आज के विचार
“वृन्दावन के भक्त - 233”
!! साक्षात् ठाकुर - “श्रीघनश्याम जी”!!
17, 2, 2023
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आज बाँध ही दिया मैया यशोदा ने अपने लाला कन्हैया को , और बांधे भी क्यों नहीं ..इसने ऊधम ही इतना मचाया ....रस्सी से बांधा ही नही चपत भी लगा रही हैं ....और कन्हैया हिलकियों से रो रहा है .....”मारे मत मैया ! वचन भरवाये ले “। पर - “तेरो कठिन हियो री माई”। जो सखियाँ नित्य आकर यशोदा मैया से शिकायत करती थीं आज वो भी रो रही हैं ....कह रही हैं - मैया ! कैसे , कैसे आज तेरो हृदय वज्र की तरह कठोर है गयो ....केवल मटकी ही तो फोड़ी है तेरे लाला ने ...मत मार यशोदा ! मत मार। पर मैया आज किसी की नही सुन रही ।
मैया ! मत बाँध ...
एकाएक किसी के चिल्लाने की आवाज आयी ...ये आवाज दर्शकों में से आयी थी ...श्रीवृन्दावन में उड़िया बाबा जी के आश्रम में ये रास लीला चल रही है .....रास लीला का दर्शन करने वालों में स्वयं सिद्ध सन्त उड़िया बाबा जी , हरि बाबा जी , आनन्दमयी माता पण्डित गया प्रसाद जी आदि आदि अनेक संतों के साथ साथ रास लीला के रसिकों की भी पूरी भीड़ थी ।
आज लीला हो रही थी - “ऊखल बन्धन” ।
और इस लीला में मैया यशोदा ने अपने कन्हैया को बाँध दिया था ।
मैया ! मत बाँध ....
ये आनन्दमयी माता की पुकार थी ....उनको आज “ऊखल बन्धन लीला” का दर्शन करते ही भाव का उन्माद चढ़ गया था ....वो मंच पर चढ़ गयीं और मैया यशोदा के चरणों में गिर गयीं थीं ....मैया ! मत बाँध ...मैया ! मत बाँध ...यशोदा का पात्र निभा रहे व्यक्ति ने असहज होकर स्वामी की ओर देखा ...रास मण्डली के स्वामी ने पर्दा गिराने का आदेश दिया ...पर पर्दा गिरता उससे पहले ही ठाकुर जी आनन्दमयी माता की गोद में बैठ गये ...और गोद में छुपने लगे ....आनन्दमयी माता ने अपने आँचल में छुपा लिया ..इस झाँकी का दर्शन करके पण्डित गयाप्रसाद जी उठकर नाचने लगे थे ....उड़िया बाबा जी की समाधि लग गयी थी ....हरिबाबा जी भावोन्मत्त होकर पंखा झलने लगे थे ।
पर ये क्या !
स्वरूप बने ठाकुर जी आवेश में बोले ...”माता ! कुबेर के पुत्र अपने उद्धार की प्रतीक्षा कर रहे हैं ...उनका उद्धार करना है इसलिये मुझे बँधना पड़ेगा”।
आनन्दमयी माता चौंक गयीं थीं ...स्वरूप ठाकुर जी साक्षात् ठाकुर जी ही थे ....उनका मुखमण्डल दिव्य आभा से दमक रहा था .......
“घनश्याम“ साधारण बृजवासी बालक नही है ....ये साक्षात् ठाकुर जी ही है” ....पण्डित गया प्रसाद जी रास लीला के पश्चात् आनन्दमयी माता को बता रहे थे ।
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अलीगढ़ जिले में एक गाँव है - घाँघौली । उस गाँव में एक पण्डित जी रहते हैं ....बहुत विद्वान हैं ...व्याकरण और ज्योतिष का अच्छा ज्ञान है ...श्रीमदभागवत जी के प्रति इनकी निष्ठा अद्भुत है ...नित्य भागवत जी का ये साप्ताहिक पाठ करते हैं ....पर जब ये पाठ करते हैं उस समय इनके पास कोई नही होना चाहिये । ये एकान्त में अश्रु प्रवाहित करते हुये पाठ करते हैं । इनका नाम है पण्डित लक्ष्मीनारायण जी शर्मा । एक दिन इनको वैराग्य चढ़ गया और घर से निकल गये हरिद्वार की ओर ....फिर ऋषिकेश होते हुये ये चार धाम की यात्रा करने लगे ....उन दिनों पैदल ही यात्रा होती थी .....ये केदारनाथ , गंगोत्री , यमनोत्री होते हुये बदरीनाथ गए ....वहाँ इनको चरणपादुका स्थान में उद्धव जी के साक्षात दर्शन हुये .....और उद्धव जी ने इनसे कहा ...आप वापस अपने घर जाइये और वहाँ जाकर ग्रहस्थ आश्रम स्वीकार कीजिये । इन्होंने मना किया ...और उद्धव जी के चरण पड़ते हुये बोले ....मुझे इच्छा नही है ...हे परम भागवत उद्धव जी ! मुझे आप संसार के प्रपंच में मत फँसाइये । पर उद्धव जी ने पण्डित लक्ष्मीनारायण जी से इतना ही कहा ....”ठाकुर जी की यही आज्ञा है आपके लिये”....और उद्धव जी अन्तर्ध्यान हो गये ।
पण्डित लक्ष्मीनारायण जी को यात्रा में एक वर्ष हो लग गये थे ....वो अब लौट आये अपने गाँव ....भगवान श्रीकृष्ण सखा की ये आज्ञा भी थी । इन्होंने विवाह कर लिया ...सुन्दर सुशील जावित्री देवी नामक ब्राह्मणी कन्या से विवाह किया । ये भागवत की कथा कहते थे ...पर किसी से कुछ माँगते नही थे ...न किसी से कथा लगाने के लिए कहते थे ..पूर्ण आकाशवृत्ति इनकी थी । किसी के आगे हाथ फैलाना इन्होंने सीखा नही था ....इसलिए अर्थाभाव घर में बना ही रहता था ।
इनके तीन पुत्र हुए .. सबसे छोटे थे घनश्याम ...बड़े पुत्र का नाम था नवलकिशोर ...दूसरे का नाम था श्रीराम , और ये सबसे छोटे - घनश्याम । घनश्याम , बहुत सुन्दर थे ....घुंघराले केश ...गौर वर्ण ...और चंचलता भी थी ...चंचलता इनकी गम्भीरता लिए हुए थी ।
ये अपनी चंचलता माता के सामने ही दिखाते थे ....इनके यहाँ गौ थी ...तो दूध दही खूब होता था .....इनकी माता जब माखन निकालती ....तो माखन लेकर ये भाग जाते ....ये हंसतीं .....फिर कहतीं ...अरे घनश्याम ! तेरे लिए निकाल तो दिया था माखन ....इसमें से लेना क्या ज़रूरी है ? तब घनश्याम हंसते ..और कहते ...मैया ! मोय चोरी करवे में ही आनन्द आवे है ।
पर अपने पिता के पास जब ये बैठते थे ...तो शान्त , गम्भीर , ये अपने पिता के मुख से नित्य भागवत सुनते ....इनके पिता पण्डित लक्ष्मीनारायण जी इस छोटे पुत्र को देखते तो गदगद हो जाते ....कहते ...कितना गम्भीर है ये बालक ....इनकी माता जी कहतीं ...इसके जैसा ऊधमी तो कोई नही है । पर पिता कहते....ये आँखें बन्दकर के ध्यान करता रहता है ।
एक दिन पण्डित लक्ष्मीनारायण जी भागवत के रासपंचाध्यायी का पाठ कर रहे थे ...घनश्याम बैठकर सुन रहे थे ...तभी प्रसंग आया की भगवान श्रीकृष्ण गोपियों के मध्य से अन्तर्ध्यान हो गये....पण्डित लक्ष्मीनारायण जी कोई कथा नही सुना रहे थे ...वो तो भागवत जी का संस्कृत मूल पाठ कर रहे थे और बालक घनश्याम की आयु चार वर्ष की थी । किसी के सुबकने की आवाज सुनी तो भागवत जी से पण्डित जी ने दृष्टि उठाई ....बालक घनश्याम रो रहा है । उसके नेत्र बन्द हैं नेत्रों के कोर से अश्रु बहते जा रहे हैं वो सुबक रहा है । पण्डित जी को लगा शायद बालक घनश्याम को किसी बात का कष्ट है ...इसलिए रो रहा है ...उन्होंने घनश्याम की माता जी को आवाज दी .....वो आयीं .....पण्डित जी ने पूछा ...तुमने डाँटा था क्या ? माता ने कहा नही ...फिर घनश्याम को जैसे ही गोद में लिया ...उस समय घनश्याम के नेत्र बन्द थे ....पर उसने नेत्र खोले और जोर से बोला ...”भगवान श्रीकृष्ण को प्रकट तो होने दो ,बेचारी गोपियाँ कितनी रो रही हैं” !
ये सुनते ही पण्डित लक्ष्मीनारायण जी चौंक गये ...ये क्या ! बालक रासपंचाध्यायी सुनकर समझ कर रो रहा था ! वो तुरन्त बोले ...”ये श्रीकृष्ण का कोई सखा है जो हमारे यहाँ आया है ।”
गोपीगीत के बाद भगवान श्रीकृष्ण को प्रकट करवा कर पण्डित जी ने भागवत पाठ को विश्राम दिया ...तब जाकर घनश्याम को शान्ति मिली थी । इस घटना से पण्डित जी चकित थे ।
शेष कल -
भज नित्य सदा श्री राधा नाम आधार 👏👏🙏🙏
✍️श्रीजी मंजरीदास
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