बाल लीला सखा श्री कृष्ण की ...
*!! "यह ऊधम सुनी सबहीं रिसाय"- बाल लीला !!*
सुबह सुबह उस गोपी के यहाँ नन्दनन्दन पहुँच गए थे........कई दिनों से इसकी इच्छा थी , इसनें मनोरथ किया था कि ......मेरे घर कन्हैया पधारें .......पर आज ? आज तो अमावस्या है .......और अमवस्या के दिन इसके यहाँ सत्यनारायण की पूजा होती है ।
सुबह ही सुबह इसनें आँगन लीपा था.......और सुन्दर आँगन में एक लकडी का सिंहासन भी रख दिया था सत्यनारायण भगवान के लिये .........भोग - अमनिया बना रही थी ये गोपी ........
तभी पहुँच गए ये नटखट नन्दकिशोर ।
भाभी ! राम राम ......रसोई में ही पहुँच कर राम राम कर रहे थे ।
गोपी नें पलट कर देखा ......बस - वो तो अतिआनन्द के कारण जड़वत् हो गयी ..........सुन्दर नन्द गोपाल , नीलमणी, घुँघराले बाल .......मुस्कुराता और चंचल नयन .........वो गोपी तो देखती ही रह गयी .....अद्भुत रूप ...........
भाभी ! "राम राम" नाय बोलेगी ?
वो बाबरी तो अपलक निहार रही है......क्या बोलना है ये भी भूल गयी है वो......मुस्कुरा रही है......और बस नन्द लाल को देखे जा रही है ।
उसे सुध आयी अब........अपनें आपको सम्भाला ........इधर उधर देखा ....फिर गम्भीर बननें का स्वांग करती हुयी बोली......राम राम ।
क्या कर रही है तू भाभी ! उफ़ ! कलेजा चीर दिया हो, ऐसी मादक बोली........और उसपर "भाभी" और सम्बोधन ।
मैं ? मैं तो सत्यनारायण भगवान के लिये पंजीरी भून रही हूँ .........
उस गोपी नें जैसे तैसे ये उत्तर दिया ।
सुनो ! लाला ! शाम को सत्यनारायण भगवान की कथा होगी .......अपनी मैया को कह देना ......वैसे मैं कल निमन्त्रण दे आयी हूँ .....इतना कहकर गोपी फिर चुप हो गयी .........उसके कान, कन्हैया आगे क्या कहते हैं ..........ये सुननें के लिये बेचैन से हो रहे थे ।
बैठ गए कन्हैया तो उस गोपी के पास ही........उफ़ ! हृदय धड़कनें लगा उस गोपी का.......भाभी ! फिर मधुर वाणी कानों में घुल गयी ।
भाभी ! लो कन्धे में हाथ भी रख दिया अपनी भाभी के। ।
देह कांपनें लगा उस गोपी का ..........छू लिया था कन्हैया नें ..........विद्युत तरंगें दौड़ पडीं सम्पूर्ण शरीर पर .........वो कांपनें लगी ..........फिर पलट कर देखा कन्हैया की ओर .........वो तो मुस्कुरा रहे हैं ...........उनकी वो मुस्कुराहट ..........गोपी अपनें आपको सम्भाले हुए है .......पर ऐसे ही ये यहाँ बैठे रहे तो कब तक अपनें आपको सम्भाल पायेगी .....फिर तो इसे लिपट ही जाना पड़ेगा कन्हैया से ।
लाला ! मुझे काम करनें दो ना ! ये बात भी प्रार्थना के स्वर में कह रही थी ये गोपी....हाँ हाँ कर लो काम ......हम कहाँ मना कर रहे हैं भाभी !
मटकते हुये कन्हैया बोले ।
तुम जाओगे तभी तो मैं आगे का काम कर पाऊँगी.......गोपी भी बोली ।
झूठो दोष लगावे ? ऐसा कहते हुये अपना हाथ हटा लिया गोपी के कन्धे से ...............डर गयी गोपी तो .......उसे डर ये लगा कि कहीं लाला रिसाय न जाये ..........तुरन्त पीछे मुड़ कर देखा ........क्यों की लाला रूठ गया तो जगत ही रूठ जायेगा इन गोपियों का तो ।
मुस्कुरा रहे थे कन्हैया ...........गोपी को तसल्ली हुयी ।
भाभी ! तेरे सत्यनारायण भगवान कहाँ हैं ? इधर उधर देखते हुए कन्हैया नें ऐसे ही पूछ लिया ।
क्यों ? तुम्हे क्यों चाहिए सत्यनारायण भगवान ? गोपी नें पूछा ।
नहीं .........मैया आवेगी ना शाम को कथा सुननें.... .पर मै तो नही आपाऊंगा ....तो मैने सोचा है कि उनके दर्शन नहीं तो कमसे कम उनके सिंहासन के ही दर्शन कर लूँ ।
गोपी मुस्कुराई........बाहर है सिंहासन.......पर जाना नही .......छूना नही.........सत्यनारायण भगवान तो भीतर हैं .........बाहर सिंहासन है कर लो दर्शन । गोपी नें कह दिया ।
जाऊँ ? मुस्कुराते हुए पूछनें लगे........गोपी का हृदय तो बड़ी तेजी से धड़क रहा है ......उनकी मुस्कुराहट देख देख कर ही ।
कैसे कह दूँ लालन ! कि तुम चले जाओ ।
अब तो उठ ही गए........और उठकर बाहर चले आये ।
सिंहासन बाहर है.....आँगन लीपा हुआ है गोबर से......कन्हैया नें देखा.......तुरन्त शरारत सूझी........
**************************************************
भाभी ! भाभी ! भाभी !
जोर जोर से चिल्लाना शुरू किया कन्हैया नें ।
भीतर पंजीरी भून रही थी गोपी, उसनें सुनी आवाज..........अब पंजीरी छोड़कर जाए तो जल जायेगी ये .............तो इसनें भी भीतर से ही आवाज दी .........क्या है ? क्यों चिल्ला रहे हो ?
देख तेरे सत्यनारायण भगवान ! और हँसते जा रहे हैं....जोर जोर से हँसते जा रहे हैं ..........ताली बजाकर लोट पोट हो रहे हैं ।
गोपी दौड़ कर बाहर आयी ..........और जैसे ही देखा ..........
कुत्ते के दो पिल्ले सिंहासन में बैठा दिए थे ..............और हँसते हुए कहते जा रहे थे....... .....तेरे सत्यनारायण भगवान !
हे भगवान ! गोपी सिर पकड़ कर बैठ गयी थी ..........चंचलता की पराकाष्ठा ................
" परमानन्द दास को ठाकुर, पिल्ला लाओ घेर "
उद्धव के मुख से ये प्रसंग सुनकर विदुर जी हँसते हुए नेत्रों से अश्रु प्रवाहित करनें लगे थे .....आहा ! क्या लीला है ये ।
आह आनंद आ गया
{ राधे राधे यदि आपको हमारी यह पोस्ट पसन्द आये अथवा आप हमारे साथ जुड़ने के लिए केवल whatsapp +91 9711592529पर ही सम्पर्क करें
ताकि अधिक कथा का लाभ प्राप्त कर अन्य भक्तो के संग अपनी भक्ति भाव का निर्माण कर वैष्णव संग प्राप्त कर सके }