी को "रसखानी" विलोकति काग के भाग बडे सजनी हरि हाथ से ले गयो माखन रोटी ।।
४) " रसखान जी "
काननि दै अँगुरी रहिबो जबहीं मुरली धुनि मंद बजैहै।
मोहनी तानन सों "रसखानि "अटा चढ़ि गोधन गैहै तौ गैहै॥
टेरि कहौं सिगरे ब्रजलोगनि काल्हि कोऊ कितनो समुझैहै।
माइ री वा मुख की मुसकानि सम्हारी न जैहै, न जैहै, न जैहै॥
५) " रसखान जी "
मोर पखासिर उपर रखिओं गुंज कि माल गले पहिरौंगि ओढ़ि पिताम्बर लै लकुटि बन गोधन ग्वालन संग फिरौंगि भावतो ओहि मेरो "रसखान" सो तेरो कहे सब स्वांग करौंगि या मुरली मुरलीधर कि अधरा न धरौं अधरा न धरौंगि