जब भगवान गणेश ने इस रूप में ली भक्तों की परीक्षा..............................................
एक बार भगवान एक छोटे से बालक का रूप रखकर किसी नगर में गए, क्योंकि वे देखना चाहते थे कि इस पृथ्वी पर कुछ धर्म-कर्म है या नहीं? उन्होंने एक लीला रची और वे एक चिमटी में चावल और चमची में दूध लेकर गांव में घर-घर घूमकर सबको कहने लगे कि कोई मेरे लिए खीर बना दो। सब लोग उसकी बात सुनकर उसे देखते और हंसने लग जाते। सब लोग कहने लगे कि इतने से दूध-चावल से कोई खीर बनती है।
बहुत सारे घरों में जाकर अंत में वे एक बुढ़िया के पास पहुंचे। वहां बहुत से बच्चे खेल रहे थे और बुढ़िया बैठी-बैठी बच्चों के खेल का आनंद ले रही थी। गणेश जी ने कहा माता जी इन चावल और दूध से मेरे लिए खीर बना दो। बुढ़िया ने हंसकर मजाक करते हुए कहा बेटा, खीर तो बना दूं, परंतु मुझे भी खीर देगा कि नहीं। बालक रूप में गणेश जी ने कहा कि जरूर आपको दूंगा और सब बच्चों को भी दूंगा। तब तो बुढ़िया घर के अंदर से एक छोटी-सी भगोनी लेकर आई।
बालक ने कहा इतनी-सी छोटी भगोनी से क्या होगा। आप बड़ा सा बर्तन लाओ, उसमें खीर बनाना। बुढ़िया फिर से एक बड़ा बर्तन लेकर आई। उसमें दूध और चावल डलवा दिए और चूल्हे पर खीर बनाने के लिए रख दी। खीर उफनने लगी तो बुढ़िया ने थोड़ी सी खीर प्याले में निकाल ली। थोड़ी-सी ठंडी करके, गणेश जी का नाम लेकर भोग लगाकर खीर चखी और मन में कहने लगी कि ये तो बहुत स्वादिष्ट बनी है।
तभी बुढ़िया के बालक को आवाज लगाई कि ले बेटा खीर बन गई और खा ले। बालक ने कहा, खीर से तो मेरा पेट भर गया, अब आप खाओ और इन सब बच्चों को भी खिला दो। बुढ़िया ने पूछा कि बेटा, तूने खीर तो खाई ही नहीं, फिर पेट कैसे भर गया?
बालक ने कहा आपने मेरा प्रेम से नाम लेकर दरवाजे के पीछे खड़े होकर खीर खाई थी, उसी से मेरा पेट भर गया। ये बात सुनकर बुढ़िया समझ गई कि यह बालक तो साक्षात गणेश जी का रूप है। उसने खीर सभी बच्चों को खिलाई। लेकिन बाद में देखा कि खीर का बर्तन अब तक भरा हुआ था। अब गांव के सभी लोगों को बुलाकर बुढ़िया ने सब को खीर खिलाई।
!! जय श्री गणेश !!
मात पिता के चरण में,जग के चारों धाम।
श्रीगणेश हैं कह गये, भजो इन्हीं का नाम।।
!! जय श्री गणेश प्रात वन्दन प्यारे भैया !!