श्री चैतन्य चरित्रामृतम

Friday, 6 March 2020

आज नंदगांव से होली भाव nand village bhav at holi

आज नन्दगाँव में लट्ठमार होरी के महोत्सव पर विशेष :

जो कल श्रीधाम बरसाना में लट्ठमार होरी हुई , यही होरी दशमी को नन्दगाँव में भी होती है। आज बरसाना के हुरियारे नंदगांव की हुरियारिनों से होली खेलने आएंगे। 

लट्ठमार होरी की एक लीला :::

एक बार बरसाने की गोपियाँ होली खेलने नन्दगाँव आई।

ग्वालों को पता था इसलिए कई दिन पहले से ही ठाकुर के साथ तैयारी कर चुके थे।

एक सखा कहता है :- 'कन्हैया इन गोपियों ने बरसाने में बहुत पीटा है, और मारकर ये भी कहती हैं कि बुरा ना मानो होली है।कन्हैया आज कोई भी बच के जाने ना पाये।'

जैसे ही गोपियाँ अपनी स्वामिनी श्री राधा जू के साथ नन्द गाँव आई, तो एक गोपी विशाखा जी से कहती है कि - ' अरे ! आज नंदगाँव में इतनी ख़ामोशी कैसे? वो चोर शिरोमणि अपनी पल्टन के साथ कहीं गए हैं क्या।'

तब विशाखा जी कहती है:- 'नहीं रे, ये आने वाले तूफ़ान से पहले का सन्नाटा है।'

तभी अचानक क्या होता है ग्वाले छतों से कूद-कूद के हो-हल्ला मचाते हुए आते हैं।

"पकड़ो, रंग दो, एक भी न बचने पाये।"

मधुमंगल कहता है कि - 'तुमको जो अपनी ताकत दिखानी थी वो बरसाने में दिखा दी, ये हमारा इलाका है यहाँ तुम्हारी एक नहीं चलनी।'

तब ललिता सखी कहती है कि -'तुम लोगों को ठीक करने के लिए हमें इलाके की जरूरत नहीं', और भागी छड़ी ले के मधुमंगल के पीछे।

मधुमंगल ने जैसे ही इशारा किया तो सारे ग्वाले बड़े-बड़े पानी के मटके लेके दौड़े और सारी गोपियों को भिगो दिया।

तभी कन्हैया गए श्रीजी के पास और सबके नाक में दम कर देने वाले श्रीमान जी उनके सामने भोले से बनके खड़े हो गए और मंद-मंद स्वर में बोले -'हम आपको रंग लगा दे.......'

तभी मैया जसोदा आई और सब ग्वालों को शांत कराती हुई गोपियों से बोली - 'आओ सब महल में आ जाओ।'

जब सारी गोपियाँ नन्द महल में पहुंची तो माँ जसोदा बोली:- 'आप सबको फाग की उतराई में क्या चाहिए?आज जो भी मांगोगी हीरे, मोती, माणिक कुछ भी वो तुमको मिलेगा।'

तब गोपियाँ नयनों से अश्रु बहाती हुई कहती हैं- 'मैया हमें आपके हीरे-मोती कुछ भी नहीं चाहिए, देना है तो बस अपना कन्हैया हमें दे दो।'

बाबा नन्द के द्वार मची होरी।।
अपने-अपने भवन से निकसी , कोई साँवली कोई गोरी।।
सात बरस के कुंवर कन्हैया , पाँच बरस राधा गोरी।।
इतते आय कुंवर कन्हैया , उतते आई राधा गोरी।।
कृष्ण के हाथ कनक पिचकारी , मनसुख हाथ रंग पोरी।।
हाथ में लाल गुलाल फेंट भर , डारत है भर-भर झोरी।।
"सूरदास" प्रभु तिहारी मिलन कूं , अविचल रहियो यह जोरी।।
श्री हरिदास 
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