श्री चैतन्य चरित्रामृतम

Tuesday 24 January 2023

वृन्दावन के प्रचारक भक्त श्री श्री ए. सी.भक्ति वेदांत श्री प्रभुपाद जी

आज के विचार

“वृन्दावन के भक्त - 185”

!! प्रचारक भक्त - प्रभुपाद !! 

31, ,12, 2022

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“ तदा नाहं हरेर्दासो लोके त्वां न प्रवर्तेये “

पद्मपुराण में देवर्षि नारद जी ने ये प्रतिज्ञा की थी कि ....मैं श्रीहरि का दास नही जब तक जन जन में भक्ति को न पहुँचा दूँ ।   आधुनिक जगत में  एक  ऐसे ही महान प्रचारक हुये जिन्होंने भक्ति को पश्चिम में ले जाने की सोची और ले भी गये ।  विदेशी गोरे लोगों को आप  “हरे कृष्ण” महामन्त्र के साथ नृत्य करते हुये देख सकते हैं ।  अमेरिका में भी और रुस जैसे साम्यवाद देश में भी ।  रुस का एक प्रसिद्ध लेखक जब ये लिखता है कि  आने वाला समय विश्व में “कृष्णा कल्चर”  लेकर आयेगा ....तब ये अतिशयोक्तिपूर्ण नही लगता।   ये होगा ।   विश्व को अपने आग़ोश में लेगा ये “हरे कृष्ण” आन्दोलन ।  “विश्व  का हर तीसरा व्यक्ति कृष्ण भक्त होगा” ।  ये बात मैं नही कह रहा  ये  अमेरिका के प्रसिद्ध लेखक “रेक्सी बिन”  का कहना है । 

श्रीभक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद । 

यही हैं   जिन्होंने  पाश्चात्य जगत को कृष्णभक्ति से भावित कर दिया ....पाश्चात्य धरती में सनातन धर्म को ले जाने वाले और भी हुये ......पर उनका ओज कुछ ही समय में  धीमा पड़ गया था....किन्तु “हरे कृष्णा आन्दोलन” बढ़ता ही  जा रहा है ....बढ़ता ही जायेगा ।   कारण ?   कारण  भगवान श्रीकृष्ण का पतित पावन  मंगलमय नाम है ।   

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अमेरिका में पहुँच गये हैं प्रभुपाद .....पर यहाँ ये किसी को नही जानते ।   एक भारतीय व्यापारी इनको मिला  वो बड़ी श्रद्धा से अपने घर  भी ले गया ....वो चाहता था  ये स्वामी जी यहीं रह जायें ....उसकी पत्नी बहुत खुश थी ....क्यों की प्रभुपाद स्वयं पाक बनाते थे और अपने ठाकुर जी को भोग लगाकर  सबको खिलाकर स्वयं पाते थे ।   दो महीने प्रभुपाद ने ऐसे ही बिताये ।  पर उनका लक्ष्य ये तो था नही ....इसलिये वो  वहाँ से  निकल गये ....भारतीय व्यापारी की पत्नी नाराज़ भी हुई ...पर इन्हें  इन सबसे कोई मतलब नही था ...इन्हें तो पहले पाश्चात्य जगत को जानना था ....गहराई से इस अत्याधुनिक जगत को समझना था ।    ये अमेरिका में भटक रहे थे ....पैसे इनके पास अब बचे नही थे ......क्या करें ?    तब प्रभुपाद ने  किशोर अवस्था के लोगों का एक समाज देखा .....जिन्हें “हिप्पी” कहते थे ।   जो समाजिक धारणा के प्रति विद्रोह करके स्वच्छन्दता को अपना रहे थे ....नशे की गोलियाँ खाना  उन्मुक्त जीवन जीना ।  इसमें लड़कियाँ भी थीं और लड़के भी .....अमेरिका की सरकार को डर सता रहा था कि जिस तरह से ये “हिप्पीवाद” बढ़ रहा है ...कहीं ऐसा न हो कि ये पूरे अमेरिका में छा जाये और आगे भी बढ़ता जाये ।   ये जहां इकट्ठे होते थे उनको पुलिस कभी कभार पकड़ कर इधर उधर कर देती ।  बल प्रयोग का कोई अर्थ था नही ......क्यों की जीने का अधिकार सबका है ।

आश्चर्य !    प्रभुपाद ने देखा .....अमेरिका जिसे विश्व में सबसे समृद्ध माना जाता है .....समृद्ध ही नही सभ्य माना जाता है .....वहाँ  मानसिक रूप से लोग इतना दरिद्र हैं ....अपना भारत भले ही गरीब हो पर  ये स्थिति भारत में तो नही है ।     मानसिक शान्ति भारत के ग्रामीण परिवेश में अभी भी स्थाई है ....भले ही वहाँ खाने के लिए रोटी नही है ।    पर यहाँ के विषय में सोचा था  ये अमेरिका और इसके पश्चिम देश ।   ओह !     प्रभुपाद चकित थे ।

भक्ति की शुरुआत कहाँ से की जाये ?      प्रभुपाद अब विचार करते हैं ।

छोटे से , निम्न से .....क्यों की मेरे श्रीचैतन्य महाप्रभु  ने छोटे को गले से लगाया .....क्यों न मैं भी इन्हीं से शुरुआत करूँ ?    

धुएँ का छल्ला बनाकर ऊपर उड़ाने वाले .....नशे को सूँघने वाले ..एल. एस. डी . की गोलियाँ खाकर मत्त होने वाले .....भोग प्रधान जीवन ही जिनके लिये जीवन था ।   प्रभुपाद  सड़कों पर बैठे हिप्पी लोगों के पास गये ।    हिप्पी लोग प्रभुपाद को देखकर हंसे .....इण्डियन सामी ....इण्डियन सामी ....कहकर खूब हंसे .....तब इनके साथ लगकर  प्रभुपाद भी हंसे .....इन लोगों ने पूछा - आर यू हिप्पी ?  प्रभुपाद का उत्तर था ...आइ इम  हैप्पी....इस बात पर भी सब  पागलों की तरह हंसे थे ।

 प्रभुपाद ने पूछा .....क्या तुम भी बनना चाहोगे  हैप्पी ?  

उत्तर में सब लोगों ने  चिल्लाकर कहा  - यस ।

प्रभुपाद ने  अपना मृदंग निकाला ...और -  हरे कृष्ण , हरे कृष्ण , कृष्ण कृष्ण हरे हरे । 
हरे राम , हरे राम , राम राम , हरे हरे । 

उछलो , कूदो , नाचो , चीखो ......प्रभुपाद  सबको उन्मत्त बना रहे थे । 

महामन्त्र का गायन  इस तरह से अमेरिका के गगन में गूंजने लगा ।    

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पाश्चात्य देश जाने से पूर्व  -  श्रीवृन्दावन की गलियों में  प्रभुपाद  घूम रहे हैं .....यहाँ बाबा लोग हैं बूढ़े बूढ़े बाबा ....बाइयाँ ....जो  श्रीवृन्दावन में  वास कर रहे हैं और इनकी इतनी ही इच्छा है कि  शरीर इस धाम में  छूटे ....और सही भी है ...इस धाम पर अगर देह भी छूटेगा ....तो वो  परम धाम गोलोक ही जायेगा ।    प्रभुपाद यही सब देखते हुये चल रहे हैं .......फिर मैं क्यों समुद्र पार जाऊँ ?   मैं भी यहीं रहूँगा .....मैं भी अपना जीवन श्रीधाम वृन्दावन में ही रहकर बिताऊँगा और यहीं अपने देह को त्यागकर गोलोक जाऊँगा ।   प्रभुपाद  ने  निश्चय कर लिया था ।    

पर ये क्या -  सामने उनके गुरुदेव  श्री भक्ति सिद्धान्त सरस्वती आज प्रत्यक्ष प्रकट हो गये थे ....श्रीराधादामोदर मन्दिर के निकट ।     

अभय चरण !     तुम पश्चिम जाओगे !     पर गुरुदेव !  मुझे वहाँ के विषय में कुछ नही पता ...न मैं कुछ जानता हूँ ...फिर मेरी अवस्था भी तो हो रही है  - सत्तर वर्ष ।    प्रभुपाद  चरणों में गिर कर रो रहे थे ।

तुम्हें क्या लगता है इतना बड़ा कार्य तुम कर लोगे ?   नही , हे अभय चरण !   भगवान श्रीकृष्ण ही तुम्हें माध्यम बनाकर ये सब करने वाले हैं .....तुम उन लाखों म्लेच्छ लोगों को  श्रीकृष्ण नाम से भर दोगे ....तुम अमृतमय श्रीकृष्णनाम  का दान करोगे ....उनका जीवन सफल करने वाले हो ।

“सन्यासी समुद्र पार जाये  तो गुरुदेव !  उसे नर्क मिलता है “....इस बात पर प्रभुपाद के गुरुदेव हंसे .....भक्त  पाप और नर्क से कब डरने लगा ?   और लाखों लोगों का उद्धार करके अगर तुम्हें नर्क भी मिले तो तुम्हें हंसते हंसते स्वीकार कर लेना चाहिये ।     श्री चैतन्य महाप्रभु की प्रेममयी शिक्षा का प्रचार करो अभय चरण !    ये आज्ञा देकर गुरुदेव अन्तर्ध्यान हो गये थे ।

प्रभुपाद  सेवा कुँज के श्रीराधादामोदर मन्दिर में आकर सो गये ...

उनके लिए अब गुरु आज्ञा ही सर्वोपरि थी ।      

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1 सितम्बर 1896  को प्रभुपाद का जन्म हुआ था ...जन्मस्थली इनकी कोलकाता थी ....गौर मोहन डे इनके पिता का नाम था ....रजनी  इनकी माता जी ।  कपड़े के बहुत बड़े व्यापारी थे इनके पिता । 

बालक की कुण्डली जब बांची पण्डित जी ने   तो एक ही बात बोले ...जीवन के उत्तरार्ध में बालक का राजयोग आयेगा ।  उत्तरार्ध में ?  पिता जी ने पूछा ।  हाँ , जब बालक सत्तर वर्ष का होगा तब समुद्र पार जायेगा और वहाँ जाकर  एक सौ आठ मन्दिर का निर्माण करेगा ।   पण्डित जी की भविष्य वाणी यही थी .....नाम रखा था ....अभय ।    वास्तव में बालक ने  अभयत्व को ही प्राप्त करके जन्म लिया था ...परिवार प्रारम्भ से ही वैष्णव था ।  ठाकुर जी की पूजा आदि होती रहती थी घर में ।

इनके पिता गौर मोहन जी ....”हरे कृष्ण”  यही महामन्त्र बालक अभय को  सुनाते रहते ....और कहते भी थे ...कोई भी भयभीत करना चाहे उस समय  ये महामन्त्र जपना  सारे भय दूर हो जायेंगे ।

एक बार अभय जब पाँच वर्ष का था  तब उनको कोई तान्त्रिक उठाकर ले गया ...नर बलि के लिये ...लेकिन अभय  ने  पिता की बात का स्मरण किया और महामन्त्र का जाप मन ही मन शुरू कर दिया ....पर ये क्या !   तान्त्रिक के उदर में भीषण दर्द उठा  वो वहीं छटपटाने लगा ....अभय को वहीं छोड़कर वो भागा ...अभय  लौट आया था अपने घर ।  इस घटना से ही भगवन्नाम” के प्रति निष्ठा अभय की दृढ़ बन गयी थी ।

शेष कल - 

हरि शरण